नेशनल फैमिली हेल्थः खून की कमी से जूझ रहीं यूपी की आधी से ज्यादा महिलाएं
उत्तर प्रदेश की आधी आबादी को कदम दर कदम अपने स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए जूझना पड़ रहा है। खून की कमी वाली महिलाओं की बड़ी संख्या प्रदेश में मौजूद है। ...और पढ़ें

लखनऊ (जेएनएन)। उत्तर प्रदेश की आधी आबादी को कदम दर कदम अपने स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए जूझना पड़ रहा है। खून की कमी, घरेलू हिंसा, शारीरिक और यौन हिंसा से आहत महिलाओं की बड़ी संख्या प्रदेश में मौजूद हैं। आधी से ज्यादा महिलाओं को उचित खानपान न होने के कारण खून की कमी से जूझना पड़ता है। सरकारी आंकड़ों में एनीमियाग्रस्त महिलाओं की संख्या 52 प्रतिशत हैं।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 (2015-16) के आंकड़ों में देखा गया कि यूपी में महिलाओं की प्रजनन दर में गिरावट तो आई है लेकिन यह अभी भी सबसे ज्यादा है। प्रदेश में महिलाओं की प्रजनन दर 2.7 बच्चे हैं जबकि राष्ट्रीय औसत 2.1 बच्चों का है। मुंबई के अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान के प्रोफेसर व सर्वे के समन्वयक एसके सिंह ने बताया कि प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रजनन दर प्रति महिला तीन बच्चे हैं। शहरी क्षेत्रों में प्रजनन दर राष्ट्रीय औसत के बराबर यानी 2.1 है। उन्होंने बताया कि पिछले 10 वर्षों में प्रदेश में प्रजनन दर में 1.1 फीसद की गिरावट आई है।
तस्वीरों में देखें-यूपी की राजधानी में सुपर स्टार अमिताभ की सेल्फी
घरों में होते 32 फीसद प्रसव
प्रदेश में विवाहित 46 प्रतिशत महिलाएं गर्भ निरोधक साधनों का इस्तेमाल करती हैं। 10 वर्षों में इसमें केवल दो फीसद का ही इजाफा हुआ है। जबकि राष्ट्रीय औसत 54 प्रतिशत है। प्रदेश में ग्रामीण क्षेत्रों की 42 प्रतिशत व शहरी क्षेत्रों की 56 प्रतिशत महिलाएं गर्भ निरोधक साधनों का इस्तेमाल करती हैं। स्त्री नसबंदी में पिछले 10 वर्षों में दो फीसदी की गिरावट आई है। वर्तमान में गर्भ निरोधक साधनों का इस्तेमाल करने वाली महिलाओं में 38 प्रतिशत ने नसबंदी कराई है। सरकार की ओर से प्रसव अस्पतालों में कराने के लिए भले ही कई तरह के प्रोत्साहन अभियान चल रहे हैं इसके बावजूद अभी भी प्रदेश में 32 फीसद प्रसव घरों में हो रहे हैं। 46 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं ने पहली तिमाही में अस्पताल में प्रसवपूर्व देखभाल सेवा प्राप्त की।
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हर 16 बच्चों में एक की वर्ष के भीतर मौत
सर्वे करने वाली डीम्ड यूनिवर्सिटी अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान के प्रोफेसर बी. पासवान ने बताया कि यूपी में हर 16 बच्चों में से एक बच्चे की मृत्यु एक वर्ष के भीतर हो जाती है। जबकि 13 बच्चों में एक बच्चे की मौत पांच वर्ष से पहले हो जाती है। उन्होंने बताया कि 10 वर्षों में टीकाकरण की संख्या काफी बढ़ी है। इस कारण प्रदेश में शिशु मृत्यु दर में सुधार हुआ है। यूपी के 46 प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। यह अपनी उम्र के अनुसार लंबाई व वजन में कम हैं। इसका कारण अच्छा खान-पान न मिलना है। पांच साल तक के बच्चों में 63 फीसद में खून की कमी मिली है। प्रदेश के एक चौथाई महिलाएं व पुरुष कुपोषण से पीडि़त हैं। वहीं, 52 प्रतिशत महिलाएं खून की कमी यानी एनीमिया से ग्रसित हैं।
एचआइवी-एड्स को लेकर जानकारी का अभाव
प्रदेश में अभी भी एचआइवी-एड्स को लेकर जानकारी का अभाव है। केवल 47 प्रतिशत महिलाएं ही यह जानती हैं कि कंडोम के उचित इस्तेमाल से एचआइवी-एड्स की रोकथाम की जा सकती है। प्रदेश में महिलाओं की सामाजिक स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ है। सूबे की 55 फीसद महिलाओं के बैंकों में खाते हैं। इनका उपयोग वे स्वयं करती हैं। 33 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं जो अकेले या फिर संयुक्त रूप से घर की मालकिन हैं। 26 प्रतिशत महिलाएं अकेले या संयुक्त रूप से किसी अन्य के साथ जमीन की मालकिन हैं। 37 प्रतिशत महिलाओं के पास अपना मोबाइल फोन हैं जिसका वे स्वयं इस्तेमाल करती हैं।

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