मोक्षकल्याणक आज, अयोध्या में हुआ था जैन समाज के पहले तीर्थकर भगवान ऋषभदेव का जन्म
जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का जन्म चैत्रकृष्ण नवमी को देवनगरी अयोध्यापुरी में हुआ। देवभूमि पर कल्पवृक्ष समाप्त हो चुके थे। तब ऋषभदेव ने कर्मभूमि पर जीवनोपार्जन के लिए आवश्यक संदेश दिया और प्रजा का कल्याण कर प्रजापति कहलाए।

लखनऊ [जितेंद्र उपाध्याय] । जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का जन्म चैत्रकृष्ण नवमी को देवनगरी अयोध्यापुरी में हुआ। देवभूमि पर कल्पवृक्ष समाप्त हो चुके थे। तब ऋषभदेव ने कर्मभूमि पर जीवनोपार्जन के लिए आवश्यक संदेश दिया और प्रजा का कल्याण कर प्रजापति कहलाए। उप्र जैन विद्या शोध संस्थान के उपाध्यक्ष प्रो.अभय कुमार जैन ने बताया कि ऋषभदेव अपने जेष्ठ पुत्र भरत चक्रवर्ती को शासन देकर प्रथम दिगंबर मुनि के रूप में आत्मकल्याण के लिए निष्प्रह, निष्परिग्रह , निर्ग्रंथ तपस्वी के रूप में तपस्या की और केवलज्ञान प्राप्त किया।
जैन समाज के लोग ऋषभ देव के पुत्र भरत के नाम से भारत देश का नाम होने की मान्यता को लेकर भी पूजन अर्चन करते हैं। विवाह जैसी संस्थान के प्रवर्तक के तौर पर भी उनका पूजन होता है। यह भी कहा जाता है कि जब वह राजपाठ छोड़कर दिगंबर बने तो हजारों लोग व्रत रहकर उनके साथ चल पड़े। अक्षय तृतीया के दिन उन्होंने गन्ने के रस का सेवन कराया था जिससे सभी लोगां व्रत तोड़ा। वर्तमान समय में भी जैन अनुयायी व्रत रखते हैं और गन्ने के रस का सेवन करके व्रत का पारण करते हैं। ऋषभ देव भगवान द्वारा निर्धारित आयु के 14 दिन शेष रहे तब कैलाश पर्वत पर जाकर योग - निरोध कर माघ कृष्ण चतुर्दशी के अरुणिमा के समय मोक्षप्राप्त कर सिद्ध बने।
जैनधर्मावलंबियों और इस दिन आदि प्रभु का मोक्षकल्याणक मनाकर यह कामना की जाती है कि प्रभु आपकी तरह हमारी आत्मा परम सिद्ध स्वरूप प्राप्त हो। एक बार भक्ति की परीक्षा के लिए राजा भोज ने मानतुंगाचार्य को 48 तालों में बंद कर दिया था तब आचार्य ने प्रथम तीर्थंकर की स्तुति कर 48 स्स्रोतों की रचना की और हर में एक-एक ताले टूटते गए। आशियाना जैन मंदिर प्रथम तीर्थंकर का मोक्ष कल्याणक महोत्सव में श्रद्धालुओं की ओर से शांति धारा, लाडू का भोग लगाया गया। सामूहिक भक्तांबर पाठ के साथ समापन हुआ। समारोह में मंदिर के अध्यक्ष चंद्र प्रकाश जैन, आसू जैन, बलवंत जैन, सुधा जैन, संगीता जैन व ऋतु जैन समेत समाज के लोगों ने हिस्सा लिया।
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