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    शिवाला का 'मूव', मुनाफा खूब

    By Edited By:
    Updated: Sun, 16 Feb 2014 11:40 AM (IST)

    एटा (अनिल गुप्ता)। गांव सूरतपुर माफी की मुंडेर से उठता धुआं दस साल पहले जन्मी कृषि क्रांति

    एटा (अनिल गुप्ता)। गांव सूरतपुर माफी की मुंडेर से उठता धुआं दस साल पहले जन्मी कृषि क्रांति की पैदा है। झंडू बाम, अमृतांजन, मूव हो या कोई अन्य दर्दनाशक उत्पाद, सभी में यहां पैदा होने वाले शिवाला से बने पिपरमेंट का इस्तेमाल होता है। मांग के साथ बढ़ता उत्पादन, ऐसे में यह शिवाला ही तमाम किसानों को निवाला उपलब्ध कराने के लिए महती फसल हो गया है।

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    मारहरा क्षेत्र के गांव सूरतपुर माफी में एक किसान ने कई साल पहले प्रयोग के तौर पर 'शिवाला' की खेती शुरू की। इस शुरुआत पर ग्रामीणों ने तमाम आशंकाएं जताई। कुछ के बोल तो मजाक में तीर की तरह भेदते थे। इसके बावजूद उसने आत्मविश्वास नहीं खोया। पहली उपज से उसे लाभ हुआ तो व्यंग्य बाण चलाने वाले ही बदलने लगे। अगले साल कुछ और लोग आगे आ गए। धीरे-धीरे किसान जुड़ते गए और शिवाला के किसानों का लंबा कारवां बन गया। अब इनका टर्नओवर सैकड़ों करोड़ रुपये में है। सूरतपुर माफी से निकली यह कृषि क्रांति जिले के तमाम गांवों तक जा पहुंची है। तमाम किसान शिवाला की खेती कर मैंथा ऑयल बना रहे हैं। इस खेती से मैंथा कारोबार जिले में हर साल बढ़ रहा है। ग्राम प्रधान सुरेश चंद्र ने बताया कि ऐसे लोगों की तादाद यहां हजारों में है, मैंथा तेल निकालने के कारोबार से जुड़े हैं। इससे अच्छी कमाई कर लेते हैं। हालांकि दूसरी फसलों की तरह इस कारोबार का सच भी यही है कि मैंथा की फसल जब तैयार होती है, तो उसके तेल के दाम कम रहते हैं।

    जिला उद्यान अधिकारी विनोद शर्मा ने बताया कि एटा जिले में शिवाला से मैंथा ऑयल बनाने के 110 प्लांट लगे हैं। कुल पांच हजार हैक्टेयर इसका रकबा है। मैंथा की औसत कीमत लगभग नौ सौ से लेकर तीन हजार रुपए प्रति लीटर रहती है। हर साल शिवाला उगाने वाले किसानों की तादाद बढ़ रही है। साल में दो बार शिवाला की पैदावार आती है। कृषि विशेषज्ञ मोहर सिंह ने बताया कि शिवाला का कचरा खाद के काम आता है। फसल को नीलगाय नुकसान नहीं पहुंचातीं।

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