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संघर्षों से लिखी कामयाबी की दास्तां

महज 16 हजार रुपये के कर्ज से शुरू हुआ उनका कारोबार आज सलाना सौ करोड़ के आसपास पहुंच गया है।

By Krishan KumarEdited By: Published: Tue, 07 Aug 2018 06:00 AM (IST)Updated: Tue, 07 Aug 2018 10:38 AM (IST)
संघर्षों से लिखी कामयाबी की दास्तां

'कौन कहता है कि आसमां में छेद नहीं हो सकता, एक पत्थर तो हिम्मत से उछालो यारों।' इन पंक्तियों को चरितार्थ कर दिखाया है वरुण कुमार तिवारी ने। वर्ष 1989-90 का दौर था, जब वरुण तिवारी लखनऊ में गुमनाम जिंदगी जी रहे थे। नौकरी छूट गई थी। ब्राह्म्ण परिवार से होने के बावजूद उन्होंने खिड़की दरवाजों की वेल्डिंग का काम शुरू किया। उनके काम को देखकर रिश्तेदारों से जब कोई उनके बारे में पूछता तो सभी व्यंग्य करते हुए कहते कि आजकल लोहार का काम कर रहे हैं। करीब 26 साल बाद आज वही रिश्तेदार पचास वर्षीय वरुण पर नाज करते हैं और बताते नहीं थकते कि वे उनके रिश्तेदार हैं। कारण, आज वरुण तिवारी एक अलमारी बनाने वाली कंपनी त्रिवेणी अलमीरा के मालिक हैं।

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सेक्टर-डी, इंदिरा नगर स्थित ऑफिस में बातचीत के दौरान वरुण ने बताया कि उन्होंने कभी अपने काम को हीन नहीं समझा और उसमें रमे रहे। शायद यही वह जज्बा व लगन है कि महज 16 हजार रुपये के कर्ज से शुरू हुआ उनका कारोबार आज सलाना सौ करोड़ के आसपास पहुंच गया है। इस मुकाम तक पहुंचना उनके लिए आसान न था। चित्रकूट के माणिकपुर के रहने वाले वरुण ने वर्ष 1984 में बांदा से वेल्डिंग ट्रेड में आईटीआई किया। उसके बाद उनका चयन लखनऊ एरोनॉटिक्स लिमिटेड एचएएल में अप्रेंटिस के लिए हो गया। उन्होंने जमकर मेहनत की और वर्ष 1986 में उन्हें ऑल इंडिया स्किल कॉरपोरेशन से अवॉर्ड भी मिला। एचएएल में उन्होंने करीब तीन साल काम किया। उन दिनों देश में राजीव गांधी की सरकार थी और अचानक एक दिन एचएएल में मैनपॉवर कम करने के लिए बड़ी संख्या में छटनी कर दी गई। इससे उनकी भी नौकरी चली गई। उस समय एचएएल के अधिकारी राजेश कुमार भारती ने उन्हें अपना कारोबार शुरू करने के लिए प्रेरित किया और सोलह हजार रुपये का लोन भी दिलवा दिया। यही उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट था।

किराए की वेल्डिंग मशीन से शुरू किया काम

वर्ष 1990 की बात है, जब 16 हजार रुपए के कर्ज से वरुण तिवारी ने लखनऊ के इंदिरा नगर में तीन सौ रुपये प्रतिमाह किराए पर वेल्डिंग मशीन ली और सिर्फ तीन कारीगरों के साथ वेल्डिंग का काम शुरू किया। वह घरों की खिड़कियों व दरवाजों की वेल्डिंग करने लगे। साथ ही अलमारी भी बनाते रहे। हालांकि उन्हें यहां भी संघर्ष करना पड़ा। वह अपने कारखाने के बिजली का बिल नहीं जमा कर पाते थे। एक बार उनका बिजली का बिल 14 हजार पहुंच गया और भुगतान न होने पर विभाग ने कनेक्शन काट दिया। तब भगवान के दूत बनकर आए पड़ोस में रहने वाले पोस्ट ऑफिस के रिटायर्ड बाबू ने उन्हें बारह हजार रुपये थमाते हुए कहा कि 'मेरे यहां जो काम कर रहे हैं, उसमें इसे एडजेस्ट कर लीजिएगा।' उन दिनों डीलर्स उनकी अलमारियों को उधार में भी नहीं रखते थे, और वही डीलर अब कंपनी की अलमारियों के लिए एडवांस देकर जाते हैं।



ईश्वर को देते हैं सफलता का श्रेय
वरुण तिवारी की ईश्वर में बड़ी आस्था है। वह मानते हैं कि इसी से उनकी जिंदगी में दूसरा बड़ा मोड़ आया। साल 2000 में वह हरिद्वार में स्वामी अभयानंद सरस्वती के संपर्क में आए और उनके मार्गदर्शन में ही उन्होंने अपने कारोबार को त्रिवेणी अलमीरा कंपनी का स्वरूप दिया। वरुण बताते हैं कि स्वामी जी ने उन्हें भगवद्गीता और उपनिषद का ज्ञान दिया, जिनके सबक को उन्होंने अपनी जिंदगी में उतारा और कारोबार में प्रयोग किया। उन्होंने वर्ष 2003 में इंदिरा नगर के अपने कारखाने में बनी अलमारियों को त्रिवेणी अलमीरा ब्रांड से बेचना शुरू किया था। तब वह प्रति माह 15 से 20 अलमारी बेच लेते थे और उनका कारोबार सालाना तीस हजार रुपये के आसपास था, लेकिन वर्ष 2009 में त्रिवेणी अलमीरा, प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में बदल गई। वर्ष 2010-11 तक उनकी कंपनी का टर्नओवर 25 करोड़ रुपये पहुंच गया और 2012-13 में यह 50 करोड़ रुपये हो गया। साल 2008 में उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार ने बेस्ट इंडस्ट्री अवॉर्ड से सम्मानित किया। इसके अलावा भी वरुण को कई राष्ट्रीय व प्रदेश स्तर के पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

सामान्य घर के दो भाई बने करोड़पति
करीब चार साल पहले कानपुर के रहने वाले दो सगे भाइयों शैलेंद्र त्रिपाठी व देवेंद्र त्रिपाठी के पास मात्र ढाई लाख रुपये थे। उनके पास इसके अतिरिक्त पूंजी नहीं थी कि वह किसी कारोबार में निवेश कर सकें। उन्होंने वरुण तिवारी से संपर्क किया। वरुण ने उन्हें कानपुर का डिस्ट्रीब्यूटर बनाया और मेहनत के साथ काम करने की नसीहत दी। दोनों भाइयों ने मेहनत की और आज वह वह साढ़े पांच करोड़ के कारोबारी हैं।

ये हो तो बने बात
- सरकार को उन लोगों के प्रति ध्यान देना होगा, जिनमें छोटा उद्योग शुरु करने का सामाथ्र्य तो है, मगर उनके पास पूंजी नहीं है।
- युवाओं को प्रेरित किया जाना चाहिए कि एक-एक कर ही सौ रुपये बनते हैं। ऐसे में कम पूंजी के साथ कारोबार शुरू करने से घबराएं नहीं। हिम्मत से आगे बढ़ें, बड़ी पूंजी के भी मालिक होंगे।
- लघु उद्योग शुरू करने की चाह रखने वालों को सरकार को हर सुविधा मुहैया करानी चाहिए।

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