Emotional Story: 21 साल बाद अमेरिका से लखनऊ आई 'महोगनी', फोटो लेकर ढूंढ रही असली मां-बाप
अपने माता-पिता की तलाश में महोगनी एम्बरकाई करीब 21 साल बाद अमेरिका से लखनऊ आई हैं। 26 वर्षीय महोगनी अमेरिका के मिनेसोटा में रहती हैं। महोगनी का कहना है कि करीब 21 साल पहले उन्हें एक अमेरिकी महिला ने गोद लिया था और उन्हें अपने साथ ले गयी थी। मंगलवार सुबह 11 बजे महोगनी अपनी बचपन की तस्वीर लिए गोखले मार्ग पर कल्याण भवन पहुंचीं।

जागरण संवाददाता, लखनऊ। अपने माता-पिता की तलाश में महोगनी एम्बरकाई करीब 21 साल बाद अमेरिका से लखनऊ आई हैं। 26 वर्षीय महोगनी अमेरिका के मिनेसोटा में रहती हैं। महोगनी का कहना है कि करीब 21 साल पहले उन्हें एक अमेरिकी महिला ने गोद लिया था और उन्हें अपने साथ ले गयी थी। मंगलवार सुबह 11 बजे महोगनी अपनी बचपन की तस्वीर लिए गोखले मार्ग पर कल्याण भवन पहुंचीं।
उन्होंने कल्याण भवन में उस अधिकारी के बारे में पता किया, जो उसके माता पिता को तलाश करने में मदद कर सकते थे, लेकिन पता चला कि जिला प्रोबेशन अधिकारी कलेक्ट्रेट में बैठते हैं। अब महोगनी अपने माता-पिता की तलाश में कलेक्ट्रेट ऑफिस की चक्कर काट रही हैं। अनाथालय में बचपन गुजारने वाली महोगनी अब भारतीय मूल की अमेरिकी लड़की हो गई है। लखनऊ में माता- पिता की तलाश में वह अमेरिका से आई हैं। हर दिन की तरह मंगलवार को माता-पिता को लेकर उसकी तलाश जारी रही। अनाथ होने के कारण पांच साल की उम्र पर कैरोल ने उसे गोद लिया था और अमेरिका लेकर चली गईं थीं।
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कैरोल ने अपनी मौत से पहले महोगनी को बता दिया था कि वह उसकी बेटी नहीं है, उसे वह लखनऊ से गोद लेकर आई थीं। इसके बाद ही महोगनी अपने असली माता-पिता की तलाश कर रही हैं। जड़ों से जुड़ने की आकुलता दोपहर बारह बजे वह अपने साथी और कैब ड्राइवर के साथ कलेक्ट्रेट पहुंचती है। कमरा नंबर 34 बी में बने महिला हेल्प डेस्क और जिला प्रोबेशन अधिकारी को अपनी धुंधली तस्वीर और अधूरे रिकॉर्ड दिखाती है। अपने जड़ों से जुड़ने की आकुलता महोगनी के चेहरे पर है। अमेरिका से आईं 26 साल की महोगनी उर्फ राखी के पास पुरानी पहचान और रिकॉर्ड के नाम पर बस एक धुंधली होती तस्वीर है।
एक कागजात है जिस पर यह लिखा है कि लावारिश अवस्था में चारबाग रेलवे स्टेशन पर मिली थी। उसने फ्रॉक पहनी थी, जिस पर टैग लगाकर राखी लिखा था। इसी पहचान के आधार पर वह अपने जन्म देने वाले माता- पिता से मिलना चाहती है। मोती नगर स्थित लीलावती मुंशी बालिका बालगृह, जीआरपी चारबाग, मोतीमहल में चाइल्ड वेलफेयर सोसाइटी जाकर अपने पुराने रिकार्ड की तलाश कर चुकी है। किसी के बताने पर वह मंगलवार को महोगनी और क्रिस्टोफर जिलाधिकारी कार्यालय में बने महिला हेल्प डेस्क पहुंचे। वहां जिला प्रोबेशन अधिकारी विकास सिंह को अपनी पूरी कहानी सुनाई।
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बचपन की तस्वीर और गोद लिए गए कागजात दिखाया। बोली, कि उसके माता -पिता या उसके परिवार को कोई भी मिल जाता तो सब दर्द को भूल जाती। जिला प्रोबेशन अधिकारी विकास सिंह ने आश्वासन दिया कि वह उसकी बचपन की पुरानी तस्वीर को बड़ी करके अखबार में प्रकाशित कराएंगे। शाम पांच बजे यहां से महोगनी निकलती है। यहां से वह कुछ मीडिया हाउस से भी मिलने पहुंचती है। रिकार्ड नहीं मिलने पर मायूस महोगनी अमेरिका से 12 सितंबर को लखनऊ आकर इंदिरानगर में एक महीने के लिए किराए पर मकान लिया है। वह अपने अमेरिकी दोस्त क्रिस्टोफर के साथ एक महीने के टूरिस्ट वीजा पर आई है।
महोगनी चारबाग रेलवे पुलिस दो बार जा चुकी हैं। लीलावती बाल गृह भी उम्मीद लेकर कई बाद जा चुकी हैं, लेकिन अपने जन्म से जुड़ा कोई रिकार्ड नहीं पाकर काफी मायूस भी हैं, लेकिन उम्मीद नहीं छोड़ा है। गोद में हुई क्रूरता महोगनी कहती हैं कि यूपी काउंसिल फार चाइल्ड वेलफेयर ने जो कागजात दिखाए हैं, उसमें कैरोल ने 2002 में गोद लेने के विषय में बताया गया है। रिकार्ड के अनुसार तीन साल की थी तो चारबाग रेलवे स्टेशन पर रेलवे पुलिस ने पाया था। दो साल लीलावती मुंशी बालिका बालगृह में थी। पांच साल पर कैरोल ने गोद लिया था। बचपन की कोई भी याद नहीं है। जिस महिला ने गोद लिया था, उसकी 2016 में मौत हुई तो उसके सामान से एक कागज मिला था। तभी उसे पता चला कि उसे लखनऊ से गोद लिया गया था।
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उस महिला ने नकली प्रोफाइल बनाकर गोद लिया था। तभी से अपने जन्म देने वाले माता- पिता से मिलने की इच्छा हुई, अपने दोस्त क्रिस्टोफर की मदद से भारत आ पाई हूं। महोगनी यह भी बताती हैं कि जिस महिला ने गोद लिया था, उसका व्यवहार क्रूर था, वह कभी भी उसके प्रति अच्छा नहीं करती थी। उसकी इच्छा डाक्टर बनने की थी, लेकिन उसने 10वीं से आगे पढ़ने नहीं दिया। मिनेसोटा में एक कैफे चला रही हूं।
सबसे ज्यादा लड़कियों को लिया जाता है गोद
प्रदेश में सबसे ज्यादा लोग लड़कियों को गोद लेते हैं। इसका एक कारण जिन नवजात बच्चों को छोड़ा जाता है, उसमें अधिकांश लड़कियां होती हैं। बहुत से लोग लड़कियों को सहारा देने के लिए गोद लेते हैं। साथ ही समाज में जागरूकता भी आई है। गोद लेने के नियमों में बदलाव होने से प्रक्रिया पहले से आसान हुई है। देश के भीतर गोद लेने की प्रक्रिया में प्री एडाप्शन फास्टर केयर यानी अस्थायी देखभाल के बाद कोर्ट के पास भेजा जाता है।
वहीं, विदेश में गोद देने पर कोर्ट की अंतिम सहमति और केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन अभिकरण (कारा) की एनओसी के बाद ही बच्चे को दिया जाता है। कोर्ट के एडाप्शन पर अंतिम निर्णय के बाद ही बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र जारी होता है। इसमें समय लगता था, ऐसे में अब यह अधिकार जिलाधिकारी के पास है।
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