Mahanavmi 2021: लखनऊ के मंदिरों में मां के सिद्धिदात्री स्वरूप की हुई आराधना, कन्या पूजन के साथ होगा व्रत का पारण
महानवमी पर गुरुवार को मां के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा अर्चना के साथ हवन किया गया। मंदिरों में मां के सिद्धिदात्री स्वरूप की आराधना की गई। कोरोना संक्रमण से बचने के उपाय के साथ श्रद्धालुओं ने मां के दर्शन किए।
लखनऊ, जागरण संवाददाता। नवमी पर गुरुवार को मां के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा अर्चना के साथ हवन किया गया। मंदिरों में मां के सिद्धिदात्री स्वरूप की आराधना की गई। कोरोना संक्रमण से बचने के उपाय के साथ श्रद्धालुओं ने मां के दर्शन किए। ठाकुरगंज स्थित मां पूर्वी देवी के मंदिर में भजनों का गुलदस्ता पेश किया गया तो शास्त्रीनगर दुर्गा मंदिर में विशेष श्रृंगार किया गया। राजेंद्र नगर के महाकाल मंदिर में मां के सिद्धिदात्री स्वरूप में महाकाल का श्रृंगार किया गया। चौक की बड़ी व छोटी काली जी मंदिर के साथ ही संकटा देवी मंदिर और शास्त्री नगर के दुर्गा मंदिर में भी श्रद्धालुओं की कतार लगी रही।
संदोहन देवी मंदिर, आनंदी माता मंदिर व संतोषी माता मंदिर समेत राजधानी के सभी मंदिरों में पूजा अर्चना की गई। बख्शी का तालाब के चंद्रिका देवी मंदिर व 51 शक्तिपीठ मेें सुबह विशेष पूजन के साथ मां महागौरी की पूजा और कन्या पूजन किया गया। नवमी का मान शाम 6:52 बजे तक हाेने के चलते पूरे नवरात्र व्रत रखने वाले श्रद्धालुओ ने कन्यापूजन के साथ देर शाम व्रत का पारण किया। आचार्य आनंद दुबे ने बताया कि दशमी युक्त नवमी विशेष शुभकारी भी है। कन्या पूजन श्रेयस्कर होता है। ऐसा माना जाता है कि मां इन कन्याओं के माध्यम से ही अपना पूजन स्वीकार करती हैं। काेरोना संक्रमण के चलते श्रद्धालु कन्याओं को भोजन के बजाय अनाथ आश्रम, कुष्ठ आश्रम व वृद्धाश्रमों में दान भी करते नजर आए। कुछ श्रद्धालुओं ने गाय को संकल्पित कन्या के अनुरूप भोजन कराया। आशियाना की पूजा मेहरोत्रा कुष्ठ आश्रम में दान किया तो अंजू रघुवंशाी ने मलिन बस्ती जाकर सूखा अनाज दान किया। कन्या पूजन के बाद ही व्रत पूरा होता है।
घरों में दिखा संक्रमण का असर: कोरोना संक्रमण के चलते घरों में कन्याओं का पूजन बहुत कम रहा। मुहल्लों में कन्याओं की टोलियां भी नजर नहीं आईं। लोगों ने अपनी कन्याओं को भी दूसरे के घरों में भेजने से बचते रहे। कन्याओं के नाम पर प्रसाद गायों का खिलाकर श्रद्धालुओं ने पूजन की परंपरा का निर्वहन किया। कुछ लोगों ने प्रसाद के साथ मंदिरों में कन्या पूजन के नाम पर दान देकर परंपरा निभाई। हालांकि दुर्गा मंदिरों में कन्याओं का पूजन करते श्रद्धालु दिनभर नजर आते रहे।