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Lucknow News: मैं चिड़ियाघर...विदाई को तैयार, अब कुकरैल में होगा श‍िफ्ट; देखें सौ वर्ष में कैसे बदला स्‍वरूप

Zoo of Lucknow लखनऊ चिड़ियाघर का नाम 2015 में नवाब वाजिद अली शाह प्राणि उद्यान के नाम से प्रसिद्ध हो गया। अब इसे कुकरैल प‍िकन‍िक स्‍पाट में श‍िफ्ट करने की कवायद शुरू हो गई है। वहां वन्‍य जीवों को ज्‍यादा जगह म‍िलेगी।

By Jitendra Kumar UpadhyayEdited By: Anurag GuptaPublished: Wed, 30 Nov 2022 06:03 PM (IST)Updated: Wed, 30 Nov 2022 06:03 PM (IST)
Lucknow News: मैं चिड़ियाघर...विदाई को तैयार, अब कुकरैल में होगा श‍िफ्ट; देखें सौ वर्ष में कैसे बदला स्‍वरूप
Lucknow News: नवाब वाजिद अली शाह प्राणि उद्यान।

लखनऊ, [जितेंद्र उपाध्याय]। मैं चिड़ियाघर हूं। तीन किलोमीटर की परिधि के अंदर पांच हजार पेड़ों की छांव के बीच समय के साथ मैंने खुद को बदलते देखा है। तांगा इक्का से लेकर मेट्रो शहर की हर दास्तां मेरे जेहन में हिचकोले मार रहा है। नरही गेट की ओर घोड़ा तांगा की कतार देखकर मैं खुश होता था तो अब वाहनों की कतारों को देख मैं इठलाता रहता हूं। अंग्रजों की गुलामी के दिनों में 29 नवंबर 1921 को प्रिंस वाल्स के आगमन के स्वागत में तत्कालीन अंग्रेज गवर्नर सर हरकोर्ट बटलर ने मेरी स्थापना की थी। देशी-विदेशी वन्यजीवों के साथ मेरा सफर शुरू हुआ और अब मैं 101 साल का हो गया हूं। मुझे कुकरैल ले जाने की कवायद चल रही है। मैं खुद को इस नए स्थान पर स्थापित करने की जिद्दोदहद को लेकर परेशान हूं। बारादरी में उमराव जान के फिल्माएं गाने की यादें मेरे जेहन में रहेंगी।

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प्रदेश का सबसे पुराना चिड़ियाघर

मुझे पहले बनारसी बाग के नाम से जाना जाता था। शहर के बाहर बनारस से आए आम के पेड़ों की वजह से मेरा नाम बनारसी बाग पड़ गया। 18वीं शताब्दी में लखनऊ के नवाब नसीरुद्दीन हैदर ने बाग के रूप न केवल स्थापना की, बल्कि बारादरी का निर्माण कर नवाबी कला के रंग को मेरे परिसर में समाहित कर दिया। फिरंगियों की सैरगाह के रूप में मैं प्रचलित हो गया और मेरा नाम भी बनारसी बाग से बदलकर प्रिंस वाल्स जुलोजिकल गार्डन ट्रस्ट हो गया। 2001 में जुलोजिकल पार्क और फिर लखनऊ चिड़ियाघर के बाद 2015 में नवाब वाजिद अली शाह प्राणि उद्यान के नाम से मैं प्रसिद्ध हो गया। मैं प्रदेश का सबसे पुराना चिड़ियाघर हूं। सरकार के अधीन होने के बावजूद मेरे ऊपर सरकारी होने का तमगा नहीं लग सका है।

1925 में हुआ था बब्बर शेर के बाड़े का निर्माण

मुझे देखने वाले दर्शकों के टिकट और समाजसेवियों के वन्यजीवों को गोद लेने की दिलचस्पी के चलते मैं लगातार बढ़ रहा हूं। राजा बलरामपुर ने 1925 में मेरे अंदर बब्बर शेर के बाड़े का निर्माण कराया था।  1935 में रानी राम कुमार भार्गव ने तोता लेन का निर्माण कराया और फिर भालू, टाइगर बाड़ों के साथ अब मेरे अंदर 100 बाड़े हैं जहां एक हजार से अधिक वन्यजीव अपनी जिंदगी जीने के साथ आने वाले दर्शकों का मनोरंजन करते हैं।

कोरोना संक्रमण काल में हुआ आनलाइन

2006-08 में हाथी सुमित और जयमाला के जंगल जाने का दुख और दर्शकों के प्रिय हुक्कू बंदर जेसन की मौत का गम मैं भूल नहीं पा रहा हूं। कोरोना संक्रमण काल में आनलाइन हो गया तो दर्शकों ने भी मुझे घर में बैठकर खूब पसंद किया। मेरी वेबसाइट lucknowzoo पर मेरी यादें मौजूद हैं। मैं खुद के वजूद को लेकर चिंतित भी हूं। लखनऊ के दिल हजरतगंज के पास रहकर खुद पर गर्व महसूस करता था, लेकिन कुकरैल में मैं खुद को स्थपित कैसे कर पाऊंगा, इसे लेकर मैं परेशान हूं, लेकिन विदाई को तैयार हूं।


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