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    यूपी में नकली दवाओं का 'संगठित' कारोबार किस वजह से फल-फूल रहा? एक दशक से कमजोर है सरकारी तंत्र

    Updated: Sat, 11 Oct 2025 10:53 AM (IST)

    लखनऊ में नकली दवाओं का कारोबार स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है। केवल दो ड्रग इंस्पेक्टरों के भरोसे 10 हजार से अधिक मेडिकल स्टोरों की निगरानी हो रही है, जिससे दवाओं की नियमित जांच संभव नहीं है। नमूने की जांच रिपोर्ट आने में भी काफी समय लग जाता है, जिससे नकली दवा का कारोबार करने वालों का मनोबल बढ़ता है। विभाग को और ड्रग इंस्पेक्टरों की आवश्यकता है।

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    जागरण संवाददाता, लखनऊ। संसाधनों के अभाव में नकली दवाओं का संगठित कारोबार जनस्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है। कमजोर सरकारी तंत्र के चलते नकली एवं नशीली दवाओं की सप्लाई धड़ल्ले से होती है। दरअसल, लखनऊ में सिर्फ दो ड्रग इंस्पेक्टर के भरोसे 10 हजार से अधिक मेडिकल स्टोर, 12 बड़े अस्पताल, 52 अर्बन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 62 पंजीकृत ब्लड बैंक 25 दवा निर्माण कंपनी की निगरानी हो रही है।

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    यही नहीं, दोनों ड्रग इंस्पेक्टर पर लाइसेंस भी जारी करने का भी भारी दबाव है। ऐसे में दवाओं की नियमित जांच संभव नहीं है। यह कोई एक-दो साल से नहीं, बल्कि करीब एक दशक से अधिक समय से राजधानी में दवाओं की निगरानी एक या दो ड्रग इंस्पेक्टर के भरोसे ही है।

    सैंपल की जांच रिपोर्ट आने में लग जाते हैं एक से दो माह

    मध्यप्रदेश और राजस्थान में कफ सीरप पीने से बच्चों की मौत के बाद प्रदेश सरकार ने प्रतिबंधित दवा की जांच के निर्देश दिए। ऐसे में खाद्य एवं औषधि प्रशासन के अधिकारियों ने आसपास के जिलों से ड्रग इंस्पेक्टर बुलाकर टीम बनाई, तब अभियान शुरू किया। विभाग की कमजोर निगरानी की वजह से नकली दवा का कारोबार करने वाले गिरोह का मन बढ़ता है।

    खाद्य एवं औषधि प्रशासन की टीम छापेमारी के बाद सैंपल लेकर राज्य प्रयोगशाला जांच के लिए भेजती है, लेकिन इसकी रिपोर्ट आने में एक-दो माह लग जाते हैं। इसी साल 18 फरवरी को पांच सेक्सोलाजिस्ट के क्लीनिक पर छापा मारा। पांचों क्लीनिक पर आयुर्वेदिक दवाओं में स्टेरायड मिलाने का आरोप लगा।

    टीम ने 10 संदिग्ध दवाओं के सैंपल लिए और जांच के लिए मेरठ स्थित राज्य प्रयोगशाला भेजा, लेकिन रिपोर्ट आने में करीब डेढ़ माह का समय लगा। विभाग के एक अधिकारी बताते हैं कि लखनऊ में कम से कम छह ड्रग इंस्पेक्टर की जरूरत है, लेकिन दो से काम चलाया जा रहा है। उनका कहना है कि दवाओं की नियमित जांच तभी संभव है जब लाइसेंस से जुड़े काम कम हों।