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    Lucknow News: 37 साल बाद दिवंगत कैप्टन की पत्नी को मिला न्याय, कोर्ट ने सरकार को दिया बड़ा आदेश

    Updated: Sat, 19 Jul 2025 11:32 PM (IST)

    लखनऊ से खबर है कि पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में घायल हुए एक सैनिक की पत्नी को 37 साल बाद न्याय मिला। आनरेरी कैप्टन हरि सिंह परमार 1971 में घायल हुए और 1988 में उनका निधन हो गया। उनकी पत्नी को सेना से विशेष पेंशन के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा। सशस्त्र बल न्यायाधिकरण ने अब उन्हें पेंशन देने का आदेश दिया है।

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    37 साल बाद दिवंगत कैप्टन की पत्नी को मिला न्याय।

    जागरण संवाददाता, लखनऊ। पाकिस्तान के खिलाफ मोर्चा लेते हुए घायल हुए एक जांबाज के दिवंगत होने के बाद उनकी पत्नी विशेष पारिवारिक पेंशन के लिए 37 साल तक संघर्ष करती रही। कभी रक्षा मंत्रालय मुख्यालय के चक्कर काटे तो कभी राष्ट्रपति से गुहार लगायी। आखिर सशस्त्र बल अधिकरण की लखनऊ बेंच ने उनके मामले में सुनवाई करते हुए रक्षा मंत्रालय को सन 1988 से विशेष पारिवारिक पेंशन का लाभ देने का आदेश दिया है।

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    मूल रूप से देवरिया के रहने वाले आनरेरी कैप्टन हरि सिंह परमार वर्ष 1963 में राजपूताना राइफल्स में भर्ती हुए थे। उन्होंने 1962-63 और 1963-64 में चलाए गए आपरेशन राजी, 1965 के आपरेशन हारनेट और 1971 के आपरेशन कैक्टस लिली जैसे सैन्य अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।

    1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान सांबा सेक्टर में अग्रिम मोर्चे पर तैनाती के दौरान आठ दिसंबर को दुश्मन के गोले से वे बुरी तरह घायल हुए थे। उनके पेट में छर्रे लगे, बाएं कान की सुनने की शक्ति चली गई और शरीर में आंतरिक चोटें आईं। इसके बावजूद वह डटे रहे और अपने घायल साथियों की रक्षा करते हुए उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया।

    घायल अवस्था में वह पठानकोट और फिर दिल्ली के सैन्य अस्पताल में जीवन-मृत्यु से संघर्ष करते रहे। पत्नी राजकंवर की सेवा से परमार स्वस्थ हुए, लेकिन वर्ष 1984 में उन्हें थायरायड की बीमारी हो गई। मुंबई स्थित नौसेना अस्पताल में उन्हें रेडियो आयोडीन थेरेपी दी गई, जिसकी अधिक मात्रा से उन्हें क्रोनिक मायलायड ल्यूकेमिया नामक गंभीर रक्त कैंसर हो गया।

    इसी बीमारी के चलते 31 मार्च 1988 को वह सेवानिवृत्त हुए और 20 अप्रैल 1988 को उनकी मुत्यु हो गई। उनकी मृत्यु सेवा से उत्पन्न बीमारी के कारण हुई थी, लेकिन सेना ने उनकी पत्नी को केवल साधारण पारिवारिक पेंशन प्रदान की।

    सन 1971 के युद्ध के दौरान 100 प्रतिशत स्थायी चिकित्सा अक्षमता होने पर भी सेना में वह सेवा देते रहे, जो यह दर्शाता है कि वह सेवायोग्य और अनिवार्य समझे गए। वर्ष 2009 में संशोधित नियमों के अनुसार ऐसे मामलों में सेना मुख्यालय से उनकी पत्नी को आर्मी वेलफेयर फंड से एक लाख रुपये एकमुश्त सहायता मिलनी चाहिए थी, लेकिन यह भी नहीं दी गई।

    डिस्चार्ज प्रमाणपत्र में हरि सिंह परमार के चरित्र को उत्कृष्ट बताया गया। उनको सैन्य सेवा में अद्वितीय योगदान के लिए सामान्य सेवा पदक 1947, नागा हिल्स रक्षा पदक, समर सेवा स्टार 1965, हिमालय संग्राम पदक, पश्चिमी स्टार, 25वीं स्वतंत्रता जयंती पदक प्रदान किए गए।

    वर्ष 2023 में उनकी पत्नी राजकंवर ने विशेष पारिवारिक पेंशन के लिए सशस्त्र बल न्यायाधिकरण की लखनऊ खंडपीठ में याचिका दायर की। अवकाशप्राप्त न्यायमूर्ति सुरेश कुमार गुप्ता एवं मेजर जनरल (अवकाशप्राप्त) संजय सिंह की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए राजकंवर को 21 अप्रैल 1988 से विशेष पारिवारिक पेंशन प्रदान करने का आदेश दिया।

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