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    यूपी में गंभीर रोगों से ग्रस्त बंदियों की आसानी से हो सकेगी समय पूर्व रिहाई, जल्द बनेगी स्थायी नीति

    Updated: Mon, 01 Sep 2025 03:16 PM (IST)

    सीएम योगी ने कैदियों की समयपूर्व रिहाई के लिए स्थायी नीति बनाने के निर्देश दिए हैं। यह नीति गंभीर बीमारियों से पीड़ित कैदियों के लिए नियमों को सरल बनाएगी। हत्या और देशद्रोह जैसे अपराधों के दोषियों को रिहा नहीं किया जाएगा। हर साल तीन बार पात्र कैदियों के मामलों की समीक्षा होगी और उन्हें कृषि जैसे कार्यों से जोड़ा जाएगा।

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    गंभीर रोगों से ग्रस्त बंदियों की आसानी से हो सकेगी समयपूर्व रिहाई।

    राज्य ब्यूरो, लखनऊ। सर्वाेच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप प्रदेश में जल्द बंदियों की समयपूर्व रिहाई के लिए स्थायी नीति होगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गंभीर बीमारियों से ग्रसित बंदियों की समयपूर्व रिहाई से जुड़े नियमों को और अधिक सरल, स्पष्ट व मानवीय दृष्टिकोण से परिभाषित किए जाने का निर्देश दिया है।

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    कारागार प्रशासन व सुधार सेवाओं की समीक्षा बैठक में योगी ने कहा कि प्रदेश की नीति अधिक पारदर्शी व प्रभावी होनी चाहिए। कहा कि पात्र बंदियों की रिहाई तय प्रक्रिया के तहत खुद-ब-खुद होनी चाहिए। इसक लिए उन्हें अलग से आवेदन न करना पड़े।

    यह भी कहा कि हत्या, आतंकवाद, देशद्रोह, महिला व बच्चों के विरुद्ध जघन्य अपराध जैसे मामलों में दाेषियों की रिहाई कतई नहीं की जानी चाहिए। निष्पक्ष, त्वरित व मानवीय संवेदनाओं पर आधारित नई नीति का प्रारूप जल्द तैयार करने का निर्देश दिया।

    मुख्यमंत्री ने कहा कि प्राणघातक रोग से पीड़ित होने की आशंका वाले सिद्धदोष बंदी, जिसे मुक्त करने पर उसके स्वस्थ होने की संभावना है। वृद्धावस्था, अशक्तता या बीमारी के कारण भविष्य में ऐसा अपराध करने में स्थायी रूप से असमर्थ बंदी, जिसके लिये वह दोषी ठहराया गया तथा घातक बीमारी या किसी प्रकार की अशक्तता से पीड़ित सिद्धदोष बंदी जिसकी मृत्यु निकट भविष्य में होने की संभावना हो।

    ऐसे बंदियों का सभी कारागारों में सर्वेक्षण कर वास्तविक संख्या का आंकलन किया जाए। इनमें महिलाओं व बुजुर्गों को प्राथमिकता के आधार पर रिहा करने की व्यवस्था हो। जेल मैनुअल में यह भी स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना आवश्यक है कि किन बीमारियों को असाध्य रोग की श्रेणी में रखा जाएगा। समाज की सुरक्षा सर्वोपरि है।

    इसलिए समयपूर्व रिहाई उन्हीं मामलों में की जानी चाहिए, जहां सामाजिक जोखिम न हो। योगी ने नियमों में बदलाव किए जाने के साथ ही हर वर्ष तीन बार जनवरी, मई व सितंबर माह में पात्र बंदियों के मामलों की स्वतः समीक्षा होनी चाहिए।

    यदि किसी बंदी को रिहाई न दी जाए तो उसके कारण भी स्पष्ट किए जाएं। बंदियों को कृषि, गोसेवा आदि कार्यों से जोड़कर उनकी जेल अवधि के सदुपयोग करने किए जाने पर भी जोर दिया।

    बैठक में अधिकारियों ने बताया कि प्रदेश में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा सुझाई गई प्रणाली को अपनाने पर भी विचार किया जा रहा है। ताकि बंदियों को न्यायिक अधिकारों का लाभ पूरी तरह से मिल सके।