Digital Arrest के आरोप में सरकारी शिक्षक समेत दो ओडिशा से गिरफ्तार, 47 लाख की ठगी का खुलासा
लखनऊ में साइबर क्राइम टीम ने डिजिटल अरेस्ट कर ठगी करने वाले दो जालसाजों को ओडिशा से गिरफ्तार किया है। इनमें एक सरकारी शिक्षक जयंत कुमार साहू भी शामिल है जिसके नाम पर कई कंपनियां पंजीकृत हैं। आरोपियों ने गोमतीनगर के एक व्यापारी से 47 लाख रुपये की ठगी की थी। पुलिस ने आरोपियों के पास से नकदी और मोबाइल फोन बरामद किए हैं।
जागरण संवाददाता, लखनऊ। डिजिटल अरेस्ट कर लोगों को ठगी का शिकार बनाने वाले दो जालसाजों को साइबर क्राइम थाने की टीम ने शुक्रवार को ओडिशा से गिरफ्तार किया। आरोपितों में एक सरकारी शिक्षक है। उसके नाम पर 10 से ज्यादा कंपनियां पंजीकृत हैं।
हर कंपनी में एक महीने का लेन-देन पांच करोड़ रुपये से ज्यादा का है। पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) अपराध कमलेश दीक्षित ने बताया कि गिरोह के अन्य लोगों की तलाश में टीम लगी हुई है।डीसीपी के मुताबिक ओडिशा निवासी रंजीत कुमार व जयंत कुमार साहू को गिरफ्तार किया गया है।
जयंत ओडिशा के सरकारी स्कूल का शिक्षक है। इन लोगों ने कुछ दिनों पहले गोमतीनगर के विनयखंड निवासी चमड़ा व्यापारी रविंद्र वर्मा को फर्जी सीबीआइ अधिकारी बनकर डिजिटल अरेस्ट किया, फिर 47 लाख रुपये ट्रांसफर करा लिए थे। खातों की मदद से साइबर टीम ने जांच शुरू की तो दोनों के नाम सामने आए।
टीम ने दबिश देकर दोनों को गिरफ्तार कर लिया। आरोपितों के पास से तीन मोबाइल, 1.27 लाख रुपये नकदी समेत अन्य माल बरामद किया है। आरोपितों ने बताया कि विभिन्न लोगों के नाम से कार्पोरेट खाते बनाकर उनमें अपने मोबाइल नंबर रजिस्टर्ड करते थे।
ठगी की राशि बैंक की कार्पोरेट नेट बैंकिंग और रन पैसा गेटवे के माध्यम से जयंत साहू की फर्म के खातों में ट्रांसफर करते थे। वहां से ठगी की राशि को क्रिप्टो करेंसी में बदल कर आपस में बांट लेते थे। बताया कि अलग-अलग खातों में रकम मंगा लेते थे, फिर जयंत उन्हें अपने खातों में रख लेता था, जरूरत के हिसाब से रकम बांटते थे।
एडीसीपी क्राइम वंसत कुमार ने बताया कि जयंत के परिवार के अन्य लोगों के नाम पर 10 कंपनियां पंजीकृत हैं। सभी कंपनी में एक महीने में पांच करोड़ रुपये से ज्यादा रकम आती है, फिर उसे मलेशिया व वियतनाम के खातों में भेजकर क्रिप्टो करेंसी में बदल लिया जाता है। रंजीत व जयंत के साथी दिल्ली व तेलंगाना में बैठे हैं।
सभी की भूमिका अलग-अलग है। रकम आते ही सभी के खातों में मंगाई जाती है। रकम कई खातों में भेजने से पुलिस को पकड़ने में मुश्किलें होती हैं। इस मामले में बैंक ने पुलिस का साथ दिया, जिससे रकम आखिर में कहां पहुंची, उसकी जानकारी मिल गई।
एडीसीपी ने बताया सभी साइबर ठग डार्क नेट पर बात करते हैं। इससे इन लोगों को ट्रेस करना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में बैंक खाते से ही जालसाजों ने तक पहुंच पाते हैं। हालांकि डार्क नेट पर हम लोग काम कर रहे हैं। जल्द ही उसके माध्यम से भी ट्रेस कर पकड़ने में आसानी होगी।
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