2017 में 40% से घटकर 15.54% हुई बिजली हानि, फिर भी निजीकरण की जिद; किसके हित में है ये फैसला?
लखनऊ में विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने बिजली के निजीकरण पर सवाल उठाए हैं। समिति का कहना है कि लाइन हानियाँ कम होने के बावजूद निजीकरण क्यों किया जा रहा है? उन्होंने सरकार पर उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने का आरोप लगाया है और अटॉर्नी जनरल से राय लेने की मांग की है। कर्मचारियों ने निजीकरण के विरोध में जेल भरो आंदोलन की चेतावनी दी है।

राज्य ब्यूरो, लखनऊ। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने सवाल किया है कि भीषण गर्मी में रिकार्ड बिजली आपूर्ति और लाइन हानियां राष्ट्रीय मापदंड से नीचे होने के बावजूद प्रदेश में बिजली का निजीकरण किसके हित में किया जा रहा है?
मार्च 2017 में 40 प्रतिशत लाइन हानियां थीं जो घटकर 15.54 प्रतिशत रह गई हैं। केंद्र सरकार द्वारा सितंबर 2020 में जारी निजीकरण के स्टैंडर्ड बिडिंग डाक्यूमेंट में उल्लेख है कि जहां वितरण हानियां 16 प्रतिशत से कम है, उन डिस्काम का निजीकरण नहीं किया जाएगा।
समिति ने कहा है कि सरकार द्वारा प्रकाशित कराए जा रहे विज्ञापन से स्पष्ट है की 2017 से अब तक प्रदेश में बिजली के क्षेत्र में उल्लेखनीय सुधार हुआ है और लाइन हानियां राष्ट्रीय मापदंड से कम हो गई हैं।
पदाधिकारियों ने चेतावनी दी है कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का टेंडर जारी होते ही बिजली कर्मचारी अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार शुरू करने के साथ ही जेल भरो आंदोलन शुरू कर दिया जाएगा। रविवार को अवकाश के दिन भी बिजली कर्मचारियों ने जिलों व परियोजनाओं पर बैठक कर निजीकरण के विरोध में स्वेच्छा से जेल जाने वाले कर्मचारियों की सूची तैयार की।
निजीकरण मसौदे पर अटार्नी जनरल आफ इंडिया से राय ले सरकार
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने कहा है कि निजीकरण का पूरा मसौदा ही असंवैधानिक है। सरकार चाहे तो अटार्नी जनरल आफ इंडिया से मसौदे पर राय ले सकती है। परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा है कि सरकार जिस दिन अटार्नी जनरल आफ इंडिया से राय लेगी पावर कारपोरेशन प्रबंधन की पूरी पोल खुल जाएगी।
आरोप लगाया है कि उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए पूरा मसौदा तैयार किया गया है। पांच नई कंपनियां बनाने में रिजर्व बिड प्राइस 6500 करोड़ रुपये आंकने में भ्रष्टाचार है। सही आंकलन किया जाए तो रिजर्व बिड प्राइज 10000 करोड़ से अधिक जाएगी। कंपनियों की लागत कम आंकने के लिए दोषी कौन है इसकी जांच होनी चाहिए।
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