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    लीवर और स्तन के ट्यूमर का इलाज अब छोटी सर्जरी से भी संभव, लखनऊ के PGI में होगा ट्रीटमेंट

    लखनऊ के एसजीपीजीआई में अब लीवर और स्तन के ट्यूमर का इलाज क्रायोएब्लेशन तकनीक से किया जा सकेगा। इस तकनीक में कम चीरे के साथ ट्यूमर कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है जिससे बड़ी सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ती। न्यूरो-इंटरवेंशन से ब्रेन स्ट्रोक का सटीक इलाज संभव है और सिमुलेटर आधारित प्रशिक्षण डॉक्टरों को आपातकालीन स्थिति में बेहतर इलाज में मदद करेगा।

    By Vikash Mishra Edited By: Sakshi Gupta Updated: Mon, 25 Aug 2025 07:55 PM (IST)
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    लीवर और स्तन के ट्यूमर का इलाज अब छोटी सर्जरी से भी संभव।

    जागरण संवाददाता, लखनऊ। संजय गांधी पीजीआइ में आयोजित आपातकालीन रेडियोलाजी सोसाइटी (सेरकान-2025) के वार्षिक सम्मेलन में रेडियोलाजी विभाग की प्रमुख प्रो. अर्चना गुप्ता ने बताया कि अब लीवर और स्तन (ब्रेस्ट) में होने वाले ट्यूमर का इलाज क्रायोएब्लेशन तकनीक से किया जा सकता है।

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    इस तकनीक की मदद से ट्यूमर को बिना बड़ी सर्जरी के खत्म करना संभव हो सकेगा। क्रायोएब्लेशन एक मिनिमल इनवेसिव (कम चीरा लगाने वाली) तकनीक है, जिसमें अत्यधिक ठंड का उपयोग कर ट्यूमर कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है। इसमें एक पतली सुई के माध्यम से ट्यूमर वाली जगह तक पहुंचा जाता है।

    उस स्थान पर नाइट्रोजन या आर्गन गैस छोड़कर तापमान को 40 डिग्री सेल्सियस या उससे भी कम कर दिया जाता है। इससे ट्यूमर कोशिकाएं जम जाती हैं और धीरे-धीरे नष्ट हो जाती हैं। इस तकनीक से बड़ी सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ेगी।

    दर्द और रक्तस्राव भी कम होता है। रिकवरी तेजी से होती है। दवाओं की पर निर्भरता भी कम हो जाती है। यह तकनीक विशेष रूप से बुजुर्गों या सर्जरी के लिए अनफिट मरीजों के लिए अत्यंत लाभकारी है।

    न्यूरो-इंटरवेंशन से ब्रेन स्ट्रोक का सटीक इलाज

    संस्थान के न्यूरो-इंटरवेंशन विशेषज्ञ प्रो. विवेक सिंह के मुताबिक, पीजीआइ में न्यूरो-इंटरवेंशन की अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं, जिससे स्ट्रोक जैसी जानलेवा स्थितियों का इलाज अब कम समय में और सटीकता से संभव हो पा रहा है। इस तकनीक से ब्रेन स्ट्रोक, ब्रेन ब्लीड, और एन्यूरिज्म (मस्तिष्क में गुब्बारा की तरह सूजन) जैसी जटिल स्थितियों का इलाज बिना ओपन सर्जरी संभव हो रही है।

    न्यूरो-इंटरवेंशन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें मरीज की मस्तिष्क या रीढ़ की रक्त वाहिनियों में छोटी नली (कैथेटर) के माध्यम से इलाज किया जाता है। इस तकनीक से जमी हुई खून की गांठ (ब्लड क्लाट) हटाई जाती है। ब्रेन में हो रहे रक्तस्राव को रोका जा सकता है।

    डा. अनुराधा सिंह ने जानकारी दी कि अब सिमुलेटर आधारित प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिससे डाक्टर आपातकालीन स्थिति में अधिक सटीक इलाज कर सकें। सम्मेलन में अमेरिका, कनाडा और थाईलैंड के विशेषज्ञों ने भी अपने अनुभव साझा किए।

    इसके पहले उद्घाटन संस्थान के निदेशक प्रो. आरके धीमान ने किया। उन्होंने कहा, इंटरवेंशनल रेडियोलाजी आज के समय में इलाज का एक बेहद प्रभावी और सुरक्षित विकल्प है। इससे मरीजों को दर्द रहित, कम खर्चीला और सटीक उपचार मुहैया कराने में मदद मिल रही है।

    गैंग्रीन मरीजों के लिए वरदान है यह तकनीक

    लोहिया संस्थान के रेडियोलाजी विभाग में प्रो. तुषांत सिंह और प्रो. समरेंद्र सिंह ने कहा, इंटरवेंशनल रेडियोलाजी गैंग्रीन के मरीजों के लिए एक वरदान है, क्योंकि यह शरीर के प्रभावित हिस्से में रक्त प्रवाह को सामान्य करने में प्रभावी तकनीक है।

    पिछले कुछ वर्षों में विभाग में ऐसे दर्जनभर गंभीर मरीजों के स्वस्थ करने में मदद मिली है। आमतौर पर मधुमेह, रक्त के थक्कों या संक्रमण से होने वाली रक्त की कमी के कारण होता है।