लखनऊ केजीएमयू के विशेषज्ञों ने शोध में बताया आक्सीजन प्रबंधन का बेहतर तरीका, चीन के जर्नल में रिसर्च को मिली जगह
केजीएमयू के एनस्थीसिया प्लास्टिक सर्जरी और ट्रामा विभाग ने आक्सीजन प्रबंधन पर शोध किया। इसमें उन्होंने संकट के समय आक्सीजन के किफायत से आवश्यक उपयोग को दर्शाया है। उनका यह शोध चीन में मेडिकल गैसे रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
लखनऊ, जागरण संवाददाता। ठीक साल भर पहले जब कोरोना की दूसरी लहर के दौरान कोहराम मचा हुआ था। उस समय देश भर में आक्सीजन की भयानक किल्लत पैदा हो गई थी। कई संक्रमितों की मौत भी आक्सीजन की कमी के चलते हुई थी। कोरोना मरीजों को जिंदगी देने के लिए तीमारदार एक-एक सिलेंडर के लिए भटक रहे थे। सरकारी प्राइवेट अस्पतालों में आक्सीजन की आपूर्ति कम हो गई थी। ऐसे में केजीएमयू ने आधुनिक तकनीक और योग के बूते न सिर्फ आक्सीजन की खपत कम की बल्कि अपने नवाचार से आक्सीजन संकट का बखूबी सामना किया। इससे जुड़े संस्थान के एक शोध को अंतरराष्ट्रीय जर्नल में जगह मिली है।
यह शोध संस्थान के एनस्थीसिया, प्लास्टिक सर्जरी और ट्रामा विभाग ने मिलकर किया है। इसमें उन्होंने संकट के समय आक्सीजन के किफायत से आवश्यक उपयोग को दर्शाया है। उनका यह शोध चीन में मेडिकल गैसे रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हुआ है। यह शोध आक्सीजन प्रबंधन एवं भविष्य में उत्पन्न ऐसी किसी स्थिति से निपटने में उपयोगी सिद्ध होगा।
शोध को लेकर केजीएमयू एनस्थीसिया विभाग के डा. तन्मय तिवारी ने बताया कि आक्सीजन प्रबंधन के लिए हमने नए प्रयोग का सहारा लिया। इससे हम कम से कम पांच गुना तक आक्सीजन की बचत कर सकते हैं। नई तकनीक में यह भी दिखाया कि कम आक्सीजन के बावजूद उससे मरीज को कैसे अधिक लाभ पहुंचाया जा सकता है। इसमें नान इनवेसिव वेंटिलेटर यानी बाइपैप काफी प्रभावी साबित हुआ, जिसके परिणाम हाईफ्लो नेजल कैनुला से बेहतर मिले।
डा. तन्मय ने बताया कि कोविड में आक्सीजन बचत का खाका तैयार किया गया। इसके तहत मरीज के भर्ती होते ही सबसे पहले पल्स आक्सीमीटर से उसकी जांच कराई गई। शरीर में आक्सीजन का स्तर पता लगाने के बाद ही उपचार की दिशा तय गई और जितनी आवश्यक थी, उतनी ही आक्सीजन दी गई। इसके लिए आक्सीजन के 94 का स्तर तय किया। इस कारण आक्सीजन की अनावश्यक खपत नहीं हुई।
दूसरी लहर के दौरान केजीएमयू में 988 बेड कोरोना मरीजों के लिए आरक्षित थे। लिंब सेंटर में अलग लिक्विड आक्सीजन सिलेंडर लगाया गया था, जिसकी क्षमता 20 हजार लीटर थी। इसके अलावा डा. तन्मय ने बताया कि इस शोध से भविष्य में आक्सीजन प्रबंधन करना बेहद ही आसान होगा। वहीं इससे महामारी में इलाज के लिए गाइडलाइन तैयार करने में काफी हद तक मदद मिलेगी।
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