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Lucknow: तीन तलाक कानून का असर, कार्रवाई के डर से पति कर रहे सुलह; 16 प्रतिशत मामलों में अंतिम रिपोर्ट लगी

कई मामले गलत भी पाए गए जिनमें पुलिस ने विवेचना के उपरांत अंतिम रिपोर्ट लगाई। पहली बार यह कानून अध्यादेश के रूप में 19 सितंबर 2018 में आया था। वहीं 2019 में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम-2019 लागू हुआ।

By Jagran NewsEdited By: Shivam YadavPublished: Wed, 08 Feb 2023 09:22 PM (IST)Updated: Wed, 08 Feb 2023 09:22 PM (IST)
Lucknow: तीन तलाक कानून का असर, कार्रवाई के डर से पति कर रहे सुलह; 16 प्रतिशत मामलों में अंतिम रिपोर्ट लगी
2019 में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम-2019 लागू हुआ।

लखनऊ [आलोक मिश्र]: उप्र के रामपुर के एक गांव की निवासी महिला का निकाह उत्तराखंड के गदरपुर में हुआ था। शादी के कुछ दिनों बाद ही दंपती के बीच अनबन ऐसी बढ़ी कि रिश्ते में दरार आ गई। पति ने तीन तलाक देकर दुल्हन को घर से निकाल दिया। हार कर पीड़िता को मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम-2019 का सहारा लेना पड़ा। महिला ने रामपुर के स्वार थाने में तीन तलाक का मुकदमा दर्ज कराया। पुलिस जांच के कदम बढ़े तो ससुराल पक्ष के कदम पीछे हटना शुरू हो गए। कार्रवाई के डर से पति ने सुलह की और अब दंपती फिर एक साथ हैं। 

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रामपुर के ही सिविल लाइन थानाक्षेत्र के एक गांव में भी ऐसा ही हुआ। शादी के बाद पति ने तीन तलाक देकर पत्नी को न सिर्फ पीटा, बल्कि अपने घर के दरवाजे उसके लिए बंद कर लिए। हारकर महिला ने मुकदमा दर्ज कराया। कानूनी दबाव पड़ते ही ससुरालीजन टूट गए। सुलह के बाद दंपती साथ हुए। दोनों ही मामलों में पुलिस ने कोर्ट में अंतिम रिपोर्ट लगाई।

मुरादाबाद में लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व एक सरकारी कर्मचारी ने शादी के 21 वर्ष बाद पत्नी को तीन तलाक देकर घर से निकाल दिया था। महिला ने पति पर अश्लील वीडियो बनाने से लेकर प्रताड़ना के अन्य गंभीर आरोप लगाए। एफआइआर भी दर्ज कराई थी। 

तीन तलाक के बढ़ते मामलों व विवादों के बीच इसकी रोकथाम के लिए कानून बना तो मुस्लिम महिलाओं को अपने बचाव का एक सीधा और ठोस रास्ता भी मिला। इसका प्रमाण प्रदेश में तीन तलाक को लेकर दर्ज कराए गए मुकदमों व उनमें की गई कार्रवाई के आंकड़े भी हैं। 

दिखने लगा कानून की सख्ती का असर

कानून की सख्ती से महिलाओं की प्रताड़ना करने वालों के कदम भी ठिठके हैं। अब तक दर्ज कुल मामलों में लगभग 16.62 प्रतिशत मामले ऐसे भी हैं, जिनमें पुलिस ने अंतिम रिपोर्ट लगाई है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का कहना है कि ऐसे अधिकांश मामलों में रिपोर्ट दर्ज होने के बाद कार्रवाई के बढ़ते दबाव से दोनों पक्षों के बीच सुलह हो गई, लिहाजा पुलिस को अंतिम रिपोर्ट लगानी पड़ी। 

कई मामले गलत भी पाए गए, जिनमें पुलिस ने विवेचना के उपरांत अंतिम रिपोर्ट लगाई। पहली बार यह कानून अध्यादेश के रूप में 19 सितंबर, 2018 में आया था। वहीं 2019 में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम-2019 लागू हुआ। 

सितंबर, 2018 से 31 दिसंबर, 2022 तक के आंकड़ों की बात करें तो प्रदेश में तीन तलाक के 7,616 मुकदमे दर्ज हुए। इनमें पुलिस ने 1,266 में अंतिम रिपोर्ट लगाई और 5,434 मुकदमों में आरोपितों के विरुद्ध कोर्ट में आरोपपत्र दाखिल किए जा चुके हैं। 916 मुकदमों की विवेचना चल रही है। इन मामलों में ढाई हजार से अधिक आरोपित कार्रवाई के डर से फरार हैं।

एडीजी प्रशांत कुमार ने बताया कि तीन तलाक के मामलों में गंभीरता से जांच कर कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं। डीजीपी मुख्यालय स्तर से सभी मामलों की मानिटरिंग किए जाने के साथ ही जांच को लेकर समय-समय पर कड़े निर्देश दिए जाते हैं। जिससे पीड़ित महिलाओं को न्याय दिलाया जा सके।


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