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    'दो दिन से मैं ठीक से सोई नहीं...', शुभांशु शुक्ला को देख कांपने लगी थी उनकी मां; बहन-भाई का था ये रिएक्शन

    Updated: Tue, 15 Jul 2025 09:35 PM (IST)

    अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला की 18 दिवसीय अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) यात्रा पूरी कर लखनऊ वापसी पर खुशी की लहर दौड़ गई। सिटी मांटेसरी स्कूल में सजीव प्रसारण के दौरान उनकी मां आशा शुक्ला की आंखों में खुशी के आंसू छलक आए। परिवार शिक्षक और छात्रों ने भारत माता की जय के नारों से उनका स्वागत किया।

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    हां, अब मैं सुकून से सांस ले सकती हूं...दो दिन से मैं ठीक से सोई नहीं ...मेरे लाल शुभांशु

    गौरी त्रिवेदी, जागरण। हरषित महतारी मुनि मनहारी अदभुत रूप बिचारी... मन को हरने वाला उनका अद्भुत रूप देखकर जैसे माता कौसल्या आनंदित हो गई थीं उसी परम सुख की अनुभूति ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला की माता आशा की आंखों में दिखाई दिया। शरीर खुशी के मारे कांपने लगा, भावनाओं का समुंदर आंखों में आसुंओं के मार्ग से निकल रहा था। 

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    वह उछली और बोली मेरा लाल, मुझे भरोसा था तुम कर लोगे... इस परम सुख को देने के लिए धन्यवाद मेले लाल, भारत माता की जय। बोली यह सुख परम अनुपम है। यह बातें उन्होंने तब कहीं जब शुभांशु की वापसी का सजीव प्रसारण लखनऊ के सिटी मांटेसरी स्कूल (सीएमएस) कानपुर रोड आडिटोरियम में चल रहा था।

    वहां उनके माता-पिता, परिवारजन, शिक्षक, सैकड़ों छात्र एकटक स्क्रीन पर नजरें टिकाए बैठे थे। जैसे ही जल में अवतरण हुआ, पूरा आडिटोरियम ‘भारत माता की जय’ और ‘जय विज्ञान’ के नारों से गूंज उठा। तालियों की गूंज के बीच भावनाओं की एक लहर सी दौड़ गई, और हर आंख नमी से भरी दिखाई दी।

    कोई अपने आंसू पोंछ रहा था, कोई मोबाइल से दृश्य रिकार्ड कर रहा था लेकिन सबका दिल एक ही भाव में डूबा था गर्व। भारत के गगनपुत्र शुभांशु शुक्ला जब अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) की 18 दिवसीय यात्रा पूरी कर धरती पर लौटे, तो सिर्फ वैज्ञानिक प्रयोग पूरे नहीं हुए पूरे देश के लिए यह एक भावनात्मक विजय का क्षण बन गया।

    शुभांशु जब प्रशांत महासागर की सतह पर स्पेसएक्स के कैप्सूल से उतरे, तो उस क्षण सीएमएस सभागार में मौजूद उनकी मां आशा शुक्ला की आंखें कुछ पल को स्क्रीन पर टिकी रहीं... और फिर जैसे ही बेटे की सलामती सामने आई, उनकी आंखों से आंसू शब्द बनकर बहने लगे।

    हाथ में तिरंगा लिए हुए मां आशा शुक्ला मेरा लाल, मेला लाल कहकर भावविभोर हो गईं। छात्रों के हाथों में तिरंगा और होठों पर जय हो, जय हो, वेल डन शुभांशु भैया, जैसे स्लोगनों ने उत्साह, जोश और बधाईयों का संचार घोल दिया।

    भावनाओं का विस्फोट जब मां की प्रार्थना पूरी हुई

    माता आशा व पिता शंभु दयाल ने कहा कि दो दिन से बेटे से बात नहीं कर पाये थे। पता नहीं कैसे होगा, कब दिखेगा, वो सुरक्षित है या नहीं... यही चिंता सुबह से अंदर जली जा रही थी। सुंदरकांड का पाठ करवाया था, हनुमानजी से बेटे की सलामती मांगी थी। और अब जब स्क्रीन पर उसे बाहर आते देखा तो मेरा दिल बस कह उठा अब मैं सांस ले सकती हूं...

    मां आशा शुक्ला की आंखें उस समय सैकड़ों मांओं की आंख बन चुकी थीं। आडिटोरियम में एक त्रि-स्तरीय केक भी काटा गया, जिसमें पहला स्तर शुभांशु के प्रक्षेपण को, दूसरा आईएसएस पर प्रवास को और तीसरा धरती पर वापसी को दर्शा रहा था।

    जैसे ही केक काटा गया, तालियों की तेज गूंज और ‘जय हो’ के स्वर माहौल को और पावन बना गए। इस अवसर पर सीएमएस प्रबंधक प्रो. गीता गांधी किंगडन ने कहा शुभांशु ने सिद्ध किया कि आकाश सिर्फ देखने के लिए नहीं, छूने के लिए होता है। वो जय जगत का सच्चा उदाहरण हैं।

    संस्थापिका डा. भारती गांधी ने कहा वो अब सिर्फ हमारे नहीं, पूरे राष्ट्र के प्रेरणास्तंभ बन चुके हैं। सीएमएस अलीगंज, जहां से शुभांशु ने शिक्षा ली थी, वहां छात्रों में गजब का उत्साह था। एक छात्रा अनन्या मिश्रा ने कहा अब मुझे भी अंतरिक्ष में जाना है। वो कर सकते हैं तो मैं भी कर सकती हूं।

    वहीं 11वीं के आदित्य बोले आज वो सपना हाथ की पहुंच में दिख रहा है जो कभी दूर लगता था। हर बेटे में शुभांशु दिखने लगा है परिवार की आंखों में चमक शुभांशु के पिता शंभूदयाल शुक्ला ने भर्राए गले से कहा ये केवल मेरे बेटे की नहीं, भारत की विजय है। हर बच्चा आज शुभांशु जैसा बनना चाहता है।

    शुभांशु की यह यात्रा सिर्फ अंतरिक्ष की नहीं थी यह उस मां की प्रार्थना की, उस शिक्षक की उम्मीद की, उस छात्र की कल्पना की, और उस राष्ट्र की उड़ान की यात्रा थी जिसने अब जाना शुरू किया है कि तारे हमारे लिए हैं। यह गाथा आने वाली पीढ़ियों के लिए एक जगमगाता नक्षत्र है।

    बहन शुचि बोलीं हमें यही इमोशन चाहिए था, जो अब चेहरों पर झलक रहा है। भगवान का धन्यवाद है। चाची सीमा मिश्रा की आंखों से खुशी छलकी बोली कि आज से हमारे घर में हर बच्चा शुभांशु है। वहीं चाचा विनय शुक्ला बोले उसकी सादगी और गहराई हमें उसकी ऊंचाई से ज्यादा याद आती है। ताऊ के लड़के संजय शुक्ला ने कहा पूरा घर आज बधाइयों से गूंज रहा है।

    भाई आशीष दीक्षित बोले दिल्ली का कार्यक्रम तय है, लेकिन इस वक्त तो पूरा घर इंतजार कर रहा है कि वो कब दरवाजा खोलेगा।  इस ऐतिहासिक दिन पर शुभांशु के आवास पर गाजर का हलवा, उनकी पसंदीदा खिचड़ी और मीठे पकवान बने। घर के बाहर मिशन सफल हुआ के पोस्टर बच्चों ने खुद सजाए। मोहल्ले भर में मिठाई बंटी।

    किसी के लिए वह बेटा था, किसी के लिए प्रेरणा, और भारत मां के लिए वह आशीर्वाद है। कहा कि शुभांशु 25 जून को फाल्कन 9 राकेट से उड़ान भरकर 26 जून को आईएसएस से जुड़े थे।

    इसरो के सौंपे गए सात सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण प्रयोगों जैसे मांसपेशी पुनर्जनन, बीज अंकुरण, विकिरण प्रभाव को उन्होंने सफलतापूर्वक अंजाम दिया। ये प्रयोग भारत के आगामी गगनयान मिशन की बुनियाद हैं। अंतरिक्ष की 1.3 करोड़ किमी लंबी यात्रा करने वाला यह युवा आज देश की उम्मीदों का प्रतीक बन चुका है।

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