बालिग होने का इंतजार करना अनुकंपा नियुक्ति की अवधारणा के विपरीत, मृतक आश्रितों पर कोर्ट की टिप्पणी
यह निर्णय जस्टिस इरशाद अली की एकल पीठ ने विजय लक्ष्मी यादव की याचिका पर दिया। याचिका में कहा गया था कि याची के पिता आजमगढ जनपद में सिविल पुलिस में सिप ...और पढ़ें

लखनऊ, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने सेवा संबंधी एक मामले में कहा है कि सरकारी कर्मचारियों के आश्रितों को दी जाने वाली अनुकंंपा नियुक्ति के लिए दावेदार के बालिग होने का इंतजार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा है कि यदि मृत कर्मचारी का आश्रित वर्षों बाद अनुकंपा नियुक्ति का दावा करता है व देरी से दावे का आधार उसका उस समय बालिग नहीं होना है तो यह अनुकंपा नियुक्ति की अवधारणा के विपरीत है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि देरी से किया गया दावा अनुकंपा नियुक्ति के एकमात्र आधार को कमजोर करता है।
यह निर्णय जस्टिस इरशाद अली की एकल पीठ ने विजय लक्ष्मी यादव की याचिका पर दिया। याचिका में कहा गया था कि याची के पिता आजमगढ जनपद में सिविल पुलिस में सिपाही के पद पर तैनात थे। डाकुओं के साथ मुठभेड़ में 22 जुलाई 1985 को वह वीरगति को प्राप्त हुए। उस समय याची की उम्र मात्र 17 महीने थी। 18 वर्ष की उम्र होने के लगभग तीन साल बाद वर्ष 2005 में उसने अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन दिया। विभाग से संतोषजनक जवाब न मिलने पर लगभग 15 साल बाद उसने वर्तमान याचिका दाखिल की।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि अनुकंपा नियुक्ति एक अपवाद है। इसके तहत नियुक्ति देते समय शर्तों का सख्ती से पालन आवश्यक है। कोर्ट ने आगे कहा कि सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के कारण उसके परिवार के समक्ष आया तात्कालिक वित्तीय संकट ही अनुकंपा नियुक्ति का एकमात्र आधार है। यदि अनुकंपा नियुक्ति के दावे में देर की जाती है तो यह उपधारणा की जाएगी कि तात्कालिक वित्तीय संकट समाप्त हो चुका है। कोर्ट ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति का दावा करने वाले व्यक्ति के न तो बालिग होने का और न ही उसके अतिरिक्त शैक्षिक योग्यता अर्जित करने का इंतजार किया जा सकता है।

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