Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    Lucknow Akbarnagar Demolition: लखनऊ के अकबरनगर में ध्वस्तीकरण पर हाई कोर्ट की अंतरिम रोक, कहा- कार्रवाई की इतनी जल्दी क्यों है?

    Updated: Thu, 21 Dec 2023 10:50 PM (IST)

    कोर्ट ने राज्य सरकार व एलडीए से कहा कि पहले वहां के लोगों के पुनर्वास का आवेदन करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया जाए। इसके पश्चात पुनर्वास योजना को अपनाने वाले लोगों द्वारा कब्जा छोड़ देने पर एलडीए उनके परिसरों को कब्जे में ले सकता है। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि याची अपना स्वामित्व साबित करने में सफल नहीं हुए हैं।

    Hero Image
    अकबरनगर में अतिक्रमण गिराती एलडीए की टीम।- जागरण

    विधि संवाददाता, लखनऊ। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने कुकरैल नदी में कब्जाकर बसे अकबरनगर प्रथम एवं द्वितीय में धवस्तीकरण पर अंतरिम रोक लगा दी है। कोर्ट ने राज्य सरकार व एलडीए से कहा कि पहले वहां के लोगों के पुनर्वास का आवेदन करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया जाए। इसके पश्चात पुनर्वास योजना को अपनाने वाले लोगों द्वारा कब्जा छोड़ देने पर एलडीए उनके परिसरों को कब्जे में ले सकता है। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि याची अपना स्वामित्व साबित करने में सफल नहीं हुए हैं। यह आदेश जस्टिस पंकज भाटिया की एकल पीठ ने सैयद हमीदुल बारी सहित 46 व्यक्तियों की कुल 26 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि वहां अपेक्षाकृत गरीब लोग रह रहे हैं और यह समझ नहीं आ रहा कि इनके खिलाफ ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की इतनी जल्दी क्यों है? वह भी ठंड के इस मौसम में पुनर्वास योजना को वास्तविक तौर पर लागू किए बिना। इसके पूर्व सुबह कोर्ट के बैठते ही याचियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जेएन माथुर ने अनुरोध किया कि अकबरनगर में एलडीए और प्रशासन द्वारा ध्वस्तीकरण की कार्रवाई शुरू कर दी गई है। लिहाजा उनकी याचिकाएं जो गुरुवार को सूचीबद्ध न हो पाने के कारण रजिस्ट्री में ही हैं, उन्हें मंगाकर सुनवाई कर ली जाए।

    वहीं सरकार की ओर से कहा गया कि पहले से दो रिट याचिकाएं जस्टिस प्रकाश सिंह की पीठ में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध हैं, लिहाजा सभी याचिकाएं भेज दी जाएं। राज्य सरकार व एलडीए की दलील को दरकिनार करके जस्टिस भाटिया ने सभी याचिकाओं को कोर्ट की रजिस्ट्री से मंगाकर स्वयं सुनने का निर्णय लिया। याचियों की ओर से मुख्य रूप से दलील दी गई कि याची 40-50 सालों से उस स्थान पर कब्जे में हैं और तब यूपी अर्बन प्लानिंग एंड डेवलपमेंट एक्ट, 1973 लागू भी नहीं हुआ था लिहाजा कानून के तहत याचियों को बेदखल करने की कार्रवाई नहीं की जा सकती।

    यह भी पढ़ें: लखनऊ में अतिक्रमण हटाने बुलडोजर लेकर पहुंचा प्रशासन, व्यापारियों ने बनाया ऐसा बहाना- रोकनी पड़ गई कार्रवाई

    राज्‍य सरकार ने कहा- लोगों के पुनर्वास की भी व्यवस्था की गई है

    वहीं राज्य सरकार की ओर से मुख्य स्थायी अधिवक्ता शैलेंद्र कुमार सिंह और एलडीए की ओर अधिवक्ता रत्नेश चंद्रा ने दलील दी कि याची विवादित संपत्तियों पर अपना स्वामित्व नहीं सिद्ध कर सके हैं। कहा गया कि वहां के लोगों के पुनर्वास की भी व्यवस्था की गई है, जिसके लिए 70-80 लोगों ने पंजीकरण भी कराया है। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 22 जनवरी की तिथि नियत की है। सरकार व एलडीए याचिका पर अपना जवाब भी दाखिल कर सकते हैं।