लखनऊ में फिर बढ़ा प्रदूषण, खतरनाक स्तर पर AQI; तालकटोरा-चारबाग और गोमतीनगर की भी स्थिति गंभीर
लखनऊ में वायु प्रदूषण का स्तर फिर से बढ़ गया है, जिससे शहर की हवा की गुणवत्ता खराब हो गई है। इंदिरा नगर सबसे प्रदूषित इलाका रहा, जहाँ वायु गुणवत्ता सूचकांक 308 तक पहुँच गया। निर्माण कार्य और धूल के कारण प्रदूषण बढ़ रहा है, जिससे लोगों को सांस लेने में तकलीफ हो रही है। विशेषज्ञों ने प्रदूषण रोकने के लिए कई उपाय सुझाए हैं।

जागरण संवाददाता, लखनऊ। राजधानी में वायु प्रदूषण फिर खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है, जिससे शहर की वायु गुणवत्ता खराब हो गई है। सोमवार को इंदिरानगर सर्वाधिक प्रदूषित इलाका रहा, जहां वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआइ) रिकार्ड 308 पहुंच गया। यही नहीं, लालबाग, चारबाग और गोमतीनगर में भी स्थिति गंभीर रही।
इन क्षेत्रों में भी एक्यूआइ 250 से अधिक रिकार्ड किया गया। यदि धूल नियंत्रण, निर्माण स्थलों की निगरानी और पुराने वाहनों पर सख्त कार्रवाई नहीं की गई तो लखनऊ की स्थिति भी दिल्ली जैसी हो सकती है। शहर में मिट्टी के डंपिंग सहित अन्य निर्माण गतिविधियाां जारी हैं, जिससे मिट्टी और निर्माण सामग्री खुले में पड़े रहते हैं, जिससे प्रदूषण बढ़ रहा है।
वायु की गुणवत्ता खराब होने के चलते लोगों को सांस लेने में दिक्कत और आंखों में जलन जैसी स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं, खासकर अस्थमा और हृदय रोगियों के लिए यह हानिकारक है। यही वजह है कि पिछले एक सप्ताह में अस्पतालों में सांस की तकलीफ, सीने में जकड़न, तेज खांसी, अस्थमा अटैक और हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी है।
लखनऊ की वायु गुणवत्ता सूचकांक लगातार दूसरे दिन 300 के पार दर्ज किया गया, जो खतरनाक माना जाता है। पिछले 14 दिनों में हवा लगातार खराब होती गई है। शाम के समय पीएम-10 और पीएम-2.5 का स्तर तीन गुणा तक अधिक पाया गया। वरिष्ठ मौसम वैज्ञानिक अतुल कुमार सिंह का कहना है कि कम तापमान और धीमी हवा प्रदूषण को नीचे रोक देती है।
धुंध की चादर छाने से हवा में जहरीले कण और घुल जाते हैं, जिससे श्वसन रोगियों की परेशानी बढ़ती है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के रिकार्ड के अनुसार, चारबाग 286, लालबाग 280, गोमतीनगर 258 और कुकरैल पिकनिक स्पाट में एक्यूआइ का स्तर 252 दर्ज किया गया, जो गंभीर श्रेणी में आता है।
प्रदूषण बढ़ने के कारण
केजीएमयू में रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष प्रो. सूर्यकांत के मुताबिक, शहर में अनियंत्रित धूल, कूड़े व पराली का जलना, पुराने वाहन, कुछ क्षेत्रों में पर्याप्त निगरानी की कमी और लंबा ट्रैफिक वायु प्रदूषण में विशेष योगदान देते हैं। इससे सर्दियों के आते ही तापमान और आर्द्रता बढ़ जाती है। यदि इन कारकों पर सालभर प्रभावी कार्य किया जाए तो सर्दियों में प्रदूषण इतना गंभीर नहीं होगा। उद्योगों से निकलने वाला धुआं और हरित क्षेत्रों व तालाबों की कमी भी वायु प्रदूषण में वृद्धि कर रहे हैं।
आम लोग भी बनें जिम्मेदार
लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष प्रो. अजय कुमार वर्मा का कहना है कि सरकार के आदेश और निर्देश की बजाय, जिम्मेदार लोगों को स्वयं नियमों का पालन करना चाहिए। गैर-सरकारी संगठन भी इसके लिए आगे आएं और जनता में जागरूकता बढ़ाने के लिए जमीनी स्तर पर काम करें। उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई के लिए पूरे साल नियमित अभियान चलाने की जरूरत है, जैसा बाकी देशों में होता है।
प्रदूषण रोकने के लिए ये उपाय जरूरी
-मोबाइल धूल नियंत्रण इकाइयां स्थापित हों
-निगरानी के लिए ड्रोन का इस्तेमाल हो
-निर्माण स्थलों की लाइव ट्रैकिंग जरूरी है
-प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों का स्वचालित चालान हो
-स्कूलों और कालेजों में जागरूकता अभियान चलाएं

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