यूपी में मौसम की मार से परेशान किसान, वैज्ञानिकों का निर्देश- जलवायु परिवर्तन के अनुकूल ही करें खेती
जलवायु परिवर्तन और मौसम का बुरा असर किसानों पर लगातार बढ़ता जा रहा है। प्रदेश में लगभग 13 लाख हेक्टेेयर भूमि ऊसर प्रभावित है और साथ ही जलवायु में हो रहे परिवर्तन से ऐसी भूमि पर खेती करना जोखिम भरा हो गया है।

लखनऊ, जागरण संवाददाता। जलवायु परिवर्तन और अस्थिर मौसम का बुरा असर कृषि पर लगातार बढ़ता जा रहा है। कभी मानसून की मार हो या सूखे की तबाही, कृषि को अनिश्चित मौसम से जूझना पड़ रहा है जिसके फलस्वरूप कृषि उत्पादन में कमी हो रही है। प्रदेश में लगभग 13 लाख हेक्टेेयर भूमि ऊसर प्रभावित है और साथ ही जलवायु में हो रहे परिवर्तन से ऐसी भूमि पर खेती करना जोखिम भरा हो गया है।
इन समस्याओं से निपटने के लिए और वास्तविक स्थिति को जानकार उत्तम खेती करने के लिए किसान सहभागिता बहुत जरूरी है। इसके लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल के सहयोग और पुरानी जेल रोड स्थित क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र की पहल पर किसानों को जलवायु के अनुकूल खेती के बारे में जानकारी दी गई।
तीन दिवसीय कार्यशाला के दौरान प्रधान वैज्ञानिक डा. रंजय कुमार सिंह व डा. अतुल कुमार सिंह की अगुआई में वैज्ञानिकों की टीम ने तीन दिवसीय दौरा कर उन्नाव एवं हरदोई जिले के ऊसर प्रभावित क्षेत्रों में किसानों से मुलाकात की और खेती में आ रही चुनौतियों की समीक्षा भी की। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन की परिस्थिति को देखते हुए कृषक सहभागिता आधारित परियोजना को उन्नाव एवं हरदोई जिले में पायलट स्तर पर कुछ गावों में शुरू करने की योजना है।
किसान सहभागिता आधारित स्थानीय समस्याओं और संसाधनों को देखते हुए वैज्ञानिक पद्धतियों का समावेश खेती में किया जाएगा। इसके तहत किसानों के ज्ञान का गठजोड़ वैज्ञानिक और दूसरे हित धारकों के साथ किया जा रहा है जिससे किसानाें का समूह बना कर सीखने-सिखाने कि प्रक्रिया को मजबूत किया जा सके। ऊसर भूमि में कृषि की विद्यमान पद्धतियों में उपयुक्त बदलाव लाए और एवं कृषक अपनी जीविका को मजबूत कर सकें।
वैज्ञानिकों के साथ होगी किसानों की बैठक : प्रकृति के अनुरूप खेती कैसे करें इसके लिए अनुसंधान संस्थान के विज्ञानी किसानों के साथ बैठक करेंगे। इस पूरी प्रक्रिया को वर्तमान के बदलते मौसम, ऊसर जमीन का प्रभाव, शिक्षा का अभाव, गरीबी तथा संस्थागत चुनौतियों को कृषक सहभागिता के आधार पर सामूहिक रूप से अवलोकन किया जाएगा। जोखिम के केंद्र बिंदुओं को किसानों द्वारा बताया जाएगा।
सर्वमान्य रणनीतियों के आधार पर जोखिमों का कम किया जाएगा। वैज्ञानिक डा. अतुल कुमार सिंह के नेतृत्व में डा. संजय अरोड़ा, डा. अर्जुन, डा. रवि किरण के सहयोग से प्रशिक्षण दिया गया। करनाल स्थित केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान के निदेशक डा. प्रबोध चंद्र शर्मा और डा. दामोदरन के मार्गदर्शन एवं प्रशासनिक सहयोग से प्रशिक्षण दिया गया।
ढैंचे का उपयोग बढ़ाने पर बल : जलवायु परिवर्तन के अलावा ऊसर मृदा संबंधित चुनौतियों से खेती प्रभावित हो रही है। जिसमें किसानों द्वारा इंगित मुख्य अवरोधक उत्तम बीज की उपलब्धता न होना, ऊसर सुधार के लिए पर्याप्त जिप्सम की कमी, सिंचाई के साधनों की कमी, कृषि संबंधित सूचना एवं नई तकनीकों की जानकारी का अभाव भी मुख्य कारण हैं। इससे निपटने के लिए ढैंचे को हरी खाद के रूप में उपयोग करने और खेत की मेड़ों को मजबूत करने पर बल दिया गया।
गोबर की खाद का उपयोग बढ़ाना, फसल अवशेष को मिट्टी में मिलना, जलखुंभी को मिट्टी में मिलाना एवं कृषकों का समूह बनाकर कृषि सूचनाएं और संस्थागत संसाधनों का उपयोग मात्र बढ़ाने से विभिन्न पर्यावरणीय एवं खेती संबंधित कारकों के दुष्प्रभाव को कम करने पर बल दिया गया। केंद्र द्वारा अगले दो से तीन वर्षो में जलवायु अनुकूल उत्तम खेती कि तकनीकों का प्रदर्शन कर कृषकों को प्रोत्साहित का चुनौतियों से निपटने में समृद्ध किया जाएगा।
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