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    लखनऊ के गोरखा रेजीमेंट ने देश को दी बहादुरों वाली सेना, इन जांबाजों ने लिखी शौर्य गाथा

    By Divyansh RastogiEdited By:
    Updated: Fri, 01 Jan 2021 02:55 PM (IST)

    लखनऊ 11 गोरखा रेजीमेंटल सेंटर का 73वां स्थापना दिवस आज। सेना की 11 गोरखा राइफल्स की पहली यूनिट की स्थापना 1918 में हुई थी। जांबाज कैप्टन मनोज पांडेय ...और पढ़ें

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    लखनऊ : 11 गोरखा रेजीमेंटल सेंटर का 73वां स्थापना दिवस आज।

    लखनऊ [निशांत यादव]। वीरता का सर्वोच्च पदक हासिल करने वाले कैप्टन मनोज पांडेय हों या फिर एलएमजी से पाकिस्तानी लड़ाकू विमान को मार गिराने वाले राइफलमैन धन बहादुर राई। ऐसे ही जांबाजों की शौर्य गाथा से गोरखा रेजीमेंट भरी हुई है। देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) बनने वाले जनरल बिपिन रावत भी इसी रेजीमेंट का हिस्सा रहे हैं। शुक्रवार को लखनऊ छावनी स्थित 11 गोरखा राइफल्स रेजीमेंटल सेंटर अपनी स्थापना की 73वीं वर्षगांठ मनाएगा। 

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    सेना की 11 गोरखा राइफल्स की पहली यूनिट की स्थापना 1918 में हुई थी। स्वतंत्रता के समय गोरखा की चार बटालियन ब्रिटिश सेना के साथ इंग्लैंड चली गई। भारतीय सेना ने एक जनवरी 1948 को नए सिरे से पालमपुर में 11 गोरखा राइफल्स रेजीमेंटल सेंटर की स्थापना की। यहां से सेंटर दार्जिलिंग के जालाफर और देहरादून के क्लेमेंटाउन कैंट शिफ्ट किया गया। इसके बाद 1960 में लखनऊ छावनी में 11 गोरखा राइफल्स रेजीमेंटल सेंटर शिफ्ट हो गया। पिछले साल रेजीमेंटल सेंटर के पुनर्मिलन समारोह में सीडीएस जनरल बिपिन रावत भी शामिल हुए थे।  

    इन जांबाजों ने लिखी शौर्य गाथा 

    कैप्टन मनोज पांडेय

    कैप्टन मनोज पांडेय ने कारगिल युद्ध में अपनी जांबाजी से दुश्मनों को पीछे हटने पर मजबूर किया था। उनको वीरता का सर्वोच्च पदक परमवीर चक्र (मरणोपरांत) प्रदान किया गया। खालूबार में ऊंची चोटी पर पाकिस्तानी कब्जे से बंकर को मुक्त कराते हुए कैप्टन मनोज पांच जुलाई 1999 को वीर गति को प्राप्त हुए थे। 

    राइफलमैन सुनील जंग 

    पिता की तरह सेना में शामिल होने वाले सुनील जंग को 11 गोरखा राइफल्स रेजीमेंट में तैनाती मिली। मात्र 16 साल की उम्र में सुनील जंग सेना के जवान बन गए। कारगिल युद्ध के दौरान राइफलमैन सुनील जंग को 10 मई 1999 को उसकी 1/11 गोरखा राइफल्स की एक टुकड़ी के साथ कारगिल सेक्टर पहुंचने के आदेश हुए। तीन दिनों तक राइफलमैन सुनील जंग दुश्मनों का डटकर मुकाबला करते रहे। वहां 15 मई को 1999 को सुनील जंग दुश्मनों से लड़ते हुए बलिदानी हो गए। 

    राइफलमैन धन बहादुर राई 

    सात दिन सन 1971 को पश्चिमी मोर्चे के पुल बजुआन क्षेत्र में पाकिस्तानी लड़ाकू विमान आसमान में मंडरा रहे थे। वहां तैनात 1/11 गोरखा राइफल्स रेजीमेंटर सेंटर की जांबाज टुकड़ी में राइफलमैन धन बहादुर राई अपनी लाइट मशीन गन से डटे हुए थे। उनकी रेंज में जैसे ही एक पाकिस्तानी लड़ाकू विमान आया। राइफलमैन धन बहादुर राई ने उस पाकिस्तानी लड़ाकू विमान को अपने अचूक निशाने से गिरा दिया। 

    ले. हरी सिंह बिष्ट 

    3/11 गोरखा राइफल्स के जांबाज ले. हरी सिंह बिष्ट ने कश्मीर घाटी में तैनाती के दौरान आतंकियों के खिलाफ कई ऑपरेशन किए। उन्होंने ऑपरेशन रक्षक के दौरान कई आतंकी मारे। ऑपरेशन के दौरान 21 जुलाई सन 2000 को आतंकियों का सफाया करते हुए ले. हरी सिंह बिष्ट ने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया। 

    इतने मिले पदक 

    कारगिल युद्ध में 1/11 गोरखा राइफल्स के कैप्टन मनोज पांडेय को परमवीर चक्र, कैप्टन एमबी राई, राइफलमैन साल बहादुर व कैप्टन पुनीत दत्त को अशोक चक्र प्रदान किया गया। रेजीमेंट को एक मिलिट्री क्रॉस, तीन अशोक चक्र,एक पदम विभूषण, सात पीवीएसएम, दो महावीर चक्र, नौ एवीएसएम,11 वीरचक्र, पांच शौर्य चक्र, 35 सेना मेडल, 14 वीएसएम और 18 मेंशन इन डिस्पैच से सम्मानित किया गया है।