लिखना जरूरी है: 'मम्मा-पापा' आइपीएस नहीं बनना, मुझे करना है 'बिजनेस' Lucknow News
संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौते की 30वीं वर्षगांठ के अवसर पर समाज में बाल अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के इस प्रयास में दैनिक जागरण और यूनिसेफ की साझा पहल।
मम्मा-पापा,
जो स्थान आपके दिल में दादा-दादी के लिए है, ठीक उसी तरह आप मेरे लिए अहमियत रखते हैं। आप दोनों ने हर कठिन मोड़ पर मेरा मार्गदर्शन कर सफलता की बुलंदियों को छूने का बल दिया है। इसी अधिकार से आज मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूं। आपने मुङो आइपीएस बनाने का सपना देखा है, लेकिन मेरी मंजिल कुछ और है। प्लीज, अब आप मुङो आइपीएस बनाने की जिद छोड़ दें। मैं एक बड़ी व्यवसायी बनकर आपका नाम रोशन करना चाहती हूं। वादा करती हूं कि आपका सिर नहीं झुकने दूंगी।
मम्मी-पापा, जरा सोचिए कि अगर बेमन प्रयास से आइपीएस नहीं बन पाई, उस समय तो मेरे पास सोचने के लिए भी कुछ नहीं होगा। मैं आप दोनों के आशीर्वाद से एक बड़ी व्यवसायी बनकर विश्व पटल पर आपका नाम रोशन आसानी से कर सकती हूं। प्लीज आप यह बात समङिाए और मेरा साथ दीजिए।
पापा, मैं चाहती हूं कि आप मुङो आशीर्वाद दें, मुङो खुद अपना रास्ता चुनने एवं बनाने का अवसर दें। चाहे वह रास्ता कठिन ही क्यों न हो। मैं विनम्रतापूर्वक आपसे आग्रह करती हूं कि आप मेरी राय जानें कि मैं जीवन में क्या करना चाहती हूं। पापा, आप इंस्पेक्टर हैं इसलिए आपका सोचना सही है कि बेटी आइपीएस बनकर आपसे ऊंचे पद पर बैठे। जहां तक मैं जानती हूं कि एक आइपीएस अफसर के सामने कभी ऐसी भी परिस्थितियां आती हैं कि जब उसे दबाव में भी कोई निर्णय लेना होता है, चाहे उस बात के लिए उसका दिल भले ही न गंवारा कर रहा हो। पापा मैं दबाव में नहीं रहना चाहती। मैं पक्षी की तरह खुले आसमान में उड़कर अपने भविष्य के सपने बुन रही हूं।
एक बात और कहना चाहती हूं। मेरे परीक्षा परिणामों की तुलना सहेलियों से न करें। मैं हमेशा कक्षा में सबसे अच्छे अंक पाने के लिए नहीं पढ़ती हूं। मैं भले ही गणित और विज्ञान में अव्वल नहीं, लेकिन मुझमें एक व्यवसायी जरूर छिपा हुआ है। मुङो इस बात का अफसोस है कि आपके प्यार, योगदान एवं त्याग की भरपाई आइपीएस अफसर बनकर नहीं कर पाऊंगी। फिर भी मेरा आपसे एक वादा है कि मैं व्यवसाय के क्षेत्र में सवरेत्तम प्रयासों से आप दोनों को गौरवान्वित करूंगी। भविष्य में आप दोनों खुद मुङो अभिमान भरी आंखों से देखकर पीठ थपथपाएंगे। पापा, पिछले साल आपको बिना बताए ही आबीटी (इंटरनेशनल बेंचमार्क टेस्ट) दिया था। इसमें अंग्रेजी में 99.99 फीसद लाकर विश्व में द्वितीय रैंक लाई। तब आप दोनों की आंखे भर आई थीं। मुङो काफी देर तक दुलार किया था। बहुत खुश हुए थे आप दोनों। पापा मेरा साथ दें और मुझपर विश्वास रखें। अगर मैंने आपका दिल दुखाया हो तो उसके लिए क्षमा मांगती हूं। आप दोनों ही मेरे सबकुछ हैं।
आपकी लाडली
स्नेहा
स्नेहा सिंह
[कक्षा 10, सीएमएस गोमतीनगर विस्तार]
बच्चों को कुंठित होने से बचाएं
प्रतिस्पर्धात्मक के वातावरण में छात्रों पर यह दबाव रहता है कि वह अपने विषय क्षेत्र में अग्रणी रहें। माता-पिता और संस्थानों का यह दबाव ही छात्रों में तनाव उत्पन्न करता है। प्राथमिक स्तर से ही यह दबाव छात्रों पर पड़ने लगता है। कक्षा में प्रथम आने से लेकर सांस्कृतिक और कलात्मक क्रियाकलापों में सक्रिय रहने का दबाव छात्रों से उनकी नैसर्गिक प्रतिभा छीन लेता है। माध्यमिक स्तर तक आते-आते बहुत से छात्र कुंठा का शिकार हो जाते हैं। माता-पिता की इच्छानुसार चयनित विषयों को पढ़ने के लिए बाध्य छात्र इसी के चलते भटकाव की ओर अग्रसर हो जाते हैं। कक्षा नौ से बारह तक के छात्रों में भटकाव की सबसे अधिक संभावना होती है। शारीरिक और मानसिक परिवर्तन उनके मस्तिष्क में ढेरों प्रश्न उत्पन्न करते हैं। ऐसी स्थिति में पढ़ाई से विचलित होना स्वाभाविक है।
(शिप्रा खरे)
कॅरिअर काउंसलर
सुझाव
छात्रों के नैसर्गिक गुणों को निखारने के लिए कार्यशालाएं होनी चाहिए।
परिवार स्वयं उन गुणों को सराहें और भरपूर सम्मान दें।
शिक्षक छात्रों से मित्रवत व्यवहार करें।
समस्याएं
बच्चों में एकाग्रता बहुत कम हो जाती है।
छात्र स्वयं को उपेक्षित महसूस करते हैं और बहुत से गलत कदम उठा लेते हैं।
इंटरनेट की जानकारी को बालमन दवा के तौर पर लेता है, जो घातक बन जाता है।
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