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महाशिवरात्रि: भोले की बूटी बड़े काम की जड़ी-बूटी, जानें रेशों में भी छिपे हैं कई फायदे

वैज्ञानिकों ने भांग के औषधीय व अन्य गुणों को देखते हुए कम नशे वाली किस्म की खोज शुरू की।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Mon, 04 Mar 2019 01:55 PM (IST)Updated: Tue, 05 Mar 2019 09:19 AM (IST)
महाशिवरात्रि: भोले की बूटी बड़े काम की जड़ी-बूटी, जानें रेशों में भी छिपे हैं कई फायदे

लखनऊ, [रूमा सिन्हा]। भोले की बूटी यानी भांग उन्हें यूं ही प्रिय नहीं है। इस बूटी में तमाम औषधीय गुण हैं। तभी प्रसाद के रूप में भोले के भक्त भी भांग का सेवन करते हैं। वैज्ञानिकों की मानें तो इसमें मौजूद नशे के तत्व छोड़ दें तो भांग लाजवाब औषधीय गुणों से भरपूर है। साथ ही इसका रेशा (फाइबर) व बीज भी बेहद महत्वपूर्ण हैं। यही वजह है कि चीन, अमेरिका सहित अन्य देश भांग पर अपनी निगाह गड़ाए हैं।

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भारत में नशा होने के कारण नारकोटिक्स विभाग इसे उगाने की अनुमति नहीं देता। ऐसे में वैज्ञानिकों की कोशिश अब ऐसी वैरायटी विकसित करने की है, जो नशे से मुक्त हो जिसे उगाने के लिए किसी अनुमति की जरूरत ही न पड़े। इसका सीधा लाभ यह होगा कि भांग के औषधीय व अन्य गुणों का लाभ जनहित में किया जा सकेगा।


बड़ी काम की है यह बूटी 

राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआइ) ने मुंबई व भुवनेश्वर स्थित कंपनी के सहयोग से इस बेहद महत्वपूर्ण औषधीय पौधे पर शोध के लिए ‘कैनेबिस रिसर्च सेंटर’ स्थापित किया है। एनबीआरआइ के निदेशक प्रो.एसके बारिक बताते हैं कि भांग हमारे यहां रेलवे लाइन, सड़क किनारे यूं ही लगी दिखाई देती है। यही नहीं, भांग को लेकर आम लोगों में भ्रांति भी है। लोग समझते हैं कि इसका इस्तेमाल नशे के लिए होता है। लोग नहीं जानते कि यह तंत्रिका तंत्र की कई बीमारियां जैसे पार्किंसन, अल्जाइमर के साथ-साथ कैंसर के मरीजों जिनकी कीमो होती है, उनके लिए भी फायदेमंद है। इसका बीज प्रोटीन का बड़ा स्नोत है।

रेशे में छिपा हैं कई फायदे 

यहां तक कि इसका रेशा (फाइबर) बेहद कोमल व मजबूत होने के कारण मर्सिडीज जैसी गाड़ियों के साथ-साथ, ठंडक से बचाव के लिए दस्तानों व मोजे आदि बनाने में प्रयोग होता है। ऐसे में इसकी खेती न होने के कारण लोग इसके तमाम फायदों से महरूम हैं।

प्रो.बारिक बताते हैं कि केनेबिस यानी भांग के देश में उपलब्ध प्रजातियां में से ऐसी वैरायटी का चयन किया जाएगा, जिसमें मौजूद नशीला तत्व टेट्रा हाइड्रो केनेबिनॉल (टीएचसी) तीन फीसद से कम हो, जिससे इसे उगाने पर नारकोटिक्स विभाग की कोई पाबंदी न हो। उन्होंने बताया कि एनबीआरआइ को केनेबिनॉयड व टीएचसी की नापजोख के लिए भी मान्यता दी गई है। संस्थान के अथक प्रयासों के फलस्वरूप उत्तर प्रदेश सरकार व उत्तराखंड सरकार ने औषधीय उद्देश्य को पूरा करने के लिए भांग की खेती को अनुमति भी दी है।

नशा नहीं ठोड़ी मात्रा लेने से ब्रेन रहेगा एक्टिव 

वैज्ञानिक बताते हैं कि हमारे यहां भांग को लेकर लोगों में बड़ी भ्रांति है, लेकिन यदि सूक्ष्म मात्र में इसे लिया जाए तो ब्रेन एक्टिव रहता है। इसके अलावा कैंसर, लकवा, पार्किंसन, अल्जाइमर के मरीजों में इसे काफी प्रभावी पाया गया है। यही वजह है कि यूरोप में तो 15 से 20 ग्राम तक रखने की इजाजत भी है। बताते हैं कि कैंसर मरीजों को दर्द से राहत दिलाने के लिए मार्फीन दी जाती है लेकिन, भांग में मार्फीन जैसे दुष्प्रभाव नहीं होते और असर अधिक होता है।


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