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    KGMU : फेफड़े की दुर्लभ बीमारी से पीड़ित था युवक, केजीएमयू में मिला जीवनदान

    Updated: Thu, 10 Jul 2025 06:48 PM (IST)

    Great Initiative of Doctors of KGMU लखनऊ निवासी अनिरुद्ध (40) को लंबे समय से सांस फूलने खांसी की दिक्कत थी। गंभीर स्थिति में मरीज को केजीएमयू में रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में आक्सीजन सपोर्ट पर भर्ती किया गया। यहां डा. एसके वर्मा और डा. राजीव गर्ग की निगरानी में इलाज शुरू हुआ।

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    फेफड़े की दुर्लभ बीमारी से पीड़ित था युवक, केजीएमयू में मिला जीवनदान

    जागरण संवाददाता, लखनऊ : किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के डाक्टरों ने दुर्लभ बीमारी से जूझ रहे युवक का पुनर्जन्म कराया है। मरीज पल्मोनरी एल्वियोलर प्रोटीनोसिस (पीएपी) से पीड़ित था और लंबे समय सेआक्सीजन सपोर्ट पर था।

    पीएपी फेफड़ों का दुर्लभ रोग है, जिसके कारण मरीज के फेफड़ों में वायुकोष बंद हो जाते हैं। सांस लेने में तकलीफ और खांसी इस बीमारी के सबसे आम लक्षण हैं। युवक का इलाज होल लंग लवरेज (डब्ल्यूएलएल) विधि से किया गया। संपूर्ण फेफड़े की धुलाई एक विशिष्ट प्रक्रिया है, जिसमें फेफड़ों को धोने के लिए खारे पानी के घोल का उपयोग किया जाता है। फेफड़ों में प्रोटीन और चिकनाई युक्त गाढ़े पदार्थ को अलग-अलग दिनों में स्लाइन व दूसरी दवाओं से साफ किया गया।

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    केजीएमयू के चिकित्सा अधीक्षक और जनरल सर्जरी विभाग में प्रो. डा. सुरेश कुमार के मुताबिक, लखनऊ निवासी अनिरुद्ध (40) को लंबे समय से सांस फूलने, खांसी की दिक्कत थी। गंभीर स्थिति में मरीज को रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में आक्सीजन सपोर्ट पर भर्ती किया गया। यहां डा. एसके वर्मा और डा. राजीव गर्ग की निगरानी में इलाज शुरू हुआ। जांच रिपोर्ट में युवक को दुर्लभ बीमारी पीएपी की पुष्टि हुई। शुरुआत में मरीज को हाई फ्लो नेजल से आक्सीजन दी गई। साथ ही खून व फेफड़ों की जांच के लिए एचआरसीटी स्कैन कराया गया।

    उन्होंने बताया कि बीमारी का दुष्प्रभाव मरीज के दोनों फेफड़ों पर था। यही नहीं, पल्मोनरी एल्वियोलर प्रोटीनोसिस की भी पुष्टि हुई। ऐसी स्थिति में मरीज के खून में आक्सीजन की कमी हो जाती है। ब्रोंकोएल्वोलर लावेज किया गया। जिसमें दुलर्भ बीमारी पीएपी की पुष्टि हुई। रोग की जटिलता को देखते हुए होल लंग लावेज करने का निर्णय लिया गया।

    डा. सुरेश के अनुसार, पीएपी होने पर खून में आक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। ऐसे में मरीज को सांस फूलने, खांसी की परेशानी होने लगती है। होल लंग लावेज इस बीमारी में प्रभावी प्रक्रिया है। यह दो चरणों में की गई। 13 जून को दाहिने फेफड़े का लावेज किया, जबकि सात जुलाई को बाएं फेफड़े का लावेज किया गया।

    लावेज प्रक्रिया में मरीज के फेफड़े को स्लाइन से धोकर अंदर जमा पदार्थ को पूरी तरह से निकाला जाता है। केजीएमयू के इतिहास में पहली बार होल लंग लावेज प्रक्रिया से मरीज की जान बचाने में मदद मिली है। दरअसल, मरीज व्यावसायिक पृष्ठभूमि से है। पत्थर ब्लास्टिंग इंडस्ट्री में लंबे समय तक काम करने से फेफड़ों की बीमारी का खतरा रहता है। इलाज में एनेस्थीसिया विभाग की डा. शेफाली गौतम, डा. विनीता सिंह, डा. कृतिका यादव व डा. राहुल ने भी सहयोग किया।