Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Independence Day 2022: हजारों लाशों के बीच लाहौर से लखनऊ का सफर, कुछ ऐसी थी विभाजन की विभीषिका

    By Anurag GuptaEdited By:
    Updated: Sat, 13 Aug 2022 05:46 PM (IST)

    India Pakistan Partition अविभाजित भारत के लाहौर में 30 नवंबर 1932 को जन्में विद्या सागर गुप्त ने 1947 की विभाजन की विभीषिका को परिवार के साथ झेला। 16 अगस्त 1947 को उनका परिवार लाहौर में सब कुछ छोड़कर भारत आया था।

    Hero Image
    India Pakistan partition: विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस 14 अगस्त पर विशेष।

    लखनऊ, [दुर्गा शर्मा]। जरा सोचिए, अपनी कोठी, फैक्टरी और दुकानें सब कुछ छोड़कर एकाएक भागना पड़े तो उस व्यक्ति की पीड़ा का अंदाजा लगाना मुश्किल है। अनेकों परिवारों ने विभाजन के कारण उपजी इस त्रास्दी को भोगा है। अविभाजित भारत के लाहौर में 30 नवंबर 1932 को जन्में विद्या सागर गुप्त भी उनमें से एक हैं। 1947 की विभाजन की विभीषिका को उन्होंने अपने परिवार के साथ झेला है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    16 अगस्त 1947 को उनका परिवार लाहौर से सब कुछ वहीं छोड़कर भारत आया। परिवार लखनऊ में बसा और यहां फिर से मेहनत और लगन से सब कुछ स्थापित किया। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सहयोगी रहे विद्या सागर गुप्त तीन बार उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य रहे।

    सामाजिक और धार्मिक कामों में बढ़ चढ़ कर योगदान करने वाले राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त विद्या सागर गुप्त प्राविधिक शिक्षा परिषद के अध्यक्ष हैं। साथ ही रंगमंच संस्था दर्पण लखनऊ का नेतृत्व 1973 से निरंतर कर रहे हैं। विद्या सागर गुप्त ने विभाजन त्रास्दी समेत अपने जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं को अपनी पुस्तक स्मृतियां में लिपिबद्ध भी किया है।

    विद्या सागर गुप्त के अनुसार लाहौर में रेलवे रोड में गांधी स्कावयर मोहल्ले में करीब 700 घर थे, वहीं पर हम भी रहते थे। पिता हरभज राम की दो फैक्टरी, दो दुकानें और दो कोठियां थीं। पिता दोस्तों को यही कहते थे कि हम तो लाहौर छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। फिर 14 को पाकिस्तान और 15 अगस्त को हिंदुस्तान की आजादी मिली। 16 अगस्त को सुबह आठ बजे एसपी हमारे घर पर आए, वह पिताजी के दोस्त भी थे।

    एसपी बोले कि गोपनीय सूचना मिली है कि एक हफ्ते के अंदर तुम्हारे पूरे परिवार का कत्ल कर दिया जाएगा। आज हिंदू पुलिस अमृतसर जा रही और अमृतसर की मुसलमान पुलिस यहां आ रही। दो बजे पुलिस का काफिला चलेगा, मैं उसका इंचार्ज हूं। एससी साहब ने पिताजी से कहा कि तुम्हारे पास दो कारें हैं, अपने परिवार को उन कारों में लेकर वहां पहुंच जाओ, मैं उसे पुलिस के काफीले में लगा दूंगा। दोपहर 12 बजे के करीब हम सब लोग घर पर मौजूद कैश और ज्वैलरी लेकर वहां से चल दिए। मैं तब 15 साल का था। हजारों लाशों के बीच में से हम लाहौर से अमृतसर पहुंचे।

    अमृतसर में हमारी बहन रहती थी, हम दो दिन वहां रहे। लखनऊ में भी रिश्तेदार थे, इसलिए भी हम यहां आ गए। यहां आकर एक नई शुरुआत करनी थी। हम लोगों के पास कैश और ज्वैलरी थी। पिताजी ने ऐशबाग में फैक्टरी शुरू कर दी। जिंदगी पटरी पर आने लगी। फिर 1959 में एक सड़क दुर्घटना में पिताजी का निधन हुआ। 1960 में पिताजी की स्मृति में अस्पताल बनवाया।

    जब फिर से परिवार के साथ पहुंचा लाहौर : विद्या सागर सितंबर 2012 में परिवार को लेकर लाहौर गए थे। विद्यासागर ने बताया कि परिवार वाले लाहौर की कोठी, फैक्टरी आदि देखने को उत्सुक थे। तमाम प्रयासों के बाद मैं परिवार के साथ लाहौर गया, चार दिन वहीं रहा। हम वह कोठी देखने भी गए, जिसे हमें छोड़कर भागना पड़ा था। उस परिवार से भी वार्ता की, जो वहां रह रहा। बाद में करीब छह महीने बाद उस कोठी में अब रह रहे परिवार ने मुझे वाट्सएप पर एक फोटो भेजी, जिसमें कोठी में मेरे नाम की नेमप्लेट लगी दिखी। सजल नयनों में कई स्मृतियां फिर तैरने लगीं...।

    comedy show banner
    comedy show banner