Jagran Samvadi: अंतिम सत्र में राहगीर ने देर रात गिटार के संग सुनाए कई गीत, मस्ती भरे गानों ने जीता आडियंस का दिल
दैनिक जागरण के संवादी का आखिरी सत्र घुमक्कड़ कलाकार गायक कवि राहगीर के नाम रहा। रविवार की शाम को यादगार बनाते हुए राहगीर ने अपने श्रेष्ठ गानों से पूरी महफिल लूट ली। लोग गानों की फरमाइश करते गए। वह एक- एक सुनाते गए। गानों के बीच में जुमले गानों के लिरिक्स और मजेदार बातों ने सभी का भरपूर मनोरंजन किया।

विवेक राव, लखनऊ। दैनिक जागरण के संवादी का आखिरी सत्र घुमक्कड़ कलाकार, गायक, कवि राहगीर के नाम रहा। रविवार की शाम को यादगार बनाते हुए राहगीर ने अपने श्रेष्ठ गानों से पूरी महफिल लूट ली। लोग गानों की फरमाइश करते गए। वह एक- एक सुनाते गए।
गानों के बीच में जुमले, गानों के लिरिक्स और मजेदार बातों ने सभी का भरपूर मनोरंजन किया। मंच पर आते ही गिटार हाथ में थामे जब उन्होंने मधुर आवाज में गुनगुनाया ‘अभी पतझड़ नहीं आया’ तो भारतेंदु नाट्य अकादमी के सभागार में लोगों ने तालियां बजाकर उनका स्वागत किया।
राहगीर का असली नाम सुनील गुर्जर है। राजस्थान के रहने वाले राहगीर को अपने गाने ‘आदमी बावला है कुछ भी चाहता’ से पहचान मिली थी। खुद गीत और कविता लेकर उसे आवाज देने वाले राहगीर का हर गीत समाज का संदेश देता है।
उन्होंने अपने गीत को आगे बढ़ाया कि ‘अभी है बाप जिंदा, बेटे बंटवारे को लड़ गए.... भाई राहगीर कौन सी गाड़ी में चढ़ गए’। लोगों से तालियां लेते हुए राहगीर ने सुनाया कि ‘एक आलसी दोपहर में एक बूढ़े नीम की छांव में, जो नक्शे में ना मिले उस छोटे से गांव में....’ युवाओं की फरमाइश पर उन्होंने ‘जाहिलो का कोई शहर नहीं क्या जयपुर क्या दिल्ली...’ पेश कर खूब तालियां बटोरी।
अगली फरमाइश पर सुनाया,‘ फूलो की लाशों में ताजगी चाहता है, आदमी बावला है कुछ भी चाहता है’। गायकी का दौर आगे चला तो राहगीर ने ‘आइ लव टू ट्रेवल’ गीत सुनाया। आगे उनके गीत रहे कि ‘पड़ोस में एक ताऊ भाई जी ले आया ऊंट, उसे किया बेहोश. फिर नाम में छेद डाली रस्सी... कौन किसे पाल रहा है, राहगीर यही जंजाल है।’
अपने गायकी के शुरुआती दौर का गीत सुनाया कि ‘ मैं हूं क्या तुम हो क्या, ये तो नजर- नजर की बात है। मैं हूं कहां तुम हो कहां ये तो सफर- सफर की बात है।’ आगे उनके गीत रहे कि ‘... मेरी याद आएगी उस मुकाम पर कहीं, तुम पकड़कर गाड़ी शायद मेरे गांव आओगे, मैं मिलूंगा ही नहीं उस मकान पर’।
इस पर पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। व्यवस्था पर प्रहार करते हुए सुनाया, ‘....जब अमन के नाम पर चौतरफा बम फूट रहे हों, जब कमजोर को ताकतवर कूट रहे हों, तुम कुछ भी ना समझे तो तुम जाकर मर जाओ’। अपनी पहली कविता संग्रह ‘कैसा कुत्ता है’ से भी उन्होंने गीत सुनाए। संवादी का आखिरी सत्र मस्ती और मनोरंजन के साथ समाप्त हुआ।
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