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    राज्यपाल का साक्षात्कार- कुर्सी पर नहीं रहेंगे ठीक से काम न करने वाले कुलपति:आनंदीबेन पटेल

    By Dharmendra PandeyEdited By:
    Updated: Fri, 18 Dec 2020 01:28 PM (IST)

    Interview of UP Governor AnandiBen Patel उत्तर प्रदेेश के 34वें राज्यपाल के तौर पर 29 जुलाई 2019 को शपथ लेने वालीं आनंदीबेन अपने लंबे राजनीतिक व विधायी अनुभव के साथ उत्तर प्रदेश में भी सक्रिय हैं। 33 जिलों में जा चुकीं राज्यपाल की विभागों के कामकाज पर पैनी नजर है।

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    आनंदीबेन अपने लंबे राजनीतिक व विधायी अनुभव के साथ उत्तर प्रदेश में भी पूरी तरह सक्रिय हैं।

    शिक्षिका, मंत्री, मुख्यमंत्री और राज्यपाल तक का सफर तय करने वाली आनंदीबेन मफतभाई पटेल मिजाज से तो सख्त हैं ही, वह दो टूक बात कहने में भी विश्वास रखती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री रहते कई अहम विभागों के मंत्री पद का दायित्व संभाल चुकीं आनंदीबेन बताती हैं कि गुजरात यूं ही अग्रणी प्रदेश नहीं बना, बल्कि उसके पीछे वर्षों तक चला टीमवर्क है।

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    बीते वर्ष वर्ष 29 जुलाई को उत्तर प्रदेेश के 34वें राज्यपाल के तौर पर शपथ लेने वालीं आनंदीबेन अपने लंबे राजनीतिक व विधायी अनुभव के साथ उत्तर प्रदेश में भी पूरी तरह सक्रिय हैं। अब तक 33 जिलों में जा चुकीं राज्यपाल की प्रदेशवासियों से सीधे जुड़े विभागों के कामकाज पर पैनी नजर है। स्पष्ट कहती हैं कि अच्छा काम न करने वाले कोई भी कुलपति कार्यकाल पूरा होने से पहले भी कुर्सी से हटाए जा सकते हैं।

    79 वर्षीय आनंदीबेन बेबाकी से बोलती हैं कि आखिर किसान की बेटी हूं। लम्बा अनुभव है, काम करना और कराना दोनों आता है, इसलिए किसी से कोई दिक्कत नहीं। हां, महिलाएं और बच्चे प्राथमिकता में हैैं और हर गांव में उन्हेंं जागरूक करूंगी। प्रदेश के राज्यपाल की कुर्सी पर तकरीबन 17 माह के कार्यकाल के अनुभव पर आनंदीबेन पटेल से दैनिक जागरण के राज्य ब्यूरो प्रमुख अजय जायसवाल ने विस्तार से बातचीत की-

    आप जिस गुजरात से आती हैं, वैसा अग्रणी राज्य उत्तर प्रदेश कैसे बन सकता है?

    -आज का गुजरात एक-दो वर्ष में नहीं, बल्कि डेढ़-दो दशक तक लगातार टीमवर्क के साथ काम करने के कारण बना है। नरेंद्र भाई की टीम की कड़ी मेहनत का नतीजा है कि गुजरात की मिसाल हर जगह दी जाती है। उत्तर प्रदेश में भी योगी आदित्यनाथ जी के नेतृत्व में बेहतर काम हो रहा है।

    कितने जिलों में अब तक जाना हुआ है?

    -75 में से अब तक 33 जिलों में जाने का मौका मिला है। कई जिलों में तो कई बार विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए गई। कोविड-19 न होता तो अब तक सभी जिलों का दौरा हो चुका होता।

    फील्ड में निकलने पर क्या प्राथमिकता रहती है?

    -मेरी कोशिश रहती है कि शहर ही नहीं गांव में भी जाऊं। किसान की बेटी हूं, इसलिए किसानों, महिलाओं व बच्चों के बीच जाकर उन्हेंं जागरूक करने की सदैव इच्छा रहती है। गुजरात की तरह यहां भी किसानों को आर्गेनिक खेती, महिलाओं को खास तौर से बेटियों की शिक्षा व बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित करूंगी, ताकि गांव की कार्य संस्कृति बदले और सद्भाव का माहौल रहे।

    आप शिक्षिका रही हैं। शिक्षा व्यवस्था सुधारने के लिए क्या खास करने को सोचती हैं?

    -एमएससी और एमएड (गोल्ड मेडलिस्ट) करने के साथ मैं बालिका कालेज की शिक्षिका तो रही ही हूं। प्राथमिक, माध्यमिक, वयस्क, उच्च, तकनीकी शिक्षा आदि की मंत्री भी रही हूं। नई शिक्षा नीति के तहत राज्य की शिक्षा व्यवस्था सुधारने के लिए लगातार काम किए जा रहे हैं। अब शिक्षकों को भी मेहनत करनी होगी। अपना पुराना रवैया बदलना होगा।

    पूर्व में तो कुलपतियों, प्रोफेसरों के चयन पर सवाल उठते रहे हैं?

    -बेहतर नतीजे के लिए सबसे जरूरी है कि सभी तरह की धांधली बंद होनी चाहिए। वह चाहे कुलपतियों-प्रोफेसर की नियुक्ति हो या फिर कुछ और। मेरे रहते किसी भी तरह के चयन पर किसी को भी सवाल उठाने का मौका नहीं मिलेगा।

    चयन प्रक्रिया में पारदर्शीता के लिए क्या कुछ नया किया है?

    -अब श्रेष्ठता से ही चयन संभव है। सर्च कमेटी के अंतिम पांच नामों में से किसी एक का चयन खुद हर एक से बात करके करती हूं। क्या खास किया और जिस जिम्मेदारी को संभालना चाहते हैं उसके बारे में क्या जानते हैं, उसके बारे में पूछती हूं।

    क्या कुलपतियों का कार्यकाल पांच वर्ष होगा?

    -अभी तो तीन वर्ष है। पांच वर्ष भी किया जा सकता है, लेकिन जिन्हेंंं कुलपति बनाती हूं, उनके कामकाज पर नजर रखती हूं। अच्छा काम न करने वालों को एक वर्ष में ही हटाया जा सकता है।

    विश्वविद्यालयों में रिक्त पद कब तक भरेंगे?

    -कोर्ट के आदेश के कारण रिक्त पदों को भरने में समय लगा, लेकिन अगले दो माह में सभी पदों को भरने की पूरी कोशिश रहेगी।

    आंगनबाड़ी केंद्रों की दशा सुधारने पर आपका बहुत जोर है?

    -नरेंद्र भाई की पहल पर गुजरात की भांति यहां भी आंगनबाड़ी केंद्रों की दशा सुधारने का काम वाराणसी में खुद तीन दिन रहकर शुरू कराया। छह वर्ष तक के बच्चों की देखभाल व शिक्षा के लिए शिक्षक मार्गदर्शिका तैयार की गई है। मुख्यमंत्री से चर्चा कर प्रदेशभर के केंद्रों में भी वैसी व्यवस्था लागू की जाएगी, ताकि कुपोषण से निपटा जा सके।

    प्राइमरी स्कूल व आंगनबाड़ी केंद्रों में पर्याप्त संसाधन तक तो हैं नहीं?

    -यह सही है कि जैसी व्यवस्था होनी चाहिए, वैसी नहीं है। सरकार इस ओर ध्यान दे रही है, लेकिन समाज के सामथ्र्यवान महानुभाव भी आगे आएं और इनकी यथासंभव मदद करें।

    नवाचार तो राजभवन में भी दिख रहा है?

    -जी, पहले उन्हीं प्रधानमंत्रियों की फोटो राजभवन में लगी थीं जो प्रदेश से थे, लेकिन अब सभी की हैं। राज्यपालों की फोटो भी नए सिरे से लगाई गई हैं। अब यहां नवग्रह, राशि, नक्षत्र वाटिका, चंदनबाड़ी, कमलताल और चिडिय़ाघर भी है, जबकि पंचतंत्र वन की स्थापना हो रही है। सरदार पटेल जी की प्रतिमा भी स्थापित की गई है। लान की खूबसूरती बढ़ाने के लिए भी बहुत कुछ नया किया गया है।

    राजभवन से भी जनता को बहुत उम्मीदें रहती हैं?

    -तमाम तरह की समस्याओं को लेकर आम जनता भी मुझसे मिलने आती है। यथासंभव समस्या के समाधान की पूरी कोशिश रहती है। इन सभी की समस्या की मुख्यमंत्री ही नहीं, मंत्री-अफसरों से भी समस्याओं-दिक्कतों पर चर्चा होती है, ताकि उनका त्वरित निस्तारण सुनिश्चित किया जा सके।

    सूबे की कानून-व्यवस्था के बारे में क्या कहेंगी?

    -मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में राज्य की कानून व्यवस्था ठीक है। मुझे जो उचित लगता है, उसका सुझाव देती हूं जिस पर अमल भी होता है।

    सदन से सड़क तक विपक्ष के रवैये पर क्या कहेंगी?

    -देखिए, मैं किसी घटना या दल का नाम नहीं लूंगी, लेकिन किसी भी घटना पर राजनीति नहीं होना चाहिए। कई बार विपक्ष का ऐसा रुख रहता है, जिससे पुलिस-प्रशासन ठीक से अपना काम नहीं कर पाता। ऐसे में पीडि़त को सही से न्याय मिलने में भी दिक्कत होती है। सदन में हंगामा करने के बजाय सदस्यों को नियम-कानून के दायरे में रहना चाहिए। हंगामा कर वह अपने क्षेत्र की जनता की सेवा नहीं कर सकते।

    किसानों के आंदोलन पर आपकी क्या राय है?

    -केंद्र सरकार का कृषि कानून किसानों के हित में ही हैं। खासतौर से छोटे किसानों का इससे हित सुरक्षित होगा। हालांकि, कुछ राजनीतिक दल किसानों को भ्रमित कर रहे हैं। 

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