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    जब एक पुरुष के लिए आई स्ट्रॉन्ग फीलिंग, फिर शख्स ने करा लिया जेंडर चेंज

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    Updated: Thu, 31 May 2018 04:37 PM (IST)

    29 मई को केजीएमयू में एक 22 वर्षीय शख्स ने कराया जेंडर चेंज। सालों से छिपाए वजूद की कहानी इन्हीं की जबानी दैनिक जागरण आपको बता रहा है।

    जब एक पुरुष के लिए आई स्ट्रॉन्ग फीलिंग, फिर शख्स ने करा लिया जेंडर चेंज

    लखनऊ [प्रियम वर्मा]। शरीर एक सच है और भावनाएं इस देह को जीने का अंदाज सिखाती हैं। लेकिन क्या हो, जब तन और मन की यह केमिस्ट्री नए समीकरण तलाशने लगे। ऐसे ही किसी दोराहे पर एक समुदाय (एलजीबीटी) है, जो सालों से अपने सही या गलत होने से ज्यादा एक पहचान के साथ जीने के लिए भरपूर कोशिशें कर रहा है। इनके तन और मन का द्वंद्व तब और गहरा हो गया जब मंगलवार (29 मई) को केजीएमयू में एक 22 वर्षीय शख्स ने जेंडर चेंज कराया। इनका अस्तित्व एक बार फिर चर्चा में और ख्वाहिशें मुखर हैं। सालों से छिपाए वजूद की कहानी इन्हीं की जबानी दैनिक जागरण आपको बता रहा है।

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    जब एक पुरुष के लिए स्ट्रांग फीलिंग आई
    बचपन के शौक तो सिर्फ लड़कपन ही कहे जाते हैं तो समझ ही नहीं आया कि पसंद व्यक्तित्व का भी निर्धारण करती है। लखनऊ के संदीप (35 साल) ट्रासजेंडर हैं। उन्हें पांच साल की उम्र में अपने अलग होने का अहसास हुआ। पुराने अनुभवों के बारे में संदीप कहते हैं कि उन्हें बचपन में फ्रॉक पहनना अच्छा लगता था तो बहनों के साथ बाजार जाने में बड़ी खुशी होती थी। घरवाले तो अभी तक उनके बारे में नहीं जानते, लेकिन उन्हें दिक्कत तब हुई जब एक पुरुष के लिए मन में स्ट्रॉन्ग फीलिंग आई। वो नॉर्मल था इसलिए कभी इजहार नहीं किया। आज तक मन में दबाए हैं।

    करवाचौथ का व्रत रखते हैं
    इकबाल 32 साल के हैं। अपने साथी के लिए करवाचौथ का व्रत रखते हैं तो मुंहबोले भाई को राखी भी बाधते हैं। मुजरा बहुत अच्छा करते हैं। बचपन के बारे में बताते हैं कि बहनों के साथ गुड्डे गुड़ियों का खेल बहुत खेला है। लिपस्टिक, बिंदी, साड़ी इन सब का बड़ा शौक था। एक लड़के से दोस्ती हुई। कुछ दिनों बाद उसके लिए अलग सी भावनाएं आने लगीं। तब अहसास हुआ कि भले ही उनका शरीर लड़कों की तरह है लेकिन दिल लड़कियों का। कहते हैं कि जैसे शादी के बाद भी कुछ कपल्स के बच्चे नहीं होते वैसा ही मान लो। बड़े-बड़े सुपरस्टार भी अपनी पसंद को बरकरार रखते हुए एक सम्ममान भरी जिंदगी जीते हैं तो आम लोग क्यों नहीं।

    दो चाहतों के नाम
    चिकिर्षा और अपूर्वा दो चाहतों के नाम हैं जो एक लंबे अकेलेपन के बाद एक दूसरे को नसीब हुईं हैं। अपनी कहानी की शुरुआत अपूर्वा करती हैं, जो लखनऊ से हैं। कहती हैं कि अनफ्रीडम फिल्म जैसे मेरी जिंदगी की कहानी हो.इसलिए जब भी यह फिल्म आती थी, चोरी छिपे देखा करती थी। बहुत शुरुआत में ही अहसास हो गया था कि मेरे इच्छाएं जायज नहीं। बहुत अकेला लगता था फिर एक दिन डेटिंग साइट पर पुणो की चिकिर्षा मिली। उसने मुडो एक हफ्ते की बातचीत के बाद प्रपोज किया। दस दिन लगा मुडो यह सब समझने और जवाब देने में। कुछ दिनों बाद वो मेरे पास लखनऊ रहने आ गई। घर वालों को कुछ नहीं पता। बस दोनों ने तय किया है कि आगे की जिंदगी साथ बिताएंगे।

    जब एक निगाह अपनी सी लगी
    अनुराग 17 साल के होंगे जब उन्हें अपनी पसंद और बनावट में अंतर (ट्रासजेंडर) का अहसास हुआ। घर का काम करना, खाना बनाना, चौका बर्तन करना पहले तो उन्हें और घरवालों को अच्छा लगता था लेकिन जब दोस्त की जगह सहेलियों के साथ घर-घर खेलने में दिलचस्पी दिखी तो घरवालों को भी रास नहीं आया। लड़कों से दोस्ती की जगह उनसे बात करने में हिचहिचाकट से अनुराग को भी खुद के कुछ अलग होने का अहसास हुआ। जब खुद को परखना शुरू किया तो लगा कि वो जल्दी किसी अजनबी से बात करने में सहज नहीं होते बिल्कुल अपनी बहन की तरह। धीरे-धीरे खुद में अपराधबोध होने लगा। हल्के अंधेरे में कभी-कभी पार्क जाना शुरू किया। महसूस हुआ कि उनकी तरह कई लोग अपने अकेलेपन से दूर प्रकृति से दोस्ती करने आते हैं। वहीं एक निगाह, जो उन्हें अपनी सी लगी। लगा कि उससे बात करके दिल का बोझ कुछ हल्का हो सकता है। उस दोस्त से अनु को इस कम्युनिटी के बारे में पता चला। परिवार और रिश्तेदारों से अलग होना पड़ा। अनुराग कहते हैं कि एक सम्मानजनक जीवन तो हासिल नहीं हुआ लेकिन अब नौकरी करके जिंदगी सुरक्षित रखना चाहते हैं।

    समलैंगिकता की आजादी वाले देश - तुर्की
    1858 में ओटोमन खिलाफत ने समान सेक्स संबंधों को मान्यता दी थी। यहा समलैंगिकों और ट्रासजेंडरों के अधिकारों को मान्यता दी जाती है। हालाकि संविधान से रक्षा ना मिलने के कारण इनके साथ भेदभाव आम है। - माली : माली उन चुनिंदा अफ्रीकी देशों में से है जहा ऐसे संबंधों को कानूनी दर्जा प्राप्त है। फिर भी माली में भी एलजीबीटी समुदाय के साथ बड़े स्तर पर असामनता का व्यवहार किया जाता है।

    जॉर्डन : एलजीबीटी समुदाय के अधिकारों की रक्षा की दिशा में जॉर्डन का संविधान सबसे प्रगतिशील माना जाता है। 1951 में समान सेक्स संबंधों के कानूनी होने के बाद सरकार ने समलैंगिकों और ट्रासजेंडरों के सम्मान के लिए होने वाली हत्याओं के खिलाफ भी सख्त कानून बनाए।

    इंडोनेशिया : इंडोनेशिया में एशिया की सबसे पुरानी एलजीबीटी संस्था है जो कि 1980 से सक्त्रिय है। भेदभाव के बावजूद यहा का समलैंगिक समुदाय अपने अधिकारों के लिए लड़ने में पीछे नहीं रहता।

    अलबेनिया : अलबेनिया मुस्लिम देश है। इसे दक्षिणपूर्वी यूरोप में एलजीबीटी समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए अहम माना जाता है। इस गरीब बालकान देश में समलैंगिकों और ट्रासजेंडरों को असमानता से बचाने के लिए भी कई अहम कानून हैं। क्या कहता है देश का कानून? देश में आर्गन ट्रासप्लाट के लिए नियम -कानून हैं मगर सेक्स रिअसाइंमेंट सर्जरी के लिए कोई कानून नहीं है। केजीएमयू के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के अध्यक्ष डॉ. एके सिंह ने बताया कि दरअसल आर्गन ट्रासप्लाट में दूसरे व्यक्ति का अंग लिया जाता है। इसमें अंगों के खरीद-फरोख्त पर रोक के लिए कानून बनाया गया मगर सेक्स रिअसाइंमेंट सर्जरी में किसी दूसरे व्यक्ति का अंग ट्रासप्लाट नहीं किया जाता है। डॉक्टर ऑपरेशन कर मेल-फीमेल अंग बनाते हैं। ऐसे में मरीज का फिजिकल, मेंटल क्लीयरेंस ही अहम है। वहीं मरीज का वयस्क होना चाहिए। 18 वर्ष से कम व्यक्ति की सेक्स चेंज सर्जरी नहीं की जाती है। ऐसे में व्यक्ति को खुद फैसले लेने का अधिकार होता है। बशर्ते उसकी मेंटल स्थिति में कोई दिक्कत न हो। वहीं मरीज बाद में कोई आपत्ति न करे, इसलिए उसके पूरे मेडिकल रिकॉर्ड सुरक्षित रखे जाते हैं।