लखनऊ, जेएनएन। हम जिस आजादी की हवा में सांस ले रहे हैं उस आजादी को दिलाने में कितनी ही वीरांगनाओं ने अपनी मांग का सिंदूर मिटा दिया था तो कितनों ने अपने कलेजे के टुकड़ों को देश के लिए न्योछावर कर दिया था। आजादी के 72 वर्ष बीतने के बावजूद इन क्रांतिकारियों की सहादत की दुहाई देतीं ऐतिहासिक इमारतें हमें उनके जज्बे की याद दिलाती हैं।
नवाब आसिफुद्दौला बहादुर ने 1775 में रेजीडेंसी का निर्माण शुरू कराया था, जिसे नवाब सआदत अली खां ने 1800 में पूरा कराया। नवाबों ने अंग्रेजों के आरामगाह के लिए रेजीडेंसी का निर्माण किया था। तब उन्हें नहीं पता था कि अंग्रेजों के लिए बनाई गई यह आरामगाह उनका कब्रिस्तान बन जाएगा। तीन मई 1857 को क्रांति का बिगुल अवध में बज गया था। क्रांतिकारियों की रणनीति का केंद्र बनी राजधानी में आसपास के जिलों तालुकेदार क्रांतिकारियों की प्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष रूप से मदद करने में लगे थे। 30 जून 1857 को चिनहट के पास इस्माइलगंज में अंग्रेजों का सामना पहली बार क्रांतिकारियों से हुआ।
क्रांतिकारियों के हौसले के आगे फिरंगी सेना की चूलें हिल गईं और उन्हें वहां से भागकर रेजीडेंसी में शरण लेनी पड़ी थी। जो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों का निवास स्थान हुआ करती थी। बेगम हजरत महल के बेटे के नेतृत्व में 40 दिनों तक अंग्रेजों को गोलाबारी के बीच रेजीडेंसी में ही कैद रहना पड़ा। क्रांतिकारियों ने रेजीडेंसी को चारों ओर से घेर लिया था। अंग्रेजों के निकलने की सभी कोशिशें नाकाम हो रहीं थीं। यहां एक जुलाई से 17 नवंबर तक क्रांतिकारियों व अंग्रेजों के बीच घमासान चला था। इतिहासकारों के मुताबिक रेजीडेंसी के अंदर पहली मौत तीन जुलाई 1857 को एमटी ऐरम की हुई थी। वर्तमान में अंग्रेजों की कई कब्रें क्रांतिकारियों के हौसलों की दास्तां बयां कर रही हैं। रेजीडेंसी में एडवर्ड पाउनी व सर हेनरी लॉरेंस जैसे अंग्रेजी सेना के प्रमुखों की दो दर्जन से अधिक कब्रें वर्तमान में मौजूद हैं तो कई कब्रों के निशान आज भी मौजूद हैं।
कायम हैं गोलियां के निशां
रेजीडेंसी का निर्माण अंग्रेजी सेना के वरिष्ठ अधिकारी ब्रिटिश रेजिडेंट जनरल के निवास के लिए कराया गया था, जो कोर्ट में नवाब के पैरोकार थे। 1857 में रेजीडेंसी स्वतंत्रता संग्राम की लम्बी लड़ाई का गवाह बना, जिसे सिज ऑफ लखनऊ कहा जाता है। यहां की दीवारें आज भ्ीा गोलियों और तोप के गोलों के छेद से पटी पड़ी है। रेजीडेंसी में मौजूद चर्च के पास करीब दो हजार अंग्रेज अधिकारियों और उनके परिवार की कब्र हैं। यहीं पर सर हेनरी लॉरेंस मारा गया था। आज भी रेजीडेंसी के कब्रिस्तान में सर लॉरेंस की कब्र पर लिखा है कि यहां पर सत्ता का वो पुत्र दफन है, जिसने अपनी ड्यूटी के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी।