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    Independence Day Special: अल्लामा फजले हक को फातवा देने पर मिली थी काला पानी की सजा Lucknow News

    By Anurag GuptaEdited By:
    Updated: Thu, 15 Aug 2019 01:31 PM (IST)

    मस्जिद फतेहपुरी के करीब पेड़ों पर लटका दी थी लाशें। अंग्रेजों के खिलाफ फतवा देकर अल्लामा ने छेड़ा जेहाद।

    Independence Day Special: अल्लामा फजले हक को फातवा देने पर मिली थी काला पानी की सजा Lucknow News

    लखनऊ, जेएनएन। पेड़ पर भारतीयों की लाशें लटकी देख अल्लामा फजले हक ने अग्रेजों के खिलाफ फतवा जारी किया। फतवें में अंग्रेजों के रहने को हराम करार देते हुए उनकों देश से बाहर निकालने को कहा गया था। अंग्रेजों ने अल्लामा को गिरफ्तार कर उनको काला पानी की सजा सुनाई। अदालत ने फतवा वापस लेने को लालच दिया। अल्लामा ने मौत को गले लगा लिया, लेकिन फतवा वापस नहीं लिया।

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    बात उन दिनों की है जब जेल में कोई कैदी मर जाता था तो उसे जेल के जमादार उसकी टांग पकड़कर बिना किसी रहम के घसीटते हुए उसके कपड़े उतार लेते और उसे पत्थरों के नीचे दबा देते। न तो उसको कब्र में दफन किया जाता, न ही अग्नि दी जाती। अगर इस्लाम धर्म में आत्महत्या जायज होती तो ऐसे जीने से मर जाना बेहतर होता। दिल को दहला देने वाले शब्द खैराबाद के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मौलाना अल्लामा फजले हक के हैं। जिसका उल्लेख फारसी भाषा में लिखी पुस्तक अस्सूरतुल ङ्क्षहदिया में किया गया है।

    यह पुस्तक अंडमान की सेलुलर जेल में 1858 से 1861 के बीच लिखी गई। मौलाना अल्लामा फजले हक खैराबादी ने देश के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर मौत को गले लगा लिया। 20 जुलाई 1797 को खैराबाद के मियां सराय में मौलाना फजल इमाम के घर जन्मे अल्लामा दर्शन शास्त्र के विद्वान थे। दिल्ली के मुख्य न्यायाधीश पद को भी सुशोभित किया। उनकी लिखी पुस्तकें विश्व के अनेक विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाती है। इनके पूर्वज ईरान के थे। बाद में वह भारत आ गए। बदांयू हरगांव और अंत में खैराबाद में बस गए। उस समय ईस्ट इंडिया कंपनी का राज्य स्थापित हो चुका था। जब अंग्रेजों द्वारा कारतूसों में गाय व सुअर की चर्बी मिलाकर ह‍िंंदू-मुसलमान का धर्म भ्रष्ट कर उनको जबरन ईसाई बनाया जा रहा है।

    1957 से 1858 तक अंग्रेजों ने अत्याचार की सीमा पार कर दी थी, इंसानों को बेरहमी से कत्लेआम हो रहा था। मस्जिद फतेहपुरी से किले के दरवाजे तक लगे पेड़ों से लाशें लटका दी गई। यह देखकर अल्लामा का दिल दहल गया और मुस्लिम कौम का सरपरस्त होने के नाते फतवा जारी कर दिया। जिसके बाद अंग्रेजों ने अल्लामा को गिरफ्तार कर लिया। चार मार्च 1859 को जस्टिस थरबर्न ने उनकी सभी जायदाद को जब्त कर काला पानी की सजा सुनाई।