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    आकाशगंगा व ग्रहों को कैप्चर कर रही कानपुर आइआइटी की वेधशाला

    By Ashish MishraEdited By:
    Updated: Tue, 13 Sep 2016 09:49 AM (IST)

    आइआइटी की वेधशाला (ऑब्जर्वेट्री) आकाशगंगा व ग्रहों को देखने के साथ उनके फोटो भी कैप्चर कर रही है। पहले इस वेधशाला में सूरजमुखी, वर्लपूल, बृहस्पति, चंद्रमा को देखा जा सकता था।

    कानपुर [विक्सन सिक्रोडिय़ा] । आइआइटी की वेधशाला (ऑब्जर्वेट्री) आकाशगंगा व ग्रहों को देखने के साथ उनके फोटो भी कैप्चर कर रही है। पहले इस वेधशाला में सूरजमुखी, वर्लपूल, बृहस्पति, चंद्रमा जैसे आकाशगंगा व ग्रहों की गति को देखा जा सकता था। गतिमान होने के कारण उनकी फोटो लेने में पहले कई तकनीकी दिक्कतें आ रही थीं। कई प्रयासों के बाद आइआइटी के 'ऑब्जर्वेट्री फॉर एमेच्योर एस्ट्रोनॉमिकल रिसर्च ने 'चार्ज कपल्ड डिवाइस के जरिए इनकी गति के साथ तालमेल बिठाकर इनकी फोटो लेने में सफलता हासिल की है।

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    आइआइटी के भौतिक विज्ञान विभाग में प्रोफेसर व ऑब्जर्वेट्री के प्रमुख प्रो. पंकज जैन के निर्देश में एस्ट्रोनॉमी क्लब के छात्रों ने इन तस्वीरों को कैप्चर किया है। पहली बार स्कूल व कालेज में अध्ययनरत छात्र भी इनको देख सकते हैं। उनके लिए इन्हें यू ट्यूब में अपलोड किया गया है। आने वाले दिनों में स्कूली छात्रों से लेकर शोधार्थी आकाशगंगा व ग्रहों की अधिक से अधिक तस्वीरें देख सकेंगे।
    आटोमैटिक होगा टेलीस्कोप : आने वाले दिनों में 'ऑब्जर्वेट्री फॉर एमेच्योर एस्ट्रोनॉमिकल रिसर्चÓ में लगे टेलीस्कोप व अन्य उपकरणों को आइआइटी प्रशासन ऑटोमैटिक संचालित करने जा रहा है। प्रो. जैन ने बताया कि आब्जर्वेट्री में लगे टेलीस्कोप, गाइड स्कोप, चाज्र्ड कपल्ड डिवाइस (सीसीडी) के कुछ फंग्शन नियंत्रित करने के लिए अभी सेंटर में जाना पड़ता है। करीब 80 फीसद काम कंप्यूटर पर बैठकर कहीं से भी किया जा सकता है। भविष्य में यह पूरा आटोमेटिक हो जाएगा।
    फोटो कैप्चर करने में एक घंटे का समय : टेलीस्कोप, गाइड स्कोप व सीसीडी के जरिए फोटो कैप्चर करने में अभी एक घंटे का समय लगता है। फोटो लेने के लिए आकाशगंगा व ग्रहों की गति के साथ कैमरा मूव करना होता है। दस-दस मिनट के कई शॉट्स लेने के बाद एक फोटो बनती है। आब्जर्वेट्री में हाइपस्टार लैंस का इस्तेमाल किए जाने की योजना है इसके बाद इसमें कम समय लगेगा।
    क्या है आकाशगंगा
    आकाश में देखने पर पता चलता है कि तारों का प्रकाश एक समान नहीं है, और न ही उनके रंग। ये आसमान में नदी की तरह प्रवाहमान प्रतीत होते हैं। इसे ही आकाशगंगा या मंदाकिनी (गैलेक्सी) कहते हैं।