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    वायरल फीवर, अस्थमा और मौसमी फ्लू में होम्योपैथी दवाएं अधिक कारगर

    By Anurag GuptaEdited By:
    Updated: Sun, 15 Nov 2020 10:04 AM (IST)

    नेशनल होम्योपैथी कालेज के प्राचार्य डॉ अरव‍िंंद वर्मा ने बताया कि इन दिनों ओपीडी में वायरल फीवर जाड़ा लगने आंखों से पानी आने छींकें आने आंखे लाल होने श ...और पढ़ें

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    सर्दी-जुकाम, बुखार व सांस के रोगियों में 30 फीसद का इजाफा।

    लखनऊ, जेएनएन। मौसम लगातार करवट बदल रहा है। दिन में धूप के साथ रात में काफी ठंडक हो रही है। मौसम का यह मिजाज लोगों की सेहत पर भारी पड़ रहा है। विभिन्न अस्पतालों में वायरल फीवर, फ्लू, सर्दी-जुकाम, खांसी, गले में खराश, अस्थमा, जोड़ों में दर्द, डेंगू इत्यादि के मरीजों में 30 फीसद का इजाफा हुआ है। ज्यादातर लोग इन बीमारियों में एलोपैथी दवाएं ले रहे हैं, जिसका साइड इफेक्ट मरीजों की सेहत के लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है। होमियोपैथी विशेषज्ञों के अनुसार ऐसी बीमारियों में होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति बेहद कारगर है। यह रोग को जड़ से खत्म करती है और इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता।

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    होम्योपैथी ओपीडी में मरीज बढ़े

    नेशनल होम्योपैथी कालेज के प्राचार्य डॉ अरव‍िंंद वर्मा ने बताया कि इन दिनों ओपीडी में वायरल फीवर, जाड़ा लगने, आंखों से पानी आने, छींकें आने, आंखे लाल होने, शरीर में दर्द, कमजोरी, कब्ज, दस्त, मितली या उल्टी की शिकायत लेकर काफी मरीज पहुंच रहे हैं। सांस के रोगियों व डेंगू मरीजों की संख्या में 30 फीसद तक का इजाफा हुआ है। होम्योपैथी दवाओं से इन मरीजों को लाभ हो रहा है।

    लक्षणों के आधार पर दी जाती हैं ये दवाएं:

    केंद्रीय होम्योपैथी परिषद के पूर्व सदस्य एवं राजधानी के वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ अनुरुद्ध वर्मा के अनुसार बरसात के बाद जब जाड़े की शुरुआत हो रही होती है तो वातावरण में नमी रहती है। दिन में गर्मी व रात में ठंडक रहती है। यह मौसम वायरस, बैक्टिरिया फैलने के लिए ज्यादा मुफीद होता है। बदलते मौसम में लक्षणों के आधार पर अलग-अलग रोगों में होम्योपैथी की ऐकोनाइट, आर्सेनिक, एलियम सीपा, ब्रायोनिया, बेलाडोना, हीपर सल्फ, ऐंटिम टार्ट, एपीटोरिम पर्फ,रस टॉक्स, जेल्सीमियम, यूफ्रेसिया, प्लसटिल्ला , काली बाइ इत्यादि दवाएं प्रमुख तौर पर दी जाती हैं। इनका इस्तेमाल चिकित्सक की सलाह पर करना चाहिए।

    सांस रोगियों का दुश्मन है यह मौसम

    इस मौसम में सुबह-शाम तापमान में गिरावट व वातावरण में नमी के कारण धूल के कण ऊपर नहीं जा पाते हैं। यह प्रदूषित कण सांस के जरिये स्वशन तंत्र में प्रवेश कर जाते हैं। फलस्वरू दमा एवं सीओपीडी की समस्या बढ़ जाती है। सुबह शाम पारे का उतार चढ़ाव दमा के साथ ह्रदय रोगियों के लिए भी नुकसानदायक हो सकता है।

    बरतें यह सावधानी

    पर्याप्त कपड़े पहन कर ही बाहर निकलें। सुबह देर से व मास्क लगाकर ही टहलें। हाथों को साफ करते रहें। भीड़-भाड़ में जाने से बचें। सेनिटाइजर का प्रयोग करें। बीमार एवं वृद्ध लोग ज्यादा सतर्कता रखें। खांसी हो तो गर्म पानी में हल्दी नमक मिलाकर से गरारा करें। ठंडा पानी ,आइस क्रीम, कोल्ड ड्रि‍ंंक आदि से दूर रहें। धूल, धुआं, फूलों के पराग कण फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है। नहाने के लिए गुनगुना पानी प्रयोग करें। इस मौसम में डेंगू बुखार की संभावना अधिक रहती है। इसलिए आस पास पानी न एकत्र होने दें। मच्छरदानी लगा कर सोएं। पूरे पैरों को ढकने वाले कपड़े पहनें। पर्याप्त व गुनगुना पानी पिएं।