Move to Jagran APP

UP News: हाईकोर्ट ने कहा- उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा अधिनियम 2004 असंवैधानिक, मुलायम सिंह यादव की सरकार में बना था अधिनियम

UP News In Hindi हाई कोर्ट कोर्ट ने कहा यह अधिनियम संविधान में पंथ निरपेक्षता के मूल सिद्धांतों के विपरीत-सभी मदरसों के छात्रों को मान्यता प्राप्त नियमित विद्यालयों में दाखिल करे सरकार। शिक्षा के मौलिक अधिकार के तहत राज्य का दायित्व है कि वह छह से 14 वर्ष के सभी बच्चों को अनिवार्य रूप से शिक्षा दे। राज्य अलग-अलग मजहब के बच्चों के बीच अंतर नहीं कर सकता है।

By Jagran News Edited By: Abhishek Saxena Updated: Fri, 22 Mar 2024 10:42 PM (IST)
Hero Image
उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा अधिनियम 2004 असंवैधानिक

विधि संवाददाता, लखनऊ। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 को असंवैधानिक घोषित करते हुए कहा है कि यह अधिनियम संविधान में पंथ निरपेक्षता के मूल सिद्धांतों के साथ ही समानता, जीवन और शिक्षा के मौलिक अधिकारों के विपरीत है।

कोर्ट ने इस अधिनियम को यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन एक्ट की धारा 22 के भी विरुद्ध पाया है और सरकार को आदेश दिया है कि मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को विभिन्न बोर्ड के नियमित स्कूलों में समायोजित किया जाए।

अधिनियम समाप्त होने के बाद बड़ी संख्या में मदरसों में पढ़ने वाले छात्र प्रभावित होंगे, लिहाजा राज्य पर्याप्त संख्या में सीटें बढ़ाए और आवश्यकता हो तो नए विद्यालयों की स्थापना करे।यह निर्णय जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने अंशुमान सिंह राठौर की याचिका पर पारित किया।

आठ फरवरी को अपना निर्णय किया था सुरक्षित

याचिका के साथ कोर्ट ने एकल पीठों द्वारा भेजी गई उन याचिकाओं पर भी सुनवाई की जिनमें मदरसा बोर्ड अधिनियम की संवैधानिकता का प्रश्न उठाते हुए बड़ी बेंच को मामले भेजे गए थे। याचिकाओं पर कोर्ट ने आठ फरवरी, 2024 को अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया था।

ये भी पढ़ेंः UP Politics: सपा विधायक अभय सिंह को वाई श्रेणी की सुरक्षा, राज्यसभा में दिया था भाजपा के पक्ष में वोट

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राज्य यह नहीं कर सकता कि किसी विशेष धर्म के बच्चे को बाकियों से अलग शिक्षा दे। धार्मिक आधार पर समाज को बांटने वाली राज्य की नीति संवैधानिक सिद्धांतों के विपरीत होती है। सरकार यह अवश्य सुनिश्चित करे कि छह से 14 वर्ष का कोई बच्चा मान्यता प्राप्त विद्यालयों में दाखिले से न छूट जाए। याचिका में कहा गया कि मदरसा अधिनियम में यह स्पष्ट ही नहीं है कि एक विशेष धर्म की शिक्षा के लिए अलग से सरकारी बोर्ड बनाने की आवश्यकता क्यों पड़ी।

ये भी पढ़ेंः Lok Sabha Election: बसपा ने हाथरस सीट से घाेषित किया प्रत्याशी, साफ्टवेयर इंजीनियर को मैदान में उतारा

राज्य सरकार ने दी दलील

वहीं, राज्य सरकार व मदरसा बोर्ड की ओर से दलील दी गई कि सरकार को पारंपरिक शिक्षा प्रदान करने के लिए नियम बनाने की शक्ति है। इस पर न्यायालय ने कहा कि सरकार के पास यह शक्ति जरूर है, लेकिन दी जाने वाली पारंपरिक शिक्षा पंथनिरपेक्ष प्रकृति की होनी चाहिए। सरकार के पास ऐसी कोई शक्ति नहीं है जिसके तहत वह धार्मिक शिक्षा के लिए बोर्ड का गठन कर दे।

न्यायालय द्वारा नियुक्त न्यायमित्र ने भी दलील दी कि शिक्षा के अधिकार के तहत सरकार छह से 14 वर्ष के बच्चों को ऐसी शिक्षा दे सकती है जो यूनिवर्सल हो न कि धर्म विशेष से संबधित। मुख्य याचिका के विरुद्ध कुछ मदरसों, मदरसों के शिक्षक व कर्मचारी संगठन ने हस्तक्षेप प्रार्थना पत्र दाखिल किया था। सुनवाई के दौरान अपर महाधिवक्ता अनिल प्रताप सिंह व न्याय मित्र गौरव मेहरोत्रा ने पक्ष रखा।

मुलायम सिंह यादव की सरकार में बना था अधिनियम

मदरसा शिक्षा का यह अधिनियम वर्ष 2004 में मुलायम सिंह यादव की सरकार में बना था। यह ऐसा कानून है जिससे प्रदेश के मदरसों का संचालन होता है। मानक पूरा करने वाले मदरसों को मदरसा बोर्ड मान्यता देता है। बोर्ड मदरसों को पाठ्यक्रम, शिक्षण सामग्री और शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए भी दिशा-निर्देश प्रदान करता है। प्रदेश में इस समय प्राइमरी व जूनियर स्तर के 11057, हाईस्कूल स्तर के 4394 व सरकार से अनुदान पाने वाले 560 मदरसे हैं। मदरसों में 13.57 लाख बच्चे पढ़ते हैं।

न्यायालय के निर्णय पर मदरसा बोर्ड ने जताया आश्चर्य

उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड के चेयरमैन डा. इफ्तिखार अहमद जावेद ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 को असंवैधानिक घोषित किए जाने के हाई कोर्ट के निर्णय पर आश्चर्य जताया है। उन्होंने कहा कि यह निर्णय बहुत बड़ा है, इसकी सरकार समीक्षा करेगी। कहा कि सरकारी अनुदान मदरसों में धार्मिक शिक्षा के लिए नहीं मिलता है। यह अनुदान अरबी, फारसी व संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिए मिलता है। यही वजह है कि संस्कृत और अरबी फारसी बोर्ड सरकार ने बनाया है। दोनों बोर्ड अपना काम कर रहे हैं। न्यायालय को समझाने में हमसे कहीं न कहीं चूक हुई है।

न्यायालय के निर्णय को देख-समझ लें, फिर इसकी समीक्षा करवाई जाएगी। इसके बाद सरकार इस संबंध में उचित निर्णय लेगी। - ओम प्रकाश राजभर, अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री 

लोकल न्यूज़ का भरोसेमंद साथी!जागरण लोकल ऐपडाउनलोड करें