Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    हाई कोर्ट ने खारिज की अवैध मतांतरण की एफआईआर, सरकार पर लगाया ₹75 हजार का हर्जाना

    Updated: Wed, 05 Nov 2025 06:56 AM (IST)

    इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अवैध मतांतरण के मामले में दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया है। अदालत ने सरकार पर 75 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। यह निर्णय मामले की गंभीरता और तथ्यों के मूल्यांकन के बाद लिया गया, जिससे याचिकाकर्ता को राहत मिली।

    Hero Image

     

    विधि संवाददाता, लखनऊ। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अवैध मतांतरण रोकथाम कानून और अपहरण समेत अन्य धाराओं में दर्ज एक एफआइआर को खारिज कर दिया है। अदालत ने राज्य सरकार पर 75 हजार रुपये का हर्जाना लगाते हुए अभियुक्त को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    न्यायालय ने टिप्पणी की है कि यह मामला इस बात का उदाहरण है कि किस प्रकार राज्य के अधिकारी एफआइआर के आधार पर अंक बटोरने की होड़ में एक-दूसरे से आगे निकलने की कोशिश करते दिखाई दे रहे हैं। न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन और न्यायमूर्ति बबीता रानी की खंडपीठ ने यह आदेश उमेद उर्फ उबैद खां और अन्य की याचिका को मंजूर करते हुए पारित किया।

    मामला बहराइच जनपद के माटेरा थाने का है। वादी पंकज कुमार ने 13 सितंबर को एफआइआर दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसकी पत्नी वंदना वर्मा अभियुक्तों के बहकावे में आकर जेवर और नकदी लेकर घर से चली गई है और ये लोग अवैध मतांतरण का गैंग चलाते हैं।

    जांच के दौरान 15 सितंबर को वंदना ने पुलिस के समक्ष अपने पति के आरोपों का समर्थन किया, लेकिन 19 सितंबर को मजिस्ट्रेट के सामने दिए बयान में उसने कहा कि पति के मारपीट से परेशान होकर वह दिल्ली चली गई थी। कथित पीड़िता हाई कोर्ट के समक्ष भी उपस्थित हुई और आरोप लगाया कि पुलिस के समक्ष जो बयान उसने दिया वह अपने पति के दबाव में दिया था।

    इसके बावजूद 18 सितंबर को पुलिस ने उमेद उर्फ उबैद खां को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। अदालत ने कहा कि जब मजिस्ट्रेट के समक्ष पीड़िता का बयान स्पष्ट कर चुका था कि अपहरण या मतांतरण का कोई मामला नहीं है, तब पुलिस को अंतिम रिपोर्ट लगा देनी चाहिए थी।

    ऐसा न करने से निर्दोष व्यक्ति को अनावश्यक रूप से जेल में रहना पड़ा। अदालत ने आदेश दिया कि सरकार 75 हजार रुपये में से 50 हजार रुपये याची को और 25 हजार रुपये राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को दे। साथ ही अभियुक्त की तत्काल रिहाई सुनिश्चित की जाए।