Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    High Court Lucknow Bench: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ गो हत्या अधिनियम के दुरुपयोग पर सख्त

    By Dharmendra PandeyEdited By: Dharmendra Pandey
    Updated: Thu, 16 Oct 2025 03:55 PM (IST)

    इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने गो हत्या अधिनियम के दुरुपयोग पर सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने कहा कि प्रदेश में गोवंश का केवल परिवहन करना अपराध नहीं है, और न ही वध की तैयारी करना अपराध है। अदालत ने अधिनियम के दुरुपयोग को रोकने की आवश्यकता पर बल दिया है, ताकि अनावश्यक गिरफ्तारियों से बचा जा सके।

    Hero Image

    जागरण संवाददाता, लखनऊ: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ लोगों को गो हत्या अधिनियम में फर्जी फंसाने के प्रकरण में बेहद सख्त है। कोर्ट ने प्रदेश के भीतर गोवंशी पशुओं का परिवहन अपराध की श्रेणी में माना और प्रमुख सचिव गृह और डीजीपी से व्यक्तिगत शपथपत्र मांगा है कि गोहत्या अधिनियम का दुरुपयोग को रोकने के लिए क्या किया गया है। राहुल यादव की याचिका पर नौ अक्टूबर को जस्टिस अब्दुल मोईन व जस्टिस ए के चौधरी की पीठ ने यह आदेश पारित किया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने कहा है कि उसके सामने ऐसे मुकदमों की बाढ़ आ रही जिसमें लोगों को गो हत्या अधिनियम में फर्जी फंसाया जा रहा है। कोर्ट ने गो हत्या अधिनियम में लोगों को फर्जी फंसाने पर प्रमुख सचिव गृह और डीजीपी से व्यक्तिगत शपथपत्र मांगा है कि गोहत्या अधिनियम का दुरुपयोग को रोकने के लिए क्या किया गया है। कोर्ट ने कहा है कि यदि सात नवंबर तक उनका शपथपत्र नहीं आता तो वे कोर्ट में स्वयं प्रस्तुत होकर उत्तर दें।
    कोर्ट ने आदेश उस समय किया जब याची की और से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए उसने पाया कि याची को पुलिस केवल इसलिए परेशान कर रही थी, क्योंकि गाड़ी उसके नाम रजिस्टर्ड थी। गाड़ी उसका ड्राइवर चला रहा था और उस पर नौ गौवंश परिवहन कर ले जाए जा रहे थे।

    याची का कहना था कि उन गौ वंशों की हत्या का कोई इरादा नहीं था, तो ऐसे में उन्हें गौ वध अधिनियम में फंसाना गलत है। इस पर कोर्ट ने पुलिस को आदेश दिया कि याची को प्रताड़ित ना किया जाय। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि इन दिनों उसके सामने गो वध अधिनियम में फर्जी फंसाने के बहुत मामले आ रहे हैं, जिनमें याची का काफी पैसा और कोर्ट का बहुमूल्य समय बेकार हो जाता है।

    कोर्ट ने पुराने फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि प्रदेश के भीतर गो वंश का मात्र परिवहन करना अपराध नहीं है। इसके साथ यह भी कहा कि गो वंश के वध करने की तैयारी करना भी अपराध की श्रेणी में नहीं आता है।

    प्रस्तुत मामले में कोर्ट ने पाया था कि सभी नौ गो वंशों को कोई चोट नहीं थी और न ही उनका वध ही हुआ था। उनका परिवहन भी अमेठी से प्रतापगढ़ किया जा रहा था तो याची को गो वध अधिनियम में फंसना गलत है। फैसला सुनाने के बाद भी कोर्ट ने केस की विवेचना नहीं रोकी है और याची को विवेचना में पुलिस का सहयोग करने को कहा है।

    याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने प्रमुख सचिव गृह व डीजीपी से कहा कि वे बताएं कि गो वंश मामलों में सतही प्राथमिकियां क्यों दर्ज की जा रही है और यदि ऐसा हो रहा है तो सूचनाकर्ता और संबंधित पुलिस अफसरों के खिलाफ क्या कार्यवाही की जा रही है।

    कोर्ट ने इन दोनों शीर्ष अफसरों से पूछा है कि क्यों न ऐसे मामलों में सरकार पर भारी जुर्माना लगाया जाय। इसके अतिरिक्त कोर्ट ने गो वंश मामलों में भीड़ हिंसा व कुछ लोंगो और संगठनों की अति सक्रियता पर लगाम लगाने के लिए सरकार के कदमों के बारे में भी जवाब मांगा है।