'गुरुदत्त ने प्रेम की सारी ऋतुओं को जीने का किया प्रयास', यतींद्र मिश्र बोले- विरह की वेदना ने अमर कर दिया उनका संगीत
यतींद्र मिश्र ने गुरुदत्त के जीवन पर बोलते हुए कहा कि उन्होंने प्रेम की सभी ऋतुओं को जीने का प्रयास किया। उन्होंने गुरुदत्त के संगीत को विरह की वेदना से अमर बताया। गुरुदत्त ने अपनी फिल्मों में प्रेम के विभिन्न रूपों को दर्शाया, जिससे उनका संगीत आज भी लोगों के दिलों में बसा हुआ है।

संवादी के छठे सत्र गुरुदत्त की फिल्मों का संगीत में चर्चा करते संगीत अध्येता यतींद्र मिश्र व रेडियो उद्घोषक युनुस खान। जागरण
पुलक त्रिपाठी, लखनऊ। फिल्म की सारी विधाओं में अपनी छाप छोड़ने वाले गुरुदत्त अपने अधूरेपन के जीते जागते उदाहरण हैं। 39 साल की उम्र में दुनिया से अलविदा कहने वाले फिल्मकार ने प्रेम की सारी ऋतुओं को जीने का प्रयास किया। मगर हर बार हवा ने उन्हें सूखे पत्तों की तरह किनारे कर दिया। उनका अधूरा प्रेम रहित जीवन किसी के लिए प्रेरणा तो किसी के लिए उदाहरण हो सकता है। महान फिल्मकार गुरुदत्त की फिल्मों का संगीत विषय पर दैनिक जागरण संवादी के छठे सत्र में चर्चा हुई, जिसमें संगीत अध्येतया यतींद्र मिश्र और रेडियो उद्घोषक युनुस खान ने न सिर्फ उनके सिनेमा का बल्कि जीवन का दर्शन भी ऐसा कराया कि सभागार में मौजूद हर स्रोता बंध गया।
शुरुआत करते हुए युनुस खान ने कहा कि गुरुदत्त जीवनभर संपूर्णता की तलाश करते रहे। तलाश करते रहे कि वे अपनी कला को किस तरह संपूर्णता की ओर ले जा सके। उनके जीवन में रही बेचैनी, व्याकुलता और विभलता उनके पूरे काव्य में नजर आती रही।
गुरुदत्त अपने जीवन में बहुत टूटे
यतींद्र मिश्र ने कहा कि गुरुदत्त अपने जीवन में बहुत टूटे और बिखरे रहे। उन्होंने अपने आप को संभालने का काम नहीं किया बल्कि बिखरते ही चले गए। गुरुदत्त की मां बसंती देवी का जीवन भी वैसा ही रहा। गुरुदत्त के पिता से उनके संबंध बहुत अच्छे नहीं थे। वे गांधीवादी थीं। बार बार महात्मा गांधी को पत्र लिखती थीं कि वे सबकुछ छोड़छाड़कर साबरमती आश्रम आना चाहती हैं। यह भी कहा कि वे अपनी संतान की परवरिश भी ठीके से नहीं कर पा रही हैं। इस पर गांधी जी ने उन्हें पत्र लिखा। उसके बाद बसंती देवी का मन बदला। फिर वे किसी तरह से पति के साथ सामंजस्य बनाया और गुरुदत्त की परवरिश के लिए तैयार हुईं।
यतींद्र मिश्र ने रात रात भर इंतजार है, दिल दर्द से बेकरार है,साजन इतना तो न तड़पा, चले आ, चले आ गीत से गुरुदत्त के व्याकुल और टूटन भरे जीवन का दर्शन कराने का प्रयास किया। इसी बीच यूनूस ने उनके सिनेमा के सफर पर चर्चा शुरू की। कहा गुरुदत्त का जीवन बहुत बीहड़ रहा। पहले उदयशंकर के एकेडमी गए, फिर बाद में मुंबई आकर संघर्ष किया। अलग अलग प्रोड्यूसर के चक्कर काटे। उन्हें कोई काम नहीं दिया करता था। ये वो दौरा था जब देश आजाद होने के दौर में था और फिल्म इंडस्ट्री में बहुत उथल पुथल था। क्योंकि काम मिल नहीं रहा था।
इस दौरान एक प्रोड्यूसर के वेटिंग रूम में बैठे बैठे उन्होंने एक कहानी लिखी, जिसका नाम था कश मकश। जो आगे चल आटो बायोग्राफिकल कहानी प्यासा के नाम पर बनी, जिसमें उन्होंने न सिर्फ अपने पिता के अधूरे जीवन बल्कि अपने भी अधूरे जीवन की तलाश को सिनेमा में बदला। गुरुदत्त जब प्रभात फिल्म कंपनी चले जाते हैं वहां उन्हें एक युवक मिलता है जिस हम एक हैं फिल्म में हीरो का रोल मिला था।
इसी फिल्म में गुरुदत्त असिस्टेंट डायरेक्टर और कोरियोग्राफर का काम मिला है। इस दौरान एक वाकया हुआ। एक युवक अपनी शर्ट प्रेस करने के लिए देता है वो शर्ट गल्ती से गुरुदत्त के पास पहुंच जाती है। यहीं से दोनो में दोस्ती शुरू होती है। वह युवक कोई और नहीं देव आनंद थे। दोनो में दोस्ती इतनी गहरी होती चली गई कि दोनो के बीच तय होता है कि कोई भी फिल्म बनाएगा तो एक दूसरे को काम देगा। सबसे पहले नवकेतन ने बाजी फिल्म बनाई और गुरुद्त्त को बतौर डायरेक्टर बने। आगे चलकर गुरुदत्त ने देव आनंद को काम दिया।
16 साल की उम्र में डांस सीखने की इच्छा की जाहिर
गुरुदत्त का जीवन दर्शन लेकर चल रहे यतींद्र ने बताया कि महान नर्तक उदाशंकर के सानिध्य में गुरुदत्त ने 16 साल की उम्र में डांस सीखने की इच्छा जाहिर की और उनका इंस्टीट्यूट ज्वाइन करने 1941 में अल्मोड़ा चले गए। वहां गुरुदत्त ने रंग संयोजन और प्रकाश व्यवस्था के तमाम थियेटर के दौरान कैमरों का इस्तेमाल करना सीखा। उदयशंकर ने भी गुरुदत्त पर भरोसा किया। कुछ समय बाद गुरुदत्त ने अपनी शुरूआत की। मगर गुरुदत्त ने पत्रों लिखा कि उन्होंने अपने संगीत को जो पैटर्न, सीनेमेटोग्राफी व भावाभिव्यक्ति से सीखा है वो उदयशंकर सीखा।
युनुस ने फिल्म बाजी पर चर्चा करते हुए कहा कि फिल्म बाजी का हिंदी सिनेमा के इतिहास में बहुत बड़ा योगदान है। 1940 के मध्य और 1950 की शुरुआत में प्रकाश और छाया का चलन था। अपराध की कहानियों आईं। बाजी के जरिए गुरुदत्त को पहचान मिली।
जब बाजी के गाने को मशहूर गायिका द्वारा गाया जा रहा था, रिकार्डिंग के दौरान जब गुरुदत्त पहुंचे, तो उन्हें गायिका से लगाव हो जाता है, ये गायिका थी गीता रॉय। गाना था तकदीर से बिगड़ी हुई तस्वीर बना ले, अपने पे भरोसा है तो ये दांव लगा ले। युसुफ बताते हैं कि गाने से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि गुरुदत्त किस तरह गीतकारों का चुनाव अपनी फिल्मों में करते हैं।
यतींद्र ने बताया कि गुरुदत्त की फिल्मों में एसडी बर्मन, हेमंत कुमार और ओपी नैयर तीन बड़े नाम हैं जो उनकी फिल्मों में पूरी तरह छाए रहे। उन्होंने कहा कि यह बड़ी बात रही कि गुरुदत्त कि फिल्मों से लता मंगेशकर गायब रहीं। यहां तक की उनके सर्वप्रिय डायरेक्टर हेमंत कुमार भी लता को लेकर हिम्मत नहीं जुटा सके। कारण उनके घर में पत्नी गीता दत्त एक बेहतरीन गायिका थी। हालांकि बाद में चौधवी के चांद के लिए उन्होंने पत्नी को मनाया और लता मंगेशकर को लाए। इस दौरान बदले-बदले मेरे सरकार नजर आते हैं, बर्बादी के आसार नजर आते हैं। गाने में दर्द और उल्लास भी था।
बाजी फिल्म के दौरान का किस्सा बताया
युनुस ने बाजी फिल्म के दौरान का एक वाकया बताते हुए कहा कि बलराज साहनी इस फिल्म को लिख रहे थे। इस दौरान बेस्ट की बसों में इंदौर के रहने वाले कंडक्टर बदरूद्दीन को एक्टिंग का बहुत शौक था। बलराज ने बदरूद्दीन से कहा कि शराबी बन कर गुरुदत्त के आफिस चले जाओ। बदरूद्दीन वैसा ही करते हैं। गुरुदत्त उनसे बहुत प्रभावित होते हैं, यहीं से उनका नाम जानी वाकर पड़ता है। जानी वाकर गुरुदत्त के सिनेमा की जरूरी मौजूदगी माने जाते हैं। ऐसा सिनेमा, जिसमें दुख है, तकलीफ है। जानी वाकर की करियर में गुरुदत्त बहुत मायने रखते हैं। इस दौरान बदरूद्दीन और गुरुदत्त की याद में मिस्टर एंड मिसेज 55 का गाना जाने कहां मेरा जिगर गया जी, अभी अभी यहीं था किधर गया जी को सुनाया गया।
मंच संभालते हुए यतींद्र मिश्र ने कहा कि गुरुदत्त की फिल्मों में अवसाद,दुख और दर्द ही देखने को मिला। लेकिन जब वे प्रेम और प्रणय का गाना रचते हैं तो वहां खिलंगड़ापन, चुगलबाजी, नटखटपन है। सीआइडी का लेकर गाना लेकर पहला पहला प्यार, भरोसा का आज की मुलाकात बस इतनी, कल कर लेना बातें चाहे जितनी।
बहूरानी का उम्र हुई तुमसे मिले फिर भी जाने क्यों। उन्होंने प्यासा फिल्म की चर्चा करते हुए कहा कि फिल्म में प्रेम का गीत डालने की जरूरत महसूस हुई। जिसके चलते वे बहुत परेशान थे। फिर गाना आया हम आपकी आंखों में इस दिल को बसा दें तो...हम मूंद की पलकों को इस दिल को सजा दें तो। युनुस ने बताया कि शुरुआत में गुरुदत्त के साथ देव जुड़े, उसके बाद बतौर राइटर अबरार अल्वी, सिनेमेटोग्राफर वीके मूर्ति भी जुड़ते हैं।

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