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    गुमनामी बाबा की गुत्थी अनसुलझी पर मान्यता वह नेताजी सुभाषचंद्र बोस ही थे, अयोध्या में बिताया था आखिरी वक्त

    By Umesh Kumar TiwariEdited By:
    Updated: Sat, 23 Jan 2021 09:07 AM (IST)

    गुमनामी बाबा के नेताजी सुभाषचंद्र बोस होने की पैरोकारी करने वाले समीकरण स्थापित करते हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध में धुरी राष्ट्रों की हार के बाद नेताजी सुरक्षित ठिकाने की तलाश में थे। वे बचते-बचाते भारत पहुंचे। देश में नेताजी ने भूमिगत जीवन व्यतीत किया उनमें अयोध्या भी थी।

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    नेताजी सुभाषचंद्र बोस की विरासत से रामनगरी अयोध्या भी अनुप्राणित है।

    अयोध्या [नवनीत श्रीवास्तव]। नेताजी सुभाषचंद्र बोस की विरासत से रामनगरी अयोध्या भी अनुप्राणित है। नेताजी का जन्म बंगाल में हुआ और आजादी के महानायक के तौर पर उन्होंने अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई, लेकिन उनका उत्तरार्द्ध अंधेरे में है। एक धारणा यह है कि 18 अगस्त, 1945 को ताईहोकू विमान दुर्घटना में नेताजी का निधन हो गया, पर 74 वर्ष बाद भी इसकी सच्चाई संदिग्ध है। यह बीती सदी के आखिरी दो दशकों के बीच रामनगरी अयोध्या में प्रवास करने वाले गुमनामी बाबा से भी खारिज होती है।

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    गुमनामी बाबा के नेताजी सुभाषचंद्र बोस होने की पैरोकारी करने वाले समीकरण स्थापित करते हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध में धुरी राष्ट्रों की हार के बाद नेताजी सुरक्षित ठिकाने की तलाश में थे। वे जापान से बचते-बचाते रूस पहुंचे और साइबेरिया की जेल में कुछ साल गुजारने के बाद भारत पहुंचे। देश के जिन चुनिंदा स्थलों पर नेताजी ने भूमिगत जीवन व्यतीत किया, उनमें अयोध्या भी थी।

    रामभवन में गुजारे आखिरी के दो साल : गुमनामी बाबा नाम तो मीडिया की देन है। उनका कोई नाम नहीं था। 1974 से 1984 तक वे अयोध्यादेवी मंदिर, लखनउवा हाता एवं रामभवन में रहे। उनसे बहुत कम लोगों को मिलने की इजाजत थी और वे इक्का-दुक्का चुनिंदा सहयोगियों को छोड़ कर किसी के सामने आते नहीं थे। बहुत कोशिश करने पर वे पर्दे की ओट से ही मिलते थे। उन्होंने लोगों से दूरी बरतने का प्रयास किया, पर लोग उनके प्रति उत्सुक होते गए। उन्होंने आखिरी के दो साल सिविल लाइंस स्थित रामभवन में गुजारे और यहीं चिरनिद्रा में लीन हुए।

    रंग-ढंग से लगते थे नेताजी : रामनगरी अयोध्या में प्रवास के दौरान पिता रामकिशोर मिश्र के साथ बाबा से कुछ बार मिलने वाले सरयू अवध बालक समाज के अध्यक्ष नंदकिशोर मिश्र कहते हैं, पहली बार में ही उनके चमत्कारिक प्रभाव का एहसास हुआ और उनके भूमिगत रहने तथा रंग-ढंग को ध्यान में रखकर उनके नेताजी होने की संभावना भी जताई जाने लगी थी। उनके निधन के बाद तो पर्दे से बाहर आईं अटकलों को औचित्य की कसौटी पर कसा जाने लगा। बाबा के पास से प्रचुर सामग्री प्राप्त हुई और इसमें नेताजी से जुड़े दस्तावेज और उनकी ओर इशारा करने वाली उपयोग की अनेक वस्तुएं तथा साहित्य हैं।

    इन वस्तुओं से होता है नेताजी का भान : रामकथा संग्रहालय में भी बाबा के पास से बरामद करीब पौने तीन हजार वस्तुओं में से चार सौ से अधिक वस्तुओं को धरोहर के रूप में संरक्षित किया गया है। इनमें ब्रिटेन निर्मित टाइप राइटर एवं रिकार्ड प्लेयर, नेताजी के परिवार की तस्वीरें, नेताजी की कथित मौत की सच्चाई जानने के लिए शाहनेवाज एवं खोसला आयोग की रिपोर्ट की प्रति, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय राजनीति, युद्ध और आजाद हिंद फौज से संबंधित साहित्य का संग्रह है।

    यहां अर्पित होती है नेताजी के प्रति आस्था : सरयू के गुप्तारघाट पर बाबा की समाधि है और प्रत्येक वर्ष यहां 23 जनवरी यानी नेताजी की जयंती पर उन्हें नमन करने वालों का तांता लगता है।

    उजागर हो गुमनामी बाबा की सच्चाई : जिस रामभवन में गुमनामी बाबा ने अंतिम सांस ली, उस रामभवन के उत्तराधिकारी एवं सुभाषचंद्र बोस राष्ट्रीय विचार केंद्र के अध्यक्ष शक्ति सिंह का जीवन गुमनामी बाबा की सच्चाई उजागर करने के प्रति समर्पित है। वे हाल ही में नेताजी के प्रति केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता से उत्साहित हैं और अपेक्षा जताते हैं कि केंद्र सरकार गुमनामी बाबा की भी सच्चाई उजागर कर नेताजी के करोड़ों प्रशंसकों से न्याय करे।