यूपी में ग्रीन क्रेडिट योजना से जंगलों का पुनरुद्धार, निजी क्षेत्रों का लिया जाएगा सहयोग
उत्तर प्रदेश सरकार ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम के माध्यम से निजी क्षेत्र की सहायता से जंगलों को पुनर्जीवित करने जा रही है। वन विभाग ने जंगलों के कुछ हिस्सों को चिन्हित किया है जहाँ निजी कंपनियां पौधारोपण करके ग्रीन क्रेडिट अर्जित कर सकती हैं। ये क्रेडिट भविष्य में उन्हें कई सुविधाएँ प्रदान करेंगे। इस कार्यक्रम में पेड़ों की जीवितता और घनत्व पर ध्यान दिया जाएगा।

शोभित श्रीवास्तव, लखनऊ। प्रदेश सरकार ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम के जरिये निजी क्षेत्रों के सहयोग से उन जंगलों की सेहत सुधारने जा रही है जिनकी गुणवत्ता व घनत्व कम हो चुका है। वन विभाग जंगलों के ऐसे हिस्सों का चयन कर उसे वेबसाइट पर अपलोड करेगा।
इसी वेबसाइट से निजी क्षेत्र के उद्योग व कंपनियां उन क्षेत्रों को अंगीकार कर वहां खुद हरियाली कराएंगे। इससे उन्हें ग्रीन क्रेडिट दिए जाएंगे। भविष्य में इन ग्रीन क्रेडिट से औद्योगिक घरानों को कई प्रकार की सहूलियतें भी दी जाएंगी।
केंद्र सरकार ने हाल ही में ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम के नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। नई व्यवस्था के तहत निजी क्षेत्र अब जंगलों के ऐसे क्षेत्रों को पांच वर्ष के लिए अंगीकार कर वहां पौधारोपण व पुनर्स्थापना कर पुराने जंगलों को पुनर्जीवित कर सकेंगे। पहले वन विभाग इनसे पैसा लेकर यह काम खुद कराता था।
नई नीति के तहत अब निजी क्षेत्रों को डीएफओ के सहयोग से सारा काम खुद करना होगा। इसे किस तरह से कराएंगे इसके लिए उन्हें पहले प्लान देना होगा। पांच वर्ष काम करने के बाद निजी क्षेत्र अगले पांच वर्ष के रखरखाव का पैसा वन विभाग को देकर ग्रीन क्रेडिट प्राप्त कर सकेंगे।
अभी तक केवल सीएसआर का पैसा दे देने से निजी क्षेत्र की कंपनियों का काम खत्म हो जाता था, हालांकि इसमें कंपनियों की दिलचस्पी कम ही देखने को मिल रही थी। इसलिए सरकार ने इसमें बदलाव किया है।
अब केवल पेड़ लगाने से नहीं, बल्कि उनकी पांच साल की जीवितता और पेड़ों के छत्र के घनत्व के आधार पर ही ग्रीन क्रेडिट दिया जाएगा। वन विभाग ने इसके लिए जिला स्तर पर ''''ग्रीन क्रेडिट भूमि बैंक'''' तैयार करना शुरू कर दिया है। शुरुआती चरण में 31 वन प्रभागों में 884 हेक्टेयर बंजर या क्षरित भूमि चिह्नित की गई है।
अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक योजना राम कुमार ने बताया कि इस कार्यक्रम की निगरानी भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आइसीएफआरई) देहरादून करेगी। परियोजना शुरू होने के बाद पांच वर्षों तक पेड़ों की स्थिति, उनकी ऊंचाई और छत्र घनत्व का रिकार्ड रखा जाएगा।
इसके बाद रिपोर्ट केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय भेजी जाएगी। वहां से कंपनियों को ग्रीन क्रेडिट दिए जाएंगे। ग्रीन क्रेडिट का उपयोग कंपनियां कारपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी, पर्यावरणीय अनुमोदन या वन भूमि उपयोग परिवर्तन के मुआवजे में कर सकेंगी। इन्हें बाजार में खरीदा या बेचा नहीं जा सकेगा।
पहले चरण में यह वन प्रभाग हुए चिह्नित
प्रयागराज, काशी, आगरा, फिरोजाबाद, मीरजापुर, जालौन, उत्तरी खीरी, अवध, गोरखपुर, शामली, गौतमबुद्धनगर, सोहेलवा, रेनुकूट, हमीरपुर, बिजनौर, अहमरोहा, नजीबाबाद, ओबरा, सोनभद्र, बांदा, चित्रकूट, महोबा, झांसी, ललितपुर, कतर्नियाघाट, कैमूर, फर्रूखाबाद, औरैया, कानपुर नगर, इटावा व मैनपुरी।
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