कैदियों में टीबी का जोखिम कम करने को लेकर स्क्रीनिंग कराएगी सरकार; सीएम योगी बोले- प्रदेश से खत्म करेंगे TB
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन-उत्तर प्रदेश के अपर मिशन निदेशक डॉ. हीरा लाल का कहना है कि जेलों में शीघ्र ही टीबी एचआईवी हेपेटाइटिस बी-सी और सिफलिस की स्क्रीनिंग व जांच के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाया जाएगा। इसके लिए यूपी स्टेट एड्स कंट्रोल सोसायटी के नेतृत्व में यूपीएनपी प्लस संस्था के सहयोग से जेल चिकित्सकों व पैरामेडिकल स्टाफ को तकनीकी और व्यावहारिक रूप से प्रशिक्षित भी किया जा चुका है।

लखनऊ, जागरण ऑनलाइन टीम : देश को वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त बनाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संकल्प को साकार करने को लेकर योगी सरकार इच्छा शक्ति के साथ मिशन मोड में जुटी हुई है। इसी क्रम में योगी सरकार ने प्रदेश की जेलों में निरुद्ध कैदियों की सघन टीबी स्क्रीनिंग और जांच कराने का फैसला लिया है।
योगी सरकार ने लैंसेट की रिपोर्ट में कैदियों में टीबी का जोखिम पांच गुना अधिक होने की बात सामने आने के बाद यह निर्णय लिया है। इसके अलावा सीएम योगी की ओर से प्रदेश सरकार के विभागों को आपसी समन्वय बनाकर टीबी की स्क्रीनिंग व जांच बढ़ाने, पूर्ण उपचार सुनिश्चित करने और सरकारी मदद पहुंचाने के भी सख्त निर्देश हैं। इसका असर सामुदायिक और प्रशासनिक स्तर पर भी साफ देखा जा सकता है।
टीबी, HIV, हेपेटाइटिस बी-सी की जांच को चलाया जाएगा अभियान
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन-उत्तर प्रदेश के अपर मिशन निदेशक डॉ. हीरा लाल का कहना है कि प्रदेश की जेलों में शीघ्र ही टीबी, एचआईवी, हेपेटाइटिस बी-सी और सिफलिस की स्क्रीनिंग व जांच के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाया जाएगा। इसके लिए यूपी स्टेट एड्स कंट्रोल सोसायटी के नेतृत्व में यूपीएनपी प्लस संस्था के सहयोग से जेल चिकित्सकों व पैरामेडिकल स्टाफ को तकनीकी और व्यावहारिक रूप से प्रशिक्षित भी किया जा चुका है।
नेशनल एड्स कंट्रोल आर्गनाइजेशन (नाको) के दिशा निर्देश के मुताबिक कैदियों की छह-छह माह के अंतराल पर एचआईवी, टीबी, हेपेटाइटिस बी-सी और सिफलिस की स्क्रीनिंग और जांच के लक्ष्य को प्राप्त करने में भी यह अभियान सहायक साबित होगा।
हर महीने राज्य क्षय रोग इकाई व पार्टनर्स के साथ मीटिंग
डॉ. हीरा लाल के अनुसार एचआईवी ग्रसित में टीबी के जोखिम को देखते हुए सहयोगी संस्थाओं के साथ हर महीने बैठक कर जमीनी स्तर पर इन बीमारियों को लेकर आ रही चुनौतियों पर चर्चा के साथ समाधान निकाला जाएगा। एड्स कंट्रोल सोसायटी की तकनीकी सहयोग इकाई व राज्य क्षय रोग इकाई की तकनीकी सहयोग इकाई को आपसी तालमेल बनाकर कार्यक्रम की प्राथमिकताओं के मुताबिक़ कार्य करने का भी निर्देश दिया जा चुका है।
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष और नार्थ जोन टीबी टास्क फोर्स के चेयरमैन डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि टीबी को वर्ष 2025 तक खत्म करने के लिए योगी सरकार ने हाई रिस्क पापुलेशन (जिनमें टीबी होने का जोखिम ज्यादा है) में जांच का दायरा बढ़ाने के निर्देश दिये हैं।
एसीएफ के दौरान जेलों में करायी जाती है जांच
राज्य क्षय रोग अधिकारी डॉ. शैलेन्द्र भटनागर का कहना है कि प्रदेश में समय-समय पर चलाये जाने वाले सक्रिय क्षय रोगी खोज (एसीएफ) अभियान के दौरान हाई रिस्क पापुलेशन पर विशेष तौर पर फोकस किया जाता है। इनमें जेलों में कैदियों की स्क्रीनिंग और जांच करायी जाती है।
इसको लेकर हाल ही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सख्त निर्देश भी दिये हैं। इसी का असर है कि जांच में जिन कैदियों में टीबी की पुष्टि होती है, उनका तुरंत उपचार शुरू कराया जाता है। विवरण निक्षय पोर्टल पर भी अपडेट किया जाता है, ताकि उनको सरकारी सुविधाएं हासिल होने के साथ ही इलाज के दौरान सही पोषण के लिए 500 रुपये भी प्रतिमाह मिल सकें।
दवाओं के नियमित सेवन व सही पोषण से टीबी से जल्द स्वस्थ बना जा सकता है। राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के लक्ष्य को हासिल करने को अब बहुत कम समय बचा है, इसलिए टीबी की स्क्रीनिंग और जांच का दायरा बढ़ाने में सभी का सहयोग बहुत जरूरी है।
जेलों में प्रति एक लाख पर 1076 टीबी मरीज
लैंसेट पब्लिक हेल्थ की रिपोर्ट के अनुसार आज भी 30 से 40 प्रतिशत लोगों में टीबी का पता देर से चल पाता है या नहीं चल पाता है। वह संक्रमण को फैलाते रहते हैं, क्योंकि एक टीबी ग्रसित साल भर में 10 से 15 लोगों को टीबी संक्रमित कर सकता है। टीबी के लिहाज से कारागार, अनाथालय, वृद्धाश्रम व मलिन बस्तियां हाई रिस्क की श्रेणी में आती हैं। इसके अलावा डायबिटीज, कुपोषित, धूम्रपान, तम्बाकू या अल्कोहल का सेवन करने वाले भी हाई रिस्क की श्रेणी में आते हैं।
लैंसेट की रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई है कि देश की जेलों में प्रति एक लाख कैदी पर 1076 टीबी मरीज पाए गए हैं, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की टीबी रिपोर्ट-2022 के अनुसार सामान्य आबादी में प्रति एक लाख पर 210 टीबी मरीज हैं। इसके अलावा एचआईवी ग्रसित में भी टीबी का जोखिम अधिक रहता है।
राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए यह भी जरूरी है कि समुदाय में टीबी को लेकर कोई भय न हो बल्कि यह विश्वास हो कि इलाज से टीबी पूरी तरह ठीक हो सकती है। टीबी रोगियों को समुदाय का सहयोग मिले जिससे वह जल्दी बीमारी से स्वस्थ बन सकें और संक्रमण फैलने से रोकने में भी मदद मिल सके।
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