'गंगा का पानी आचमन और पीने योग्य नहीं...', NGT ने बताया यूपी में क्यों मैली हो रही गंगा?
एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में सीवेज के कारण गंगा का पानी पीने और आचमन के योग्य नहीं रह गया है। ट्रिब्यूनल ने राज्य के मुख्य सचिव को एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है जिसमें विभिन्न जिलों में प्रत्येक नाले सीवेज और सीवेज शोधन संयंत्र (एसटीपी) के बारे में जानकारी देनी होगी।

लखनऊ, एजेंसी। उत्तर प्रदेश में सीवेज के कारण गंगा मैली होती जा रही है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने शनिवार को कहा कि गंगा का पानी आचमन योग्य नहीं रह गया है।
बता दें कि प्रदेश में सीवेज या दूषित पानी गंगा में बहाया जा रहा है। इसके कारण पानी की गुणवत्ता खराब हो रही है। इस पर असंतोष जाहिर करते हुए एनजीटी ने राज्य के मुख्य सचिव को एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। इसमें विभिन्न जिलों में प्रत्येक नाले, सीवेज और सीवेज शोधन संयंत्र (एसटीपी) के बारे में जानकारी देनी होगी।
राज्यों की रिपोर्ट को देखते हुए एनजीटी ने की टिप्पणी
एनजीटी ने इससे पहले गंगा में प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण पर विचार करते हुए उत्तर प्रदेश समेत विभिन्न राज्यों से अनुपालन रिपोर्ट मांगी थी। 6 नवंबर के आदेश में एनजीटी अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने कहा कि उत्तर प्रदेश की रिपोर्ट के अनुसार, प्रयागराज जिले में सीवेज शोधन में 128 एमएलडी (मिलियन लीटर प्रतिदिन) का अंतर है। इसके अलावा 25 नालों से गंगा में बिना शोधित सीवेज गिरता है, जबकि 15 नालों से बिना शोधित सीवेज यमुना में बहता है।
पीठ में जस्टिस सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए संथिल वेल भी शामिल हैं। ट्रिब्यूनल ने कहा, 'हमने पाया है कि केंद्रीय नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की 22 अक्टूबर की रिपोर्ट में बताए गए 326 नालों में से 247 नाले बिना शोधित 3,513.16 एमएलडी सीवेज गंगा और सहायक नदियों में गिरा रहे हैं।'
इसके साथ ही एनजीटी ने राज्य के मुख्य सचिव को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। पीठ ने कहा, 'हलफनामे में उन अल्पकालिक उपायों का भी जिक्र किया जाए, जो एसटीपी के पूरी तरह काम करने तक प्रत्येक जिले में नदी में बिना शोघित सीवेज बहाने से रोकने के लिए अपनाए जाएंगे।'
इसे भी पढ़ें- हरिद्वार के चंडी घाट पर होगा गंगा उत्सव का आयोजन, केंद्र और राज्य सरकारों के कई अतिथि लेंगे भाग
सितंबर में भी NGT ने यही टिप्पणी की थी
इसके पहले 25 सितंबर 2024 को NGT ने गंगा-यमुना में प्रदूषण पर उच्चस्तरीय कमेटी बनाई थी। एनजीटी ने तब भी कहा था कि गंगा का पानी पीने और आचमन के योग्य नहीं है।
क्या है एनजीटी?
राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम 2010 के तहत किया गया है। इसका उद्देश्य पर्यावरण बचाव और वन संरक्षण और अन्य प्राकृतिक संसाधन सहित पर्यावरण से संबंधित किसी भी कानूनी अधिकार के प्रवर्तन और क्षतिग्रस्त व्यक्ति अथवा संपत्ति के लिए अनुतोष और क्षतिपूर्ति प्रदान करना है। साथ ही इससे जुडे़ हुए मामलों का प्रभावशाली और तीव्र गति से निपटारा करने के लिए किया गया है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।