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    2012 से 2017 तक रहा भर्ती घोटालों और पेपर लीक का दौर, अब योग्यता और पारदर्शिता से मिली 8.5 लाख से अधिक युवाओं को सरकारी नौकरी

    Updated: Mon, 15 Dec 2025 06:20 PM (IST)

    उत्तर प्रदेश में 2012 से 2017 तक भर्ती घोटालों और पेपर लीक का दौर रहा. वर्तमान सरकार ने योग्यता और पारदर्शिता के माध्यम से 8.5 लाख से अधिक युवाओं को स ...और पढ़ें

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    डिजिटल टीम, लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर युवाओं को भ्रमित करने की कोशिश हो रही है, लेकिन इस बार युवा याददाश्त के साथ सवाल पूछ रहा है। प्रदेश का युवा आज किसी भ्रम में नहीं है, क्योंकि उसकी स्मृति में दो विपरीत दौरों की सीधी टक्कर दर्ज है।

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    एक तरफ, 2012 से 2017 का वह कड़वा सच है, जब भर्तियों में धांधली, पेपर लीक, सिफारिशों की खुली दुकान थी, और अदालतों में अटकी नौकरियाँ युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ कर रही थीं। इसे 'युवा ठगी का स्वर्णिम काल' कहना गलत नहीं होगा। दूसरी तरफ, 2017 के बाद का दौर है, जहाँ नौकरी जाति और जुगाड़ से निकलकर योग्यता और पारदर्शिता के आधार पर मिल रही है और 8.5 लाख से अधिक युवाओं को सरकारी नौकरी दी जा चुकी है।

    आज जब वही पुराने चेहरे पारदर्शिता का पाठ पढ़ाने निकलते हैं, तो प्रदेश का जागरूक युवा सवाल करता है कि तब कहाँ थे ये सवाल, जब हमारी मेहनत को सिस्टम ने रौंद दिया था? यही टकराव आज की राजनीति की असल कहानी है, और इसके केंद्र में खड़ा है वह जागरूक युवा जो अब साफ कह रहा है कि "लड़के हैं, लेकिन अब लड़कों की गलतियां बर्दाश्त नहीं होंगी।"

    2012–2017: जब नौकरी एक सपना थी, भरोसा नहीं
    साल 2012 से 2017 के बीच उत्तर प्रदेश के युवाओं के लिए नौकरी की तैयारी किसी परीक्षा से ज्यादा धैर्य की अग्निपरीक्षा थी। उस समय भर्तियाँ बार-बार विवादों में फँसती रहीं—कभी चयन सूची पर सवाल उठे, कभी पेपर लीक की खबरें आईं, तो कभी अदालतों के आदेशों के चलते पूरी भर्ती प्रक्रिया ही रद्द करनी पड़ी।

    पुलिस भर्ती में गंभीर अनियमितता: 2015 की यूपी पुलिस कांस्टेबल भर्ती इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। लाखों युवाओं ने परीक्षा दी, लेकिन लिखित परीक्षा, शारीरिक दक्षता और मेरिट लिस्ट—हर चरण में गंभीर गड़बड़ी की शिकायतें सामने आईं। विवाद इतना बढ़ा कि अंततः न्यायालय को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा।

    शिक्षक भर्ती का हाल: सहायक अध्यापक और अन्य शिक्षण पदों की भर्तियों में भी लगातार अनियमितताओं के आरोप लगे। मेरिट से छेड़छाड़ और अपात्र अभ्यर्थियों के चयन के चलते कई भर्तियाँ हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचीं, जिससे वर्षों तक नियुक्तियाँ अटकी रहीं, परिणामस्वरूप स्कूल शिक्षक विहीन रहे और युवा बेरोजगार।

    उस दौर की पहचान: धरने, प्रदर्शन, भर्ती में भ्रष्टाचार की सुर्खियां, और युवाओं पर लाठीचार्ज की बन गई थी। नौकरी की तैयारी करने वाला युवा खुद को सिस्टम से लड़ता हुआ महसूस करता था।

    तुष्टिकरण, प्रशासनिक संतुलन और बेरोजगारी भत्ते में भी घोटाला
    भर्तियों में पक्षपात के आरोप निचले स्तर तक सीमित नहीं थे। उस समय प्रशासनिक पदों पर भी संतुलन को लेकर सवाल उठे। यह तथ्य व्यापक चर्चा में रहा कि 86 में से 56 एसडीएम एक ही जाति विशेष से थे, जिससे यह धारणा मजबूत हुई कि नियुक्तियों में योग्यता से ज्यादा पहचान को प्राथमिकता दी जा रही है।

    राहत देने के नाम पर शुरू की गई बेरोजगारी भत्ता योजना भी युवाओं के लिए सहारा नहीं बनी। योजना के क्रियान्वयन में अपात्र लाभार्थियों, फर्जी आवेदन और भुगतान में अनियमितताओं की शिकायतें सामने आईं। बहुत से वास्तविक बेरोजगारों को न भत्ता मिला, न रोजगार। यह योजना युवाओं के लिए सहारा नहीं, बल्कि राजनीतिक प्रचार का औजार बनकर रह गई।

    2017 के बाद: व्यवस्था बदली, भरोसा लौटा और रिकॉर्ड रोजगार
    2017 के बाद उत्तर प्रदेश ने स्पष्ट रूप से दिशा बदली। सरकार ने तय किया कि अब भर्तियाँ विश्वास का आधार बनेंगी। परीक्षाओं की प्रक्रिया को तकनीक से जोड़ा गया, समयबद्धता और जवाबदेही तय की गई। आज परिणाम सामने हैं:

    सरकारी नौकरी में पारदर्शिता और रिकॉर्ड नियुक्ति
    विभिन्न आयोगों और भर्ती बोर्डों के माध्यम से 8.5 लाख से अधिक युवाओं को सरकारी नौकरी दी जा चुकी है। इनमें 1.75 लाख से अधिक महिलाएँ शामिल हैं।

    नकल माफिया पर सख्ती: परीक्षाओं की शुचिता बनाए रखने के लिए उत्तर प्रदेश सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों का निवारण) कानून लागू किया गया, जिससे नकल माफिया और पेपर लीक पर सख्ती हुई।

    प्रशासनिक सुविधा: UPPSC में एकल अवसरीय रजिस्ट्रेशन (OTR) व्यवस्था लागू कर अभ्यर्थियों की परेशानी कम की गई।

    आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की सुरक्षा और पारदर्शिता के लिए आउटसोर्सिंग सेवा निगम के गठन की प्रक्रिया शुरू की गई। सरकारी नौकरियों के साथ-साथ स्वरोजगार और निजी क्षेत्र में भी बड़े अवसर तैयार हुए। ओडीओपी योजना से दिसंबर 2024 तक 17,041 लाभार्थियों को 72,744 लाख रुपये की मार्जिन मनी प्राप्त हुई, जिससे 2,54,887 रोजगार बने। मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना से 28,419 लाभार्थियों को 81,965 लाख रुपये और 2,27,352 रोजगार सृजित हुए। पीएम रोजगार सृजन कार्यक्रम से 2,34,368 रोजगार, विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना से 3,68,076 कारीगर लाभान्वित हुए। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट-2023 से प्राप्त निवेश प्रस्तावों से 1 करोड़ 10 लाख से अधिक युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बने। एमएसएमई क्षेत्र में 1.65 करोड़ लोगों को रोजगार मिला।

    कौशल विकास: आईटीआई और कौशल विकास मिशन के अंतर्गत 25 लाख से अधिक युवाओं को प्रशिक्षण और 10.20 लाख से अधिक को रोजगार मिला। इंडस्ट्री 4.0, AI, और रोबोटिक्स जैसे क्षेत्रों में प्रशिक्षण शुरू हुआ है।

    युवा सशक्तीकरण: स्वामी विवेकानंद युवा सशक्तीकरण योजना के तहत 49.86 लाख टैबलेट और स्मार्टफोन वितरित किए जा चुके हैं।

    स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश आज एक ऐसे दौर में है जहाँ युवाओं का भविष्य गुड़ और गोबर के बीच का फर्क साफ पहचानता है, और वे पारदर्शिता और योग्यता आधारित व्यवस्था के साथ खड़े हैं।