संजय गांधी PGI में पित्ताशय कैंसर के साथ लिवर की पहली लेप्रोस्कोपिक सर्जरी, यूपी में पहली पर हुई सफल सर्जरी
आपरेशन के बाद बहुत ही कम दर्द का होता है। न के बराबर चीरा लगाया जाता है। ओवरआल टिशु इंजरी भी कम होती है तथा ब्लड लॉस भी कम होता है जिससे कि मरीज को आपरेशन के बाद कम दर्द झेलना पड़ता है।

लखनऊ, जागरण संवाददाता। पित्ताशय में कैंसर की ओपेन सर्जरी खास तौर पर सामान्य लोगों संभव है, लेकिन मोटापे की शिकार महिला में ओपेन सर्जरी मुश्किल थी। ऐसे में मरीज की जिंदगी बचाने के लिए संजय गांधी पीजीआइ के गैस्ट्रो सर्जन प्रो. अशोक कुमार (द्वितीय) ने लेप्रोस्कोपिक सर्जरी की। सर्जरी के बाद सोमवार को मरीज को अस्पताल से छुट्टी दे गई है। उन्नाव की रहने वाली 42 वर्षीय रानी सिंह के पेट में दर्द की परेशानी हुई। जांच में पता चला कि पित्ताशय में गांठ है। फिर उन्हें पीजीआइ रेफर कर दिया गया। यहां पर कई जांच के बाद पता चला कि पित्ताशय की गांठ में कैंसर है।
प्रो. अशोक बताते हैं कि सामान्य लोगों में ओपन सर्जरी बहुत आसान होती है, लेकिन रानी का वजन 92 किलोग्राम था। पेट पर अधिक चर्बी के कारण पित्ताशय तक पहुंचना काफी कठिन था। पूरे मामले को यूनिट हेड गैस्ट्रो सर्जन प्रो. अनु बिहारी के सामने रखा तो तय हुआ कि लेप्रोस्कोपिक सर्जरी ही उपाय है। प्रो.अशोक का कहना है कि इतने भार के मरीज में पित्ताशय कैंसर की लेप्रोस्कोपिक सर्जरी फिलहाल कहीं से रिपोर्टेड नहीं है। यह प्रदेश का पहला मामला है।
सर्जरी के लिए की विशेष तैयारी : सर्जरी के लिए स्पेशल पोर्ट, हारमोनिक स्कैल सहित अन्य उपकरण की व्यवस्था करायी। पांच दिन पहले सर्जरी की गई। पित्ताशय निकालने के साथ इससे सटे हुए लिवर के तीन सेमी टुकड़े को भी निकाला इसके साथ ही आस-पास स्थिति लिम्फनोड को निकाला। इस तकनीक को एक्सटेंड कोलेस्टेटोमी कहते हैं।
इन परेशानियों की आशंका हो गई कम : मोटापे से ग्रस्त मरीजों में आपरेशन के बाद आने आने वाले काम्प्लिकेशन फेफड़ों के इन्फेक्शन, पलमोनरी एंबालिज्म और बाद में इंसीजनल हर्निया होने का काफी चांस होता है, जो कि लेप्रोस्कोपिक सर्जरी द्वारा काफी हद तक कम किया जा सकता है।
लेप्रोस्कोपिक सर्जरी के फायदे : आपरेशन के बाद बहुत ही कम दर्द का होता है। न के बराबर चीरा लगाया जाता है। ओवरआल टिशु इंजरी भी कम होती है तथा ब्लड लॉस भी कम होता है, जिससे कि मरीज को आपरेशन के बाद कम दर्द झेलना पड़ता है। इसके साथ ही साथ मरीजों में फेफड़े का इन्फेक्शन और घाव से रिलेटेड इंफेक्शन और काम्प्लिकेशन होने के चांस भी कम हो जाते हैं।
इनका रहा सहयोग : सर्जरी में यूनिट हेड गैस्ट्रो सर्जन प्रो. अनु बिहारी, डा. मुक्तेश्वर, डा. रोहित, डा. रवींद्र के आलावा एनेस्थीसिया के डा. प्रतीक, डा. रफत और डा. सुरुचि ने सहयोग किया। शुरुआती दौर में मरीज के आने के कारण पित्ताशय के आस-पास कैंसर सेल नहीं फैले थे।
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