Famous Temples In Lakhimpur: लंकापति रावण की इस भूल से यहां स्थापित हुआ था शिवलिंग, नाम पड़ा गोलागोकर्णनाथ
Famous Temples In Lakhimpur किवदंती है कि हिमलायल से शिवलिंंग लेकर निकलते समय भगवान ने रावण से वचन लिया था कि लंका पहुंचने से पहले वह शिवलिंग स्वरूप भगवान को भूमि पर नहीं रखेगा। यदि रख दिया तो शिवलिंंग वहीं स्थापित हो जाएगा।
लखीमपुर, संवादसूत्र। पौराणिक शिवालय की ख्याति के चलते छोटी काशी गोलागोकर्णनाथ के नाम से विख्यात है। पौराणिक शिवालय के संदर्भ में कई किवदंतियां प्रचलित हैं। बताते हैं कि जब गोला नोटिफाइड एरिया नहीं घोषित किया गया था। उस समय पौराणिक शिवालय के समीप गोली नाम का एक गांव बसा था। यही पर पौराणिक स्वयं प्राकट्य शिवलिंग जिसका आकार गो-कर्ण के आकार का था। इसी के चलते समय के साथ गोली गांव गोला गोकर्णनाथ के नाम से विख्यात हो गया।
पौराणिक मान्यताओं व भक्तों की आस्था के चलते शहर का नाम छोटी काशी गोलागोकर्णनाथ के नाम से जाना जाने लगा। यहां वर्ष भर बड़ी संख्या में भक्तों व कांवड़ियों का आवागमन बना रहता है। पौराणिक शिवालय के संबंध में एक किवदंती यह भी है कि जब लंकापति रावण भूतभावन भगवान आशुतोष को हिमालय पर्वत से लेकर चला तो उसी समय माता पार्वती ने रुष्टता जताई। साथ ही भगवान की लीला के अनुसार रावण को शिवलिंग उठाने से पहले आचमन पूजन कराया।
कहा जाता है कि आचमन के दौरान रावण के मुंह में जल लेते समय मां गंगा उनके शरीर में प्रवेश कर गई। जिसके परिणाम स्वरूप हिमालय से गोला होकर लंका मार्ग पर इस स्थान पर जैसे ही रावण पहुंचा। उसी दौरान उसे तीव्र लघुशंका का आभास हुआ। जिसपर उसने भगवान की लीला के अनुसार यहां पर गाय चरा रहे एक ग्वाले को शिवलिंग देकर कहा कि जब तक वह लघुशंका करके नहीं आता तब तक वह शिवलिंग को जमीन पर न रखे।
यह कहकर रावण कुछ दूरी पर चला गया चूंकि मां गंगा उसके शरीर में प्रवेश कर चुकी थी। जिस कारण उसे लघुशंका करने में काफी वक्त लगा। उधर भगवान ने अपना भार बढाया। जिसे ग्वाला सहन नहीं कर सका और उसे जमीन पर रख दिया।
कथा है कि भगवान ने रावण से वचन लिया था कि वह हिमालय से लंका के बीच में शिवलिंग स्वरूप भगवान को भूमि पर नहीं रखेगा। यदि रख दिया तो वह वहीं स्थापित हो जाएंगे। इसी शर्त के कारण जब वापस आए रावण ने शिवलिंग को भूमि पर रखा देखा तो उठाने का काफी प्रयास किया लेकिन, वह उन्हें उठा नहीं सका। थक हारकर क्रोधित रावण के लाख प्रयास करने पर भी नाकाम होने पर उसने शिवलिंग को अपने अंगूठे से दबा दिया। जिस कारण शिवलिंग पर रावण के अंगूठे के निशान की आकृति गोकर्ण के आकार की हो गई।
किवदंती है कि भगवान विष्णु जी की लीला के चलते सुनसान स्थान पर ग्वाला और कोई नहीं वह स्वयं भगवान गणेश जी थे। उधर लंका ले जाने में असफल होने पर नाराज रावण ने ग्वाले को पकड़ने का प्रयास किया। जिसपर ग्वाला शिवलिंग से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक कुंए में जाकर कूद गया। इसके बाद निराश नाराज रावण वहां से चला गया। इन्हीं मान्यताओं व पौराणिक कथाओं के चलते पौराणिक शिवालय में वर्षभर सहित सावन माह में विशेष प्रकार का मेला व भीड़ आकर्षण का केंद्र रहती है। वहीं सावन के अंतिम सोमवार को बाबा भूतनाथ स्थान कुंए पर विशाल मेला लगाया जाता है। जहां बड़ी संख्या में भक्तों, कांवड़ियों की भीड़ जुटती है।
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