Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बहादुर जेल अधीक्षक आरके तिवारी शहीद, परिवार 19 वर्ष बाद भी बेहाल

    By Dharmendra PandeyEdited By:
    Updated: Sun, 22 Jul 2018 02:02 PM (IST)

    बहादुर जेल अधीक्षक के परिवारीजन अब तो यहीं कह रहे हैं कि शहीद की शहादत को यह कैसा सलाम। 19 वर्ष बाद भी उसका परिवार रोजी-रोटी के लिए मोहताज है।

    बहादुर जेल अधीक्षक आरके तिवारी शहीद, परिवार 19 वर्ष बाद भी बेहाल

    लखनऊ [सौरभ शुक्ला]। लखनऊ जेल में करीब 19 वर्ष पहले तैनात रहे अधीक्षक आरके तिवारी की कार्यशैली से घबराने वाले उस समय के खुंखार अपराधियों ने उनको मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद प्रदेश सरकार ने भले ही उनको बहादुरी के लिए शौर्य चक्र दिया, लेकिन उनके आश्रितों को अभी तक न्याय नहीं मिला। अपर पुलिस महानिदेशक जेल, चंद्रप्रकाश का कहना है कि मामला उनके संज्ञान में ही नहीं है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बहादुर जेल अधीक्षक के परिवारीजन अब तो यहीं कह रहे हैं कि शहीद की शहादत को यह कैसा सलाम। 19 वर्ष बाद भी उसका परिवार रोजी-रोटी के लिए मोहताज है। शहादत के लिए शहीद का दर्जा मिला और जांबाजी के लिए राष्ट्रपति की ओर से शौर्य चक्र प्रदान किया गया। लखनऊ जिला जेल में तैनात अधीक्षक रमाकांत तिवारी ने शातिर अपराधियों पर नकेल कसी तो इस जांबाज अधिकारी को राजभवन के सामने गोलियों से बदमाशों ने छलनी कर दिया था। इसके बाद उनकी बहादुरी की हर स्तर पर चर्चा होने लगी, उसके बाद सभी घोषणाएं हवा में तैरने लगीं और अभी भी तैर रही है। परिवार के किसी भी सदस्य को मृतक आश्रित कोटा से नौकरी नहीं मिली। उस समय सरकार की ओर से परिवार को सभी सुविधाएं देने के साथ ही नौकरी का वादा किया गया। इसके बाद 19 वर्ष का लंबा अंतराल बीत गया। कई सरकारें बदल गईं, लेकिन अब तक मृतक आश्रित पत्नी और बेटा नौकरी के लिए भटक रहे हैं। शहीद रमाकांत इलाहाबाद के कोराव टाउन एरिया के रहने वाले थे।

    पुलिस की लचर पैरवी से बरी हो गए हत्यारोपित भी

    जेल में सुधार के लिए चर्चित रमाकांत तिवारी की चार फरवरी 1999 को हत्या कर दी गई थी। तत्कालीन जिलाधिकारी सदाकांत के आवास से बैठक कर शाम सात बजे लौट रहे थे। राजभवन के पास पहुंचते ही बदमाशों ने ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर उन्हें छलनी कर दिया था। इस मामले में बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी, चर्चित छात्र नेता अभय सिंह समेत दर्जन भर से अधिक लोग नामजद हुए थे। पुलिस की लचर पैरवी से वक्त के साथ आरोपित भी बरी हो गए। शहीद की पत्नी आभा तिवारी को क्लर्क तक की नौकरी नहीं मिल सकी। दो जवान बेटे भी बेरोजगार हैं। नौकरी के लिए शहीद का बेटा विवेक तिवारी अभी भी जेल मुख्यालय से लेकर मुख्यमंत्री आवास, कार्यालय और अधिकारियों के दफ्तरों के चक्कर काट रहा है।

    इनको मिली सभी सुविधा

    पांच साल पहले मेरठ में शहीद हुए डिप्टी जेलर नरेंद्र द्विवेदी की पत्नी जेल मुख्यालय में हैं ओएसडी।

    पांच साल पहले प्रतापगढ़ कुंडा में शहीद हुए डिप्टी एसपी जियाउल हक की पत्नी भी ओएसडी हैं।

    तीन साल पहले वाराणसी में शहीद हुए डिप्टी जेलर अनिल त्यागी की पत्नी भी जेल मुख्यालय में ओएसडी हैं।

    शहादत के बाद पत्नी को दिया गया था शौर्य चक्र

    शहीद के छोटे भाई श्यामाकांत तिवारी ने बताया कि भाई की शहादत के बाद 26 जनवरी को जेल मुख्यालय से भाभी आभा तिवारी को भाई की वीरता के लिए राष्ट्रपति का शौर्य चक्र दिया गया था। इसके बाद कोराव टाउन में जहां पैतृक मकान के वार्ड को भी शहीद आरके तिवारी वार्ड के नाम से घोषित किया गया था। श्यामाकांत ने बताया कि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। परिवार में वृद्ध माता-पिता, दो भतीजे और दो भतीजी हैं। श्यामाकांत ने बताया कि जेल मुख्यालय से भतीजे को ओएसडी पद के लिए प्रस्ताव शासन भेजा गया है, लेकिन अभी तक फाइल शासन में लंबित है।

    होगी उचित कार्रवाई

    एडीजी जेल चंद्र प्रकाश ने बताया कि यह मामला मेरी जानकारी में नहीं है। पूरे प्रकरण के बारे में मातहत अधिकारियों से जानकारी कर उचित कार्रवाई की जाएगी, ताकि मृतक आश्रित को नौकरी मिल सके।