यूपी में हर छठा बॉयलर 25 साल से ज्यादा पुराना, पर्यावरण को खतरा; पढ़िए रिपोर्ट में और क्या खुलासे हुए
यूपी में 15% औद्योगिक बायलर 25 साल से पुराने हैं जो पर्यावरण और सुरक्षा के लिए खतरा हैं। राष्ट्रीय औद्योगिक बायलर ग्रीन सम्मेलन में आई-फारेस्ट ने वायु प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन पर चिंता जताई। बायोमास बायलरों से ग्रामीण रोजगार और किसानों की आय बढ़ने की उम्मीद है। विशेषज्ञों ने ‘ग्रीन बायलर मिशन’ और सौर ऊर्जा ग्रीन हाइड्रोजन जैसे विकल्पों पर जोर दिया।

राज्य ब्यूरो, लखनऊ। प्रदेश में 15 प्रतिशत औद्योगिक बायलर 25 साल से अधिक पुराने हैं, जो न सिर्फ पर्यावरण के लिए खतरनाक हैं, बल्कि सुरक्षा के लिहाज से भी चिंता का विषय हैं। अच्छी बात यह है कि यूपी में कोयले की जगह अब बायोमास आधारित बायलर की ओर रुख बढ़ रहा है, जिससे गांवों में रोजगार और किसानों की आमदनी बढ़ने की संभावना है।
पहली बार आयोजित हुए राष्ट्रीय औद्योगिक बायलर ग्रीन सम्मेलन ने औद्योगिक प्रदूषण पर राष्ट्रीय बहस की शुरुआत कर दी है। होटल द सेंट्रम में बुधवार को हुए इस सम्मेलन में पर्यावरण थिंक टैंक आई-फारेस्ट ने दो महत्वपूर्ण रिपोर्टें जारी कीं, जिनमें औद्योगिक बायलरों से हो रहे वायु प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन के खतरों को बताया गया। सम्मेलन में विशेषज्ञों ने ‘ग्रीन बायलर मिशन’ शुरू करने की मांग की।
ग्रीनहाउस गैस कितनी?
रिपोर्ट के अनुसार, देश में कुल 45,226 बायलर हर साल 1.26 अरब टन भाप पैदा करते हैं, जिससे करीब 182 मिलियन टन ग्रीनहाउस गैस वातावरण में जाती है। यह देश के कुल कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जन का पांच प्रतिशत से भी ज्यादा है।
यदि जल्द ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो वर्ष 2047 तक यह उत्सर्जन चार गुणा तक बढ़ सकता है। आइ-फारेस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, देश के 85 प्रतिशत बायलर छोटे हैं, जिनकी क्षमता 10 टन प्रति घंटा तक ही है और औसत उम्र 18 वर्ष है। यह न सिर्फ ऊर्जा दक्षता को प्रभावित करता है बल्कि सुरक्षा मानकों पर भी सवाल खड़े करता है।
उत्तर प्रदेश में 2,798 बायलर पंजीकृत हैं, जिनमें से 15 प्रतिशत यानी लगभग 420 बायलर 25 साल से अधिक पुराने हैं। इनकी क्षमता का भी केवल 40 प्रतिशत ही उपयोग हो रहा है। श्रम व रोजगार मंत्री अनिल राजभर ने बताया कि पिछले एक साल में यूपी में फैक्ट्रियों का पंजीकरण सबसे ज्यादा हुआ है और राज्य सरकार पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन साधने का प्रयास कर रही है।
सम्मेलन में मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने कहा कि यह रिपोर्ट सिर्फ प्रदूषण घटाने की दिशा नहीं दिखाती, बल्कि स्वच्छ विकास और ग्रामीण आय बढ़ाने का भी रास्ता सुझाती है। आइ-फारेस्ट के सीईओ डा. चंद्रभूषण ने कहा कि जैसे कोयला आधारित बायलर ने 18वीं सदी में औद्योगिक क्रांति शुरू की थी, वैसे ही हरित बायलर नई हरित औद्योगिक क्रांति का आधार बन सकते हैं।
डीपीआइआइटी के तकनीकी सलाहकार संदीप कुमार सदानंद कुंभार ने बायलर अधिनियम 2025 को ऐतिहासिक सुधार बताया, जो सुरक्षा और हरित तकनीकों की ओर एक बड़ा कदम है। अन्य विशेषज्ञों ने पारंपरिक जीवाश्म ईंधन आधारित बायलरों की जगह सौर तापीय ऊर्जा, ग्रीन हाइड्रोजन, नवीकरणीय बिजली और स्वच्छ बायोमास तकनीक पर जोर दिया। सम्मेलन में आइआइटी कानपुर, फोर्ब्स मार्शल, थर्मैक्स ग्लोबल, चीमा बायलर्स लिमिटेड सहित कई कंपनियों की भागीदारी रही।
प्रदूषण में अग्रणी पांच राज्य
रिपोर्ट के अनुसार देश में भाप से कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जन का 56 प्रतिशत हिस्सा केवल पांच राज्यों में गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश से आता है। गुजरात में सबसे अधिक 7,891 बायलर हैं, महाराष्ट्र में 5,049, तमिलनाडु में 3,958, आंध्र प्रदेश में 3,057 और उत्तर प्रदेश में 2,798 बायलर हैं।
महंगी गैस, सस्ता समाधान
देश में 90 प्रतिशत बायलर अभी भी जीवाश्म ईंधन (जैसे कोयला, डीजल) पर चलते हैं, जिससे भारी वायु प्रदूषण होता है। जबकि गैस आधारित बायलर महंगे हैं। लेकिन रिपोर्ट में उम्मीद जताई गई कि वर्ष 2030 के बाद नवीकरणीय बिजली और ग्रीन हाइड्रोजन सबसे व्यावहारिक विकल्प बन सकते हैं।
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