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    Emergency In India: 'मुझे पंखे से लटका दिया...' 49 साल बाद भी हरे हैं जख्म, पढ़ें लोकतंत्र सेनानियों की कहानी उन्हीं की जुबानी

    Updated: Mon, 24 Jun 2024 04:32 PM (IST)

    25 जून 1975 को भारत में आपातकाल लागू हुआ था। भले ही इस काले दिन को बीते 49 साल हो गए हों लेकिन इसके दिए जख्म आज भी हरे हैं। 21 मार्च 1977 तक 21 महीने के लिए लगे आपातकाल का वह स्याह कालखंड लोकतंत्र सेनानियों के लिए एक दुस्वप्न है। इन्होंने आपातकाल की कहानी बयां कर अपना दर्द साझा किया।

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    आपातकाल की फाइल फोटो: लखनऊ जेल में बंद रामशंकर त्रिपाठी, बीच में कृष्ण चंद्र बलेचा वगिरजा शंकर चतुर्वेदी

    जितेंद्र उपाध्याय, लखनऊ। 25 जून 1975 की तारीख भारतीय इतिहास का वह काला दिन है जिसे भुलाया नहीं जा सकता। भले ही इस काले दिन को बीते 49 साल हो गए हों, लेकिन इसके दिए जख्म आज भी हरे हैं। मंगलवार को आपातकाल की 49वीं बरसी है। 21 मार्च 1977 तक 21 महीने के लिए लगे आपातकाल का वह स्याह कालखंड लोकतंत्र सेनानियों के लिए एक दुस्वप्न है। इन्होंने आपातकाल की कहानी बयां कर अपना दर्द साझा किया।

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    ...और मेरे पैजामे के साथ हुआ गौना

    कानपुर रोड एलडीए कालोनी निवासी रमाशंकर त्रिपाठी ने बताया कि आलमबाग में भीड़ को बुलाकर सभा करने और सरकार के खिलाफ लोगों को भड़काने के आरोप में सात सितंबर 1975 को गिरफ्तार कर लिया गया। पहले कृष्णानगर के केशवनगर में रहता था। कृष्णानगर पुलिस ने गिरफ्तार किया, लेकिन कृष्णानगर में हवालात नहीं थी, वहां से आलमबाग थाने लाया गया। नौ जनवरी 1977 तक जेल में बंद रहा। मेरी शादी हो चुकी थी, लेकिन गौना नहीं आया था।

    गौने की तारीख आ गई तो पिता दल बहादुर त्रिपाठी आए और जेल से मेरा पैजामा लेकर गए। मेरी पत्नी सुनीता तिवारी मेरे घर आ गई। मेरे साथ बंद हुए राम सागर मिश्रा का नैनी जेल में स्थानांतरण होने लगा। मैंने विरोध करना शुरू कर दिया। एडीएम टीएन मिश्रा समझाने आए, तभी राम सागर मिश्रा ने एडीएम को थप्पड़ जड़ दिया। इसी बीच राम सागर मिश्रा का जेल में ही निधन हो गया। उन्हीं के नाम पर रामसागर मिश्रा नगर बसाया गया जो वर्तमान में इंदिरानगर है।

    आटा गूंथते हाथों में पड़ गए थे छाले

    इंदिरानगर के राजेंद्र तिवारी ने बताया, मैं लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रावास में रहता था। जनसंघ से जुड़ाव होने के कारण मैं नाना जी देशमुख का आदर करता था। नाना जी ने एक कार्यकर्ता को बचाने के लिए पुलिस की लाठी को अपने हाथ पर रोक लिया था, जिससे उनका हाथ टूट गया। जनसंघ की ओर से मुझे राजधानी आए नानाजी देशमुख को चिट्ठी देने के लिए कहा गया। पत्र लेकर निकला तो किसी मुखबिर ने कैसरबाग पुलिस को सूचना दे दी। मैंने भी ठान लिया था कि मैं चिट्ठी पहुंचाकर ही रहूंगा।

    उस समय कैसरबाग जाते समय ओडियन के पास नाला हुआ करता था। पुलिस ने नाकेबंदी कर मुझे पकड़ना चाहा तो मैंने पहले नानाजी देशमुख की गुप्त चिट्ठी को चबा लिया। फिर क्या था, पुलिस का कहर टूटा और मेरी खूब पिटाई हुई, लेकिन मैंने नानाजी देशमुख के ठिकाने का पता नहीं बताया। 30 जून 1975 को मुझे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। जेलर नाराज होता था तो भंडारे में भेज देता था। भंडारे में आटा गूंथते हुए हाथों में छाले पड़ जाते थे। जब खाना खाने बैठता था तो आगे से थाली खींच लेते थे।

    आओ बताएं हवाई जहाज कैसे बनाते हैं ...

    इंदिरानगर के डा. अजय शर्मा ने बताया, साजिश रचने और सत्याग्रह करने के आरोप में मुझे 25 नवंबर 1975 को गिरफ्तार कर लिया गया। मेरी उम्र 15 साल थी। हाईस्कूल की परीक्षा दे चुका था। हसनगंज पुलिस ने लखनऊ विश्वविद्यालय के पास से मुझे इसलिए गिरफ्तार कर लिया कि मैं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ा था। गिरफ्तारी के बाद छह दिन तक मुझे हसनगंज कोतवाली में रखा गया। तत्कालीन दारोगा ने मुझे पंखे से लटका दिया और बोला, आओ अब तुम्हे बताते हैं कि हवाई जहाज कैसे बनता है।

    दारोगा ने पैरों पर डंडा बरसाना शुरू कर दिया। मेरे पिता मुंशीराम शर्मा रेलवे में नौकरी करते थे। उनसे भी दारोगा ने नहीं मिलने दिया। छह दिन बाद सूरज त्रिवेदी, गणेश राय, सुरेश व बसंत के साथ मुझे जिला कारागार में रख दिया गया। सुविधाएं तो दूर, खाना तक सही नहीं मिलता था। एक दिन सभी ने मिलकर हंगामा करना शुरू कर दिया। मुझे फतेहगढ़ जेल भेज दिया गया। करीब सवा साल मैं जेल से रहा। जेल में पढ़ने की सुविधा थी तो जेल से ही इंटर किया और बीएएमएस पहले वर्ष की पढ़ाई भी जेल से ही की।

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