एससी/एसटी पर कोर्ट के निर्णय से ओबीसी में फिर उठी कोटे में कोटा की मांग, एक ही जाति के लोगों को मिल रहा आरक्षण
एससी/एसटी में कोटे में कोटा देने पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लगने के बाद उत्तर प्रदेश में अब अन्य पिछड़ा वर्ग में इस प्रक्रिया को लागू करने की पुरानी मांग को बल मिला है। कहा जाता रहा है कि ओबीसी में अति पिछड़े वर्ग को आरक्षण का समुचित लाभ नहीं मिल रहा है जबकि आरक्षण का बड़ा हिस्सा एक ही जाति के लोगों को मिल रहा है।
राज्य ब्यूरो, लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट से एससी/एसटी में कोटे में कोटा देने पर मुहर लगने के बाद उत्तर प्रदेश में अब अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में भी इसे लागू करने की वर्षों पुरानी मांग फिर से तेज हो गई है।
भाजपा जहां सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक कदम को लेकर सकारात्मक रुख दिखा रही है वहीं एनडीए में शामिल सुभासपा ने एससी/एसटी की तरह ओबीसी आरक्षण में भी सर्वाधिक पिछड़ी जातियों को अलग कोटा देने और निषाद पार्टी ने उपवर्गीकरण की मांग की है।
दरअसल, वर्षों से ओबीसी के आरक्षण की समीक्षा करने की मांग उठती रही है। कहा जाता रहा है कि ओबीसी में अति पिछड़े वर्ग को आरक्षण का समुचित लाभ नहीं मिल रहा है, जबकि आरक्षण का बड़ा हिस्सा एक ही जाति के लोगों को मिल रहा है।
इन बातों को बल ओबीसी आरक्षण की स्थिति का पता लगाने के लिए गठित जस्टिस राघवेंद्र सिंह आयोग की सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट में मिला था। वर्ष 2018 में भाजपा सरकार ने अति पिछड़े वर्ग को उनकी हिस्सेदारी देने के लिए सामाजिक न्याय समिति का गठन किया था।
समिति ने ओबीसी में पिछड़ा वर्ग को सात प्रतिशत, अति पिछड़ा वर्ग को 11 प्रतिशत और अत्यंत पिछड़ा वर्ग को नौ प्रतिशत आरक्षण देने की सिफारिश की थी। पिछड़ा वर्ग में अहीर, यादव, कुर्मी, जाट, हलवाई, चौरसिया, सैथवार, पटेल, सोनार, सुनार, स्वर्णकार जैसी जातियों को शामिल करने की सिफारिश रिपोर्ट में की गई थी।
वहीं, अति पिछड़ा वर्ग में मौर्य, लोधी, राजपूत, गुर्जर, गिरी, लोध, काछी,कुशवाहा, शाक्य और तेली जबकि अत्यंत पिछड़ा वर्ग में घोसी, कश्यप, केवट, नट राजभर, निषाद, मल्लाह, जैसी जातियां शामिल की गईं थी।
वैसे तो आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग पहले भी उठती रही, लेकिन अब एससी/एसटी पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने के बाद जिस तरह का रुख भाजपा और उसके सहयोगी दलों का है उससे माना जा रहा है कि इस दिशा में जल्द ही राज्य सरकार निर्णय कर सकती है।
35 प्रतिशत लोगों को नहीं मिला लाभ
योगी सरकार में पिछड़ा वर्ग कल्याण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के साथ ही भाजपा पिछड़ा वर्ग मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र कश्यप कहते हैं कि वर्षों से सामाजिक संगठन ओबीसी में अति पिछड़ों को उनके आरक्षण का अधिकार देने की मांग उठा रहे थे। अब भी ओबीसी में करीब 35 प्रतिशत लोगों को आरक्षण का अधिकार नहीं मिल सका है। अब सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी के साथ ओबीसी वर्ग में भी कोटे में कोटा देने का प्रावधान करने का निर्णय किया है। इससे वंचित वर्ग को बड़ी राहत मिलेगी। हमारी यूपी की सरकार, केंद्र सरकार के साथ मिलकर इस पर शीघ्र नीति बनाएगी।
गौरतलब है कि पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक (पीडीए) का नारा देकर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव हाल के लोकसभा चुनाव में पिछड़े वर्ग को अपने साथ जोड़ने में सफल रहे जिससे पार्टी के 37 सांसद जीते। चुनाव में सत्ताधारी भाजपा को बड़ा झटका लगा।
चूंकि, वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अखिलेश का पिछड़े वर्ग पर कहीं ज्यादा फोकस बना हुआ है, ऐसे में माना जा रहा है कि पिछड़े वर्ग को साधने के लिए भाजपा सामाजिक न्याय समिति की संस्तुतियों पर जल्द निर्णय कर बड़ा राजनीतिक दांव चल सकती है।
पहले भी हुई है ओबीसी को साधने की कोशिश
ओबीसी के आरक्षण को लेकर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने वर्ष 2016 में अपनी सरकार के रहते दांव चला था। अखिलेश ने मुख्यमंत्री रहते हुए ओबीसी की 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा था।
इसमें ओबीसी वर्ग की कहार, कश्यप, केवट, निषाद, बिंद, भर, प्रजापति, राजभर, बाथम, गौर, तुरा, मांझी, मल्लाह, कुम्हार, धीमर, गोडिया और मछुआ शामिल थी। इससे पहले वर्ष 2004 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने भी केंद्र को प्रस्ताव भेजा था।
सुभासपा ने कहा ओबीसी पर भी हो विचार
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के राष्ट्रीय महासचिव अरूण राजभर ने शुक्रवार को कहा कि एससी/एसटी की तरह ओबीसी आरक्षण में भी सर्वाधिक पिछड़ी जातियों को अलग कोटा दिए जाने पर भी विचार किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से पिछड़ी जातियों में अत्यधिक पिछड़ी व सर्वाधिक पिछड़ी जातियों का भी अलग कोटा देने का समय आ गया है।
पार्टी अपनी स्थापना के समय से इसकी लड़ाई लड़ रही है। पार्टी की मांग पर वर्ष 2018 में जस्टिस राघवेंद्र सिंह की अध्यक्षता वाली सामाजिक न्याय समिति ने अपनी रिपोर्ट भी सौंप दी थी। प्रदेश की सरकार को रिपोर्ट को तत्काल लागू करने की पहल करनी चाहिए, जिससे अति पिछड़ों और अति दलितों को न्याय मिल सके। इनकी भी सभी क्षेत्रों में भागीदारी सुनिश्चित हो सके।
ओबीसी वर्ग के 27 प्रतिशत आरक्षण में कुछ विशेष समुदाय आरक्षण की सुविधा पर पूरी तरह काबिज हो गए हैं। वहीं, 22.5 प्रतिशत दलित आरक्षण में दलित वर्ग में कुछ विशेष समुदाय आरक्षण की सुविधा पर पूरी तरह काबिज हो गए। आरक्षण की सुविधा लेकर एक ऐसा संपन्न वर्ग विकसित हो गया, जिसने आरक्षण की सभी सुविधाएं अपने तक केंद्रित कर ली हैं।
समृद्ध लोगों को आरक्षण छोड़ना चाहिए
निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व कैबिनेट मंत्री डाॅ. संजय कुमार निषाद ने सुप्रीम कोर्ट का स्वागत करते हुए कहा कि भाजपा, निषाद पार्टी, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी की जो सोच है समाज के पिछले और निचले पायदान पर रह रहे गरीब तबके को लाभ मिले। इस कद से वो परिकल्पना पूर्ण होगी। बहुत पहले से हम इस बात के समर्थक हैं कि एससी/एसटी और ओबीसी में आरक्षण का लाभ पा चुके समृद्ध लोगों को आरक्षण छोड़ना चाहिए, जिससे अन्य लोगों को लाभ मिल सके।
हमारी पार्टी भी तो यही मांग कर रही है कि आरक्षित श्रेणी ही नहीं सभी वर्ग की जातीय जनगणना कराकर उनको आबादी के अनुपात में आरक्षण दें। जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी होना चाहिए। तब ही वंचितों को उनका अधिकार मिल सकेगा। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी एससी/ एसटी के आरक्षण में वंचित वर्ग को कोटे में कोटा का लाभ देने की बात कही है।
-राजपाल कश्यप, अध्यक्ष पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ, सपा
अन्य पिछड़ा वर्ग में भी एक वर्ग अति पिछड़ा है। कुछ बलवान लोगों तक ही नहीं सभी को आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। इसके लिए उनका आरक्षण देते समय उपवर्गीकरण करने का निर्णय स्वागत योग्य है। इसकी मांग कई साल से उठ रही है।
-हीरा ठाकुर, पूर्व सदस्य, राज्य अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग
यह भी पढ़ें: क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बदल जाएंगे आरक्षण के नियम? पढ़ें 'कोटे में कोटा' के क्या हैं मायने
यह भी पढ़ें: कोटा के अंदर कोटा: 1960 से उठ रही थी मांग, SC के फैसले से किसे मिलेगा सबसे अधिक फायदा? पढ़ें पूरी Timeline