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    नेपाल को भायी बाराबंकी के ढोलकों की थाप, दमदार आवाज के साथ बनी 65 परिवारों की आजीविका का जरिया

    By Vikas MishraEdited By:
    Updated: Fri, 13 Aug 2021 06:11 PM (IST)

    किसी भी शुभ मौके का आनंद बिना ढोलक की थाप के पूरा नहीं होता। इसलिए ढोलक खरीदने में उसकी आवाज को ज्यादा महत्व मिलना लाजिमी है। बाराबंकी के फतेहपुर के शेखपुर बिलौली रसूलपनाह गांव में ढोलक बनाने का कारोबार होता है।

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    साल में एक परिवार करीब 1000 ढोलक बना लेता है। इसमें ढोलक बचकानी, घरेलू ढोलक, बड़ी ढोलक होती हैं।

    बाराबंकी, [पंकज जैन]। किसी भी शुभ मौके का आनंद बिना ढोलक की थाप के पूरा नहीं होता। इसलिए ढोलक खरीदने में उसकी आवाज को ज्यादा महत्व मिलना लाजिमी है। बाराबंकी के फतेहपुर के शेखपुर, बिलौली, रसूलपनाह गांव में ढोलक बनाने का कारोबार होता है। दमदार आवाज और कम कीमत के चलते यहां बनी ढोलक की मांग देश के विभिन्न हिस्सों के साथ ही विदेशों में भी है। यहां बनी ढोलक महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, चेन्नई, गोवा आदि प्रांतों के साथ ही नेपाल में सबसे ज्यादा बिकती है। इससे घरों में जहां मांगलिक कार्यक्रमों में यहां की ढोलक की थाप गूंजती है वहीं इस कारोबार से जुड़े परिवारों के लिए यह आजीविका का मजबूत जरिया भी है। 

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    कीमत कम, आवाज में बेहतर: वर्ष भर में एक परिवार करीब 1000 ढोलक बना लेता है। इसमें ढोलक बचकानी, घरेलू ढोलक, बड़ी ढोलक होती हैं। छोटी ढोलक 150 से 200 और बड़ी ढोलक 200 से 400 रुपये तक में बिक जाती है। इसकी आवाज भी बेहतर होती है। ढोलक तो नेपाल में भी बनती हैं। वहां की छोटी ढोलक 300 से 500 रुपये और बड़ी ढोलक 600 से 1000 रुपये तक बिकती है और आवाज में बाराबंकी की ढोलक के आगे टिकती भी नहीं हैं। इसलिए नेपालवासी बाराबंकी की बनी ढोलक पंसद करते हैं। बाराबंकी में ढोलक बनाने वाले लोग दीपावली के पहले ट्रक से नेपाल ले जाते हैं। वहां मांग के अनुसार लोगों और वहां के व्यापारियों को दिया जाता है। 

    ऐसी बनती है ढोलक: शेखपुर के कल्लू चौधरी बताते हैं कि ढोलक हमारी रोजी-रोटी है। हमारे यहां इसका कारोबार पांच पीढिय़ों से होता आ रहा है। वह बताते हैं कि ढोलक बनाने के लिए अमरोहा से कच्चा माल लाते हैं। फिर पूरे परिवार की मदद से ढोलक तैयार करते हैं। खाल बकरा की लगाते हैं। ढोलक बनाने में खोल, बांस, बकरा की खाल, डोरी, लोहे के छल्ले लगते है। एक ढोलक तैयार करने में करीब दो घंटे लगते हैं। फतेहपुर के शेखपुर बिलौली के कल्लू चौधरी, मो. सईद, पीर मोहम्मद, मो. सब्बीर, जागीर सहित करीब 65 परिवार यह कार्य करते हैं।

    फैक्ट फाइल

    • फतेहपुर ब्लाक के तीन गांवों में बनाई जाती है ढोलक
    • करीब 65 परिवारों की आजीविका का है माध्यम
    • एक परिवार साल भर में बनाता है औसतन एक हजार ढोलक
    • सालभर में सवा लाख से अधिक ढोलक का होता है कारोबार