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    दिमागी बुखार : झोलाछाप डॉक्टरों के चंगुल में न फंसें, सरकारी अस्पताल ही जाएं Lucknow News

    By Anurag GuptaEdited By:
    Updated: Sat, 29 Jun 2019 08:56 AM (IST)

    स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के संयुक्त निदेशक संचारी रोग डॉ. विकासेंदु अग्रवाल ने दिमागी बुखार के लक्षण बचाव व इलाज के विषय में महत्वपूर्ण जानकारियां दीं।

    दिमागी बुखार : झोलाछाप डॉक्टरों के चंगुल में न फंसें, सरकारी अस्पताल ही जाएं Lucknow News

    लखनऊ, जेएनएन। किसी भी प्रकार का बुखार दिमागी बुखार में तब्दील हो सकता है। इसलिए बुखार को गंभीरता से लें। झोलाछाप डॉक्टरों के चंगुल में कतई न फंसें और तत्काल सरकारी अस्पताल जाकर चिकित्सक को दिखाएं। जितने दिन दवा का कोर्स बताया गया है उसे पूरा करें। हो सकता है कुछ दिन दवा खाने के बाद बुखार ठीक होने लगे, पर कोर्स बीच में बंद न करें। गुरुवार को जागरण कार्यालय में आयोजित हेलो डॉक्टर कार्यक्रम में येे सुझाव स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के संयुक्त निदेशक, संचारी रोग डॉ. विकासेंदु अग्रवाल ने दिए। 

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    पाठकों ने पूछे ये सवाल 

    सवाल : ग्रामीण इलाकों के लोगों में दिमागी बुखार के प्रति जागरूकता कैसे आएगी?

    जवाब : जनपदीय व ब्लॉक स्तर पर जितने भी अस्पताल हैं, वहां से जानकारी प्राप्त की जा सकती है। एक से 15 जुलाई तक जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है जो लखीमपुर में भी होगा। इसके तहत प्रशिक्षित आशा बहुएं घर-घर जाकर आसान शब्दों में लोगों को दिमागी बुखार के बारे में बताएंगी। आप खुद भी जागरूक हों और दूसरों को जागरूक करें।

    सवाल : दिमागी बुखार शुरू कैसे होता है, इलाज कैसे हो?

    जवाब : दिमागी बुखार की शुरुआत सामान्य बुखार मसलन मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया आदि से ही होती है। इन्हीं में जब मरीज की स्थिति ज्यादा बिगड़ जाती है तो उसकी मानसिक स्थिति बदल जाती है। वह बड़बड़ाने लगता है या फिर बोल ही नहीं पाता। ये दिमागी बुखार के लक्षण हैं। बुखार हो जाने की स्थिति में नहीं, पहले से ही इलाज कराना जरूरी है। इसके लिए सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों को प्रशिक्षित किया गया है। 

    सवाल : मौसम बदलते ही जुकाम हो जाता है, बुखार बना रहता है।

    जवाब : हो सकता है आपको साइनोसाइटिस हो। नजदीकी सरकारी अस्पताल में फिजिशियन अथवा ईएनटी स्पेशलिस्ट को दिखाएं। 

    सवाल : किन बातों का ख्याल रखें कि दिमागी बुखार हो ही न।

    जवाब : बचाव सरल है। ज्यादातर बीमारियां जो मच्छर के काटने से होती हैं, उनसे दिमागी बुखार होता है। इसके अलावा चूहे की खाल में पलने वाले कीड़े चिगर के काटने से स्क्रब टाइफस हो जाता है। यह भी दिमागी बुखार में परिवर्तित हो जाता है। इसलिए सबसे जरूरी है कि अपना परिवेश साफ-सुथरा रखें। आसपास जलभराव न होने दें। मच्छरदानी का प्रयोग करें। बच्चों को पूरे कपड़े पहनाकर ही बाहर जाने दें। घर में चूहे न पलने दें।

    सवाल : छह साल का बेटा है। तीन महीने पहले तेज बुखार हुआ था। अभी ठीक है, क्या करें कि दोबारा बुखार न हो।

    जवाब : बच्चा यदि अभी स्वस्थ है तो कोई चिंता की कोई बात नहीं। अगर दोबारा बुखार होता है तो तत्काल चिकित्सक को दिखाएं।

    सवाल : दिमागी बुखार हो जाए तो क्या करें?

    जवाब : एक से 15 साल तक के बच्चों को दिमागी बुखार हो सकता है। बुखार के दिमागी बुखार में बदलने का इंतजार न करें। साफ पानी पीएं।  उबालकर पिएं। या फिर 20 लीटर पानी में क्लोरीन की एक गोली डालकर आधे घंटे तक छोड़ दें, पानी पीने लायक हो जाएगा।

    सवाल : डेढ़ साल का बच्चा है। अक्सर बुखार आ जाता है। क्या उसे केला खिला सकते हैं?

    जवाब : कभी-कभी बुखार आना सामान्य बात है। बुखार आने पर सरकारी अस्पताल में दिखाएं, झोलाछाप डॉक्टरों के पास न जाएं। केला खिला सकते हैं।

    सवाल : 10 साल का बच्चा है। बुखार होने पर प्राइवेट डॉक्टर को दिखाते हैं। कुछ दिन ठीक होने के बाद फिर बुखार हो जाता है।

    जवाब : प्राइवेट नहीं, सरकारी अस्पताल में दिखाएं। अगर दवा सात दिन तक खाने को कहा जाए तो पूरा कोर्स करें। बीच में दवा छोडऩे पर दोबारा बुखार हुआ तो वह दवा फिर असर नहीं करेगी।

    सवाल : पांच साल का बच्चा है। दिमागी बुखार हो गया है। 

    जवाब : सिद्धार्थ नगर दिमागी बुखार के प्रति संवेदनशील जिलों में आता है। हर बुखार दिमागी बुखार नहीं होता। सरकारी अस्पताल में इलाज कराएं।

    सवाल : चमकी बुखार और दिमागी बुखार में क्या अंतर है? लीची खा सकते हैं?

    जवाब : चमकी बुखार जैसी कोई बीमारी उत्तर प्रदेश में नहीं फैली है। बिहार में कुपोषित बच्चों के खाली पेट लीची खाकर सो जाने से उनमें समस्या हो रही है। अन्यथा लीची खाने में कोई बुराई नहीं। अच्छा फल है।

    क्या है दिमागी बुखार 

    मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, जापानी इंसेफेलाइटिस, स्क्रब टाइफस जैसा कोई भी बुखार समय पर इलाज न किए जाने पर दिमागी बुखार में तब्दील हो सकता है। हालांकि ऐसा नहीं है कि हर बुखार के मरीज को दिमागी बुखार होने की आशंका रहती है। इससे बचाव के लिए जरूरी है कि बुखार आने पर बगैर समय बर्बाद करे मरीज को सरकारी अस्पताल में ही ले जाएं। इधर-उधर इलाज के लिए भटकने पर मरीज की हालत गंभीर हो सकती है।

    बचाव के उपाय

    • संचारी रोग जैसे मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, फाइलेरिया, कालाजार,  जापानी इंसेफेलाइटिस आदि से बचाव के लिए जरूरी है कि
    • घर के आसपास सफाई रखें, पानी न एकत्र होने दें, मच्छरों से बचाव के  इंतजाम करें।
    • पानी उबालकर या फिल्टर करने के बाद ही पीएं। भोजन बनाने व करने से पहले साबुन से हाथ अवश्य धोएं। 
    • बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए संतुलित आहार दें। कुपोषित बच्चों में प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण संक्रमण का खतरा अधिक रहता है।  
    • स्क्रब टाइफस बीमारी जो कि चूहों व छंछूदर की त्वचा पर पलने वाले चिगर कीड़े के संपर्क में आने से होती है, इससे बचाव के लिए घरों में चूहे न आने दें। 

    दिमागी बुखार के लक्षण

    • तेज बुखार आना व बुखार लगातार बने रहना
    • सुस्त होना, बोल न पाना
    • दांत पर दांत बैठना
    • बड़बड़ाने लगना
    • शरीर में झटके आना या दौरे पडऩा
    • पूरे शरीर में या किसी अंग में ऐंठन होना
    • बेहोशी आना व चिकोटी काटने पर भी शरीर में हरकत न होना

    न होने दें पानी की कमी

    किसी भी तरह के बुखार में यह अवश्य ध्यान रखें कि मरीज के शरीर में तरल पदार्थ की कमी न हो। मरीज को पानी, दूध, सूप, नारियल पानी, दाल का पानी भरपूर मात्रा में दें।  

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