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डीपी यादव से किनारा कर गुर्जरों को मनाने दादरी आए थे मुलायम

महेंद्र सिंह भाटी की हत्या के बाद जहां पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यादवों और गुर्जरों के बीच दूरियां बढ़ीं वहीं डीपी यादव के कारण गुर्जर बिरादरी मुलायम सिंह यादव से भी नाराज रहने लगी थी। डीपी यादव उस समय मुलायम के खासे नजदीक थे। आलम यह कि गुर्जरों के विरोध

By Nawal MishraEdited By: Published: Tue, 10 Mar 2015 07:09 PM (IST)Updated: Thu, 12 Mar 2015 10:14 AM (IST)

लखनऊ। महेंद्र सिंह भाटी की हत्या के बाद जहां पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यादवों और गुर्जरों के बीच दूरियां बढ़ीं वहीं डीपी यादव के कारण गुर्जर बिरादरी मुलायम सिंह यादव से भी नाराज रहने लगी थी। डीपी यादव उस समय मुलायम के खासे नजदीक थे। आलम यह कि गुर्जरों के विरोध के बावजूद मुलायम ने 1993 में डीपी को बुलंदशहर से टिकट दे दिया था। भाजपा के सतीश को हराकर डीपी ने चुनाव जीता मगर कुछ समय बाद ही दोनों के बीच दूरियां बढऩे लगीं।

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महेंद्र सिंह भाटी की हत्या में डीपी का नाम आने के कारण पूरे प्रदेश के गुर्जर मुलायम सिंह यादव से नाराज या निराश रहने लगे थे। मुलायम ने तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष रामशरण दास के माध्यम से गुर्जरों को जोडऩे का प्रयास तो किया मगर खास कामयाबी नहीं मिली थी। गुर्जरों के साथ सामान्य संबंध बनाने और दिखाने के मकसद से ही खेकड़ा के विधायक मदन भैया को मुलायम ने उस समय पूरा वजन दिया। प्रदेश भर के गुर्जरों को अपने खिलाफ जाते देख बाद में मुलायम सिंह ने डीपी यादव से ही किनारा करना सही समझा।

इस पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने डीपी को हाथों-हाथ लिया। गुर्जरों को खुश करने के लिए मुलायम सिंह यादव को महेंद्र सिंह भाटी की पुण्यतिथि पर दादरी भी आना पड़ा था। गुर्जर समाज के जो लोग डीपी से नाराजगी के कारण मुलायम सिंह मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे, उनके बीच बैठकर मुलायम सिंह ने महेंद्र सिंह भाटी की खुले दिल से प्रशंसा करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी थी।

बताते है कि डीपी यादव की कामयाबी की तेज गति के कारण ही उनमें और भाटी के बीच दूरियां बढऩे लगी थीं। खास बात यह है कि महेंद्र भाटी की दबंगई ने उन्हें नेता और विधायक तो बना दिया मगर डीपी की तरह मंत्री वो कभी नहीं बन पाए थे। दोनों में बढ़ते तनाव के बीच 13 सितंबर 1992 की रात महेंद्र सिंह भाटी दादरी के रेलवे रोड पर फाटक के पास एक सहयोगी उदय सिंह आर्य के साथ गोलियों से भून दिए गए थे।

2007 में राष्ट्रीय परिवर्तन दल

गुर्जरों की नाराजगी और नीतीश कटारा हत्याकांड के कारण डीपी यादव से जब तमाम पार्टियों ने लगभग किनारा कर लिया तो 2007 में उन्होंने राष्ट्रीय परिवर्तन दल नाम से अपनी पार्टी बनाई। इसके बाद वह सहसवां से और पत्नी उमलेश बिसौली से विधायक बन गईं। मायावती से फिर नजदीकियां बनने पर डीपी यादव ने 2009 में अपने दल का विलय बसपा में कर लिया। मायावती ने उन्हें मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेंद्र यादव के खिलाफ बदायूं लोकसभा का टिकट दिया मगर डीपी हार गए।

भाजपा में आने की कोशिश

2014 में हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान डीपी भाजपा के नजदीक आ रहे थे मगर एक चुनावी सभा में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ मंच पर नजर आने पर उनका तीव्र विरोध हुआ तो भाजपा ने भी किनारा कर लिया। गुर्जरों के दबंग नेता रहे महेंद्र सिंह भाटी की हत्या में सजा सुनाने के बाद अब कोई भी पार्टी डीपी के साथ नजदीकियां बढ़ाने की स्थिति में नजर नहीं आ रही है।

एक-दूसरे का इस्तेमाल

डीपी यादव ने राजनीति में आगे बढऩे के लिए जहां कई नेताओं को सीढ़ी बनाया, वहीं बड़े-बड़े नेताओं ने भी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को चित करने के लिए डीपी यादव का भरपूर इस्तेमाल किया। मुलायम के साथ कटुता बढऩे पर मायावती ने 1996 में यादव बाहुल्य संभल लोकसभा सीट से डीपी को टिकट दिया और वह चुनाव जीत गए।

प्रदेश की यादव राजनीति में डीपी का कद बढऩे पर 1998 में खुद मुलायम सिंह यादव ने संभल से ताल ठोक दी। तब तक मायावती व डीपी के बीच भी दूरियां बढ़ चुकी थीं। इस बार मुलायम सिंह को पटकी देने के लिए भाजपा जैसी पार्टी ने कल्याण सिंह के न चाहने के बावजूद डीपी को अपना चुनाव चिह्न कमल आवंटित किया पर डीपी मुलायम से हार गए थे।


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